Rajasthani Big Maayra https://jaivardhannews.com/rajasthani-maayara-2-crores-in-nagor/

Rajasthani Maayara : एक रिटायर्ड टीचर ने अपनी भांजी की शादी में दो करोड़ रुपए का मायरा भरकर सभी को हैरान कर दिया। इस शादी में 250 कारों का भव्य काफिला देखने को मिला। रिटायर्ड टीचर ने अपनी भांजी को 1 करोड़ 1 लाख रुपए नकद, सोने-चांदी के आभूषण और एक प्लॉट भी दिया।

नागौर जिले की डेह तहसील के बुरड़ी गांव निवासी रिटायर्ड शिक्षक रामनारायण झाड़वाल ने अपनी नातिन संतोष की शादी में दो करोड़ रुपये का भव्य मायरा देकर नया इतिहास रचा है। शनिवार, 7 दिसंबर को हुए इस विवाह समारोह में 250 से अधिक कारों का भव्य काफिला देखने को मिला। रामनारायण के साथ उनके दोनों बेटे, डॉ. अशोक झाड़वाल और डॉ. रामकिशोर झाड़वाल भी इस भव्य समारोह में शामिल हुए थे। इस शादी में 1 करोड़ 1 लाख रुपये नकद, सोने-चांदी के आभूषण और एक आलीशान प्लॉट भी दिया गया। इस भव्य शादी ने पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। रिटायर्ड शिक्षक रामनारायण झाड़वाल ने अपनी नातिन संतोष की शादी में मायरा की रस्म को पूरे परिवार के साथ निभाते हुए एक नया अध्याय जोड़ा है। संतोष के पति मनीराम ढाका नागौर के मालगांव स्थित ढाकों की ढाणी में रहते हैं। शनिवार, 7 दिसंबर को हुए इस विवाह समारोह में रामनारायण झाड़वाल और उनके दोनों बेटे, डॉ. अशोक झाड़वाल और डॉ. रामकिशोर झाड़वाल ने मिलकर अपनी नातिन के मायरे में दो करोड़ रुपये से अधिक का योगदान दिया। इस मौके पर समारोह स्थल पर मौजूद गांव की सभी बहन-बेटियों को कपड़े भी बांटे गए। 250 से अधिक कारों के भव्य काफिले के साथ पूरे परिवार ने इस रस्म को अदा किया।

Rajasthan News today : खेजड़ी काे चुनरी ओढ़ाकर की रस्म पूरी

Rajasthan News today : शनिवार, 7 दिसंबर को हुए इस विवाह समारोह में 250 से अधिक कारों का भव्य काफिला देखने को मिला। रामनारायण के साथ उनके दोनों बेटे, डॉ. अशोक झाड़वाल (नागौर जिला मुख्यालय के जेएलएन अस्पताल में एमडी) और डॉ. रामकिशोर झाड़वाल (ऑस्ट्रेलिया में नर्सिंग ऑफिसर) भी इस भव्य समारोह में शामिल हुए थे। साहित्यकार पवन पहाड़िया ने बताया कि वर्तमान में किसी के पास पैसा होना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है दिल का बड़ा होना। नागौर में रामनारायण के परिवार ने यही चरितार्थ किया। भांजे के विवाह से पहले पूरा परिवार भात भरने आया। इस मौके पर समारोह स्थल पर मौजूद गांव की सभी बहन-बेटियों को कपड़े भी बांटे गए। रिटायर्ड शिक्षक रामनारायण झाड़वाल के परिवार ने अपनी नातिन की शादी में मायरा देने से पहले मारवाड़ की एक प्राचीन परंपरा का भी पालन किया। परिवार के परिजनों के अनुसार, मारवाड़ में मायरा भरने जाने वाले परिवार जिस गांव में प्रवेश करते हैं, उस गांव की सीमा पर स्थित खेजड़ी के पेड़ को बेटी की तरह चुनरी ओढ़ाई जाती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे बिना निभाए गांव में प्रवेश करना वर्जित माना जाता है। रामनारायण झाड़वाल का परिवार भी इस परंपरा का पालन करते हुए खेजड़ी के पेड़ को चुनरी ओढ़ाकर ही विवाह समारोह में शामिल हुआ। इस तरह उन्होंने मायरा देने की रस्म के साथ-साथ इस प्राचीन परंपरा को भी जीवंत रखा।

Nagor News : मायरा: एक पारंपरिक रस्म

2 Crores Maayara in Nagor https://jaivardhannews.com/rajasthani-maayara-2-crores-in-nagor/

Nagor News : मायरा एक ऐसी पारंपरिक रस्म है जो विशेष रूप से बहन के बच्चों की शादी के अवसर पर मनाई जाती है। इस रस्म में ननिहाल पक्ष, यानी मामा या मासी, अपनी बहन के बच्चों को शादी के उपहार के रूप में विभिन्न प्रकार के उपहार देते हैं। इन उपहारों में नकद राशि, सोने-चांदी के आभूषण, कपड़े और अन्य मूल्यवान वस्तुएं शामिल हो सकती हैं। इस रस्म को कई जगहों पर भात भी कहा जाता है। मायरा देने की परंपरा भारत के कई हिस्सों में, खासकर राजस्थान में काफी प्रचलित है। इस रस्म के पीछे का भाव यह है कि ननिहाल पक्ष अपने भांजे या भांजी की शादी में अपना प्यार और आशीर्वाद देना चाहता है। मायरा देने की रस्म को सामाजिक बंधनों को मजबूत करने और परिवार के सदस्यों के बीच प्यार और सम्मान को बढ़ाने का एक तरीका भी माना जाता है। मायरा देने की रस्म को अक्सर धूमधाम से मनाया जाता है। ननिहाल पक्ष के लोग शादी समारोह में शामिल होते हैं और भांजे या भांजी को उपहार देते हैं। Myra worth 2 crores

What is Maayra : नरसी भगत और मायरा की मान्यता

What is Maayra : मायरा की उत्पत्ति के पीछे एक दिल छू लेने वाली कथा जुड़ी है जो भक्त नरसी भगत से जुड़ी है। करीब 500 साल पहले, हुमायूं के शासनकाल में, गुजरात के जूनागढ़ में जन्मे नरसी भगत जन्म से ही गूंगे-बहरे थे। एक संत की कृपा से उनकी वाणी और श्रवण शक्ति वापस आ गई, लेकिन दुर्भाग्यवश, वे अपने माता-पिता को खो बैठे। उनकी पहली पत्नी का भी असमय निधन हो गया। नरसी भगत की बेटी नानीबाई का विवाह हुआ और जब नानीबाई की बेटी विवाह योग्य हुई, तो नरसी को भात भरने के लिए बुलाया गया। लेकिन, भाई-बंधुओं ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया। नरसी के पास देने के लिए कुछ नहीं था। निराश होकर, वे एक टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर अपनी बेटी के ससुराल के लिए निकल पड़े। मान्यता है कि नरसी भगत की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भात भरने पहुंचे थे। इसी घटना के बाद से, मायरा देने की परंपरा को नरसी भगत से जोड़कर देखा जाता है और इसे भक्ति और परिवार के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। नरसी भगत की इस कथा ने मायरा देने की रस्म को एक पवित्र और भावुक अनुष्ठान बना दिया है। यह कथा बताती है कि कैसे भक्ति और निस्वार्थ प्रेम किसी भी कठिन परिस्थिति में इंसान का साथ देते हैं। नरसी भगत की तरह, कई लोग आज भी इस परंपरा को निभाते हैं और अपनी बहनों के बच्चों की शादी में मायरा देकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

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