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रक्षासूत्र कहानी

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श्रावण मास री पूर्णिमा माथे हैंग भारत देश रा मायने रक्षाबंधन रो त्योहार घणो हर्षोउल्लास सु मनाया करे है। यो भाई-बहिन रो प्रसिद्ध पावन पर्व है। इण दिन बहिनें भाई री सुख-समृद्धि व दीर्घायु री कामना करता लगा भाई रे जिवणा हाथ री कलाई माथे रक्षासूत्र बाँध्या करे हैं अळगा देश परणाई बेन आपणा भाई री घणी वाट जोवे न अरज करे के वीरा लेवण ने बेगो आज्ये रे। आ थारी बेनड़ कंवळे उबी आँसूड़ा ढळकावे न आ वलकी वलकी फरे। आपणे वीरा ने आवतो देख न आ बेनड़ सासरिया रा आँगणा मायने मनड़ा में घणी हरसाती लगी फरक फरक फरे। इण त्योहार माथे बेन ने उपहार देवा रो धारो है। पण इण रो मतलब कतई कोनी के वा लेवण चावे है। बेन रा वाते तो वणीरा परिवार री खुशियाँ सबु मोटो उपहार है। वा तो आपणो रा चेहरा माथे नित मुस्कराहट चावे हैं। आपणे चुलबूले स्वभाव सु हंगळा ने रिजाया करे है। न आपणे भाई-भतिजा री सुख, समृद्धि व उज्ज्वल भविष्य री कामना करती रेवे हैं।

इण रक्षासूत्र रो कर्ज घणो मोटो विया करे है न इण री महिमा घणी ऊँची व जोर री विया करे। भाई अपणी बेन री जीवन भर री रक्षा रो बिड़ो उठावा रो मनड़ा में काठो प्रण लेवे है न बेन रे दुःख-सुख में पग-पग माथे उबो रेवे है न टामके-टामके जाईन बेनड़ ने धीर बँधावे है, छावे झठे संबल दिया करे न आपणे कुळ री मान-मर्यादा रो मान राखता लगा आपणो फ़र्ज निभाया करे है।माता जाई बेन ने छोड़िन कदी राखी डोरा री बेन नी करनी। भली थाने जो मले, वोई देवो पण विने आँसूड़ा नी नकाणा। वणी रो चहकतो चहरो आँगणिया री रौनक में चार चाँद लगा देवे है। ज्यूँ ज्यूँ वे आँगणे में पद धरिया करे, त्यों त्यों स्वर्ण री बरखा बरसिया करे है। बाबुल री बगिया बहन-बेटियाँ-सु महकती रेवे है। इण महक ने कदी कम कोनी वेवा देणी।

बहन-बेटियाँ तो चंद दिनों री मेहमान हुआ करे न बस वे तो दो मीठा बोल-सुई राजी वेई जाया करे है। वाने जीवन में कदी कड़वा बोल नी बोलना छावे न इण बोला-सु वाको मन कदी फीको नी करणो न कदी वाँरी आत्मा ने ठेस नी पहुँचाणी है। ये तो उड़ती चिड़िया न परिवार री रंग-बिरंगी तितलियाँ बण ने फिरकती लगी दोई आँगणियाँ री शोभा बढ़ाया करे है न दोई परिवार रो नाम रोशन करे हैं।रक्षाबंधन रो त्योहार भाई-बेनाउस रूपाळो लागे है। बेनड़ वना भाई री कलाई सुनी रेई जावे न भाई वना बेन री हृदय री भावना रीती रेई जावे। यो रखी रो त्योहार दोई भाई बहन रे एकदूसरा रो पूरक विया करे है। एकदूसरा रे वना यो त्योहार अधुरो लागे है।।

श्रीमती प्रेम कुमावत
भाणा, कांकरोली,
राजसमंद

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