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टोक्यो ओलिंपिक के रेस वॉकिंग इवेंट में क्वालिफाई कर राजस्थान का नाम दुनियाभर में रोशन करने वाली भावना जाट भारत आ चुकी हैं। उनका ओलिंपिक तक का सफर आसान नहीं रहा। जब ट्रैक पर दौड़ने लगी तो लोगों ने परिवार को सलाह दी कि लड़की को घर में बैठाओ। शॉटर्स में प्रैक्टिस करती तो लोग घूरकर देखते थे, परिवार को ताने मारते थे। जब अच्छा खेलने लगी, सर्टिफिकेट लाने लगी तो कहने लगे कि ये सर्टिफिकेट कोई काम नहीं आएंगे। इनमें सिर्फ अजनबी नहीं रिश्तेदार भी थे। ओलिंपिक से वापस लौटी तो वही लोग भावना के घर आए हुए थे। भावना कहती हैं कि अच्छा लगा, जो सवाल उठाते थे उनको उनके जवाब मिल गए।

यह दास्तान ओलिंपिक से लौटने के बाद राजसमंद वापस आई भावना जाट ने भास्कर से बातचीत में यह बताया। राजसमंद के छोटे से गांव से लेकर टोक्यो तक के सफर को भावना ने शेयर किया। भावना ने 20 किलोमीटर रेस वॉकिंग में क्वालिफाई किया था। भावना 32वें स्थान पर रही मगर पूरे देश का दिल जीत लिया।

भावना ने बताया कि उन्हें एक लड़की होने के चलते और फिर साधारण पृष्ठभूमि होने के चलते किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा। भावना बताती हैं कि माता-पिता साधारण खेती करते हैं। भाई 10 हजार रुपए महीने कमाता था, उसमें से आधे यानी 5000 रुपए मेरी प्रैक्टिस और मेरे खान-पान के लिए देता था। उनके सपोर्ट की वजह से ही आगे बढ़ पाई। स्पोटर्स में अच्छा किया तो टिकट एग्जामिनर की नौकरी हावड़ा में मिली। पहली बार अकेली कोलकाता गई तो पर्स और फोन चोरी हो गया, एटीएम कार्ड तक चोरी हो गया था। बड़ी मुश्किल से साथी खिलाड़ियों से मदद लेकर संभली। जनरल डिब्बे में, बसों में खूब सफर किया। एक डर रहता था। मगर आज यहां पहुंचने के बाद वो सब छोटा लगता है।

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भावना का संघर्ष , नौकरी-खेल दोनों एक साथ

भावना की जिंदगी का संघर्ष भारतीय क्रिकेट के सफलतम कप्तानों में से एक है। भावना की भी खेलों में थोड़ा अच्छा करने पर रेलवे में नौकरी लग गई। हावड़ा में टिकट एग्जामिनर की नौकरी मिली। भावना बताती हैं कि धोनी की नौकरी खड़गपुर में लगी थी वो यहां से दो घंटे की दूरी पर है। दिनभर नौकरी करती, फिर आकर खुद के लिए खाना बनाना और फिर प्रैक्टिस करना। यह बड़ा मुश्किल होता है। धोनी ने तो नौकरी छोड़ दी थी। मेरी तो यह स्थिति भी नहीं थी कि नौकरी छोड़ दूं, परिवार की जिम्मेदारियां थी।

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अब भी भावना पर लोन, रेलवे के सीनियर डीसीएम ने छुट्‌टी नहीं दी थी

25 साल की भावना की खेल कोटे में नौकरी लग गई थी। तब उन्होंने सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में बीए डिग्री करने के लिए एडमिशन लिया था। नौकरी हावड़ा में लगी थी, ऐसे में उदयपुर रहकर पढ़ाई करना मुमकिन नहीं था। आर्थिक हालातों की वजह से नौकरी भी नहीं छोड़ सकती थी। मगर अब भावना ने दोबारा कपासन के कॉलेज में बीए के लिए एडमिशन लिया है। भावना बताती हैं कि अब सब पहचानने लगे हैं, गांव का बच्चा-बच्चा अब ओलिंपिक जाना जाता है। जब टोक्यो के लिए क्वालिफाई किया तो ऐसा लगा जैसे सपना सच हो गया। अब हर सामान्य खिलाड़ी का यह सपना है।