Rajsamand : साकेत साहित्य संस्थान में आयोजित मासिक साहित्य संगोष्ठी में साहित्य के रंग बिखरे। संगोष्ठी की अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष कमल अग्रवाल ने की। मुख्य अतिथि डॉ. मनोहर श्रीमाली और विशिष्ट अतिथि रतन वर्मा की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को और भी खास बनाया।
साहित्य संगोष्ठी का शुभारंभ वीणा वैष्णव द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। केलवाड़ा से आए कवि सत्यनारायण नागौरी ने “मैं रुका भी नहीं लेखनी को धार लगाता रहा” डॉक्टर मनोहर श्रीमाली ने मेवाड़ी गीत “म्हारा जीवण री थूं जोत लावे मती सोत” रतन लाल वर्मा ने “आज मैं बताता हूं दुख क्या होता हैं” कुसुम अग्रवाल ने “दुप्पटा जो तूने छुआ था, अभी धोया नहीं” चतुर कोठारी ने “संबोधि के प्राण संत शुभम तुम गए कहां हो” वीणा वैष्णव ने “शिक्षक का फर्ज याद रखा सदा ही मैंने” नारायण सिंह राव ने “इंसान तो क्या पत्थर भी बदल जाते हैं” परितोष पालीवाल ने “मावठा री मार करे प्रहार” नीतू बापना ने “जहां हैं पगड़ी का सम्मान, करे हम उस माटी का बखान” चंद्रशेखर नारलाई ने “मेरे सपनों की उड़ान हैं मां” कमलेश जोशी ने “मैं अपनी बात कहता हूं” डॉक्टर नंदन नंदवाना ने “आंखे तेरे रूप अनेक” रामगोपाल आचार्य ने “मां संघर्षों की पूरी किताब हैं” कुमार दिनेश ने “एशिया के हम परिंदें” छगनलाल प्रजापत ने “बीता यह वर्ष आने वाला नया वर्ष” कमल अग्रवाल ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जीवन पर प्रसंग सुनाते हुए उनके व्यक्तिव पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी का संचालन नारायण सिंह राव ने किया और महासचिव कमल अग्रवाल ने आभार व्यक्त किया। अंत में दो मिनिट का मौन रख कर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।