ravinder singh bhati : राजस्थान के बाड़मेर जिले के शिव विधानसभा क्षेत्र में पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं के निवेश पर विवाद गहरा गया है। भारतीय राष्ट्रीय सौर ऊर्जा महासंघ (NSEFI) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखकर स्थानीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। महासंघ का कहना है कि विधायक के हस्तक्षेप के चलते करीब 8500 करोड़ रुपये का निवेश और 2000 मेगावाट की ऊर्जा परियोजनाएं पिछले छह महीने से ठप पड़ी हैं। हालांकि, विधायक भाटी ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे किसानों के हक की लड़ाई बताया है।
Rajasthan news today : NSEFI की शिकायत: निवेश पर लगा ब्रेक
Rajasthan news today : NSEFI के सीईओ सुब्रह्मण्यम पुलिपका ने अपने पत्र में कहा है कि शिव क्षेत्र में पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास में विधायक की ओर से अड़चनें डाली जा रही हैं। शिकायत में यह भी कहा गया है कि डवलपर्स और उनके कर्मचारियों को धमकियां दी जा रही हैं और जबरन वसूली का प्रयास हो रहा है। महासंघ का कहना है कि ऐसा व्यवहार पहले कभी राजस्थान में देखने को नहीं मिला।
महासंघ ने चेतावनी दी है कि अगर इस तरह का हस्तक्षेप जारी रहा, तो उन्हें राजस्थान से अपना निवेश अन्य राज्यों में स्थानांतरित करना पड़ेगा। इस पत्र की एक कॉपी राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी को भी भेजी गई है।
Barmer news : 8500 करोड़ का निवेश ठप, परियोजनाएं अटकी
Barmer news : NSEFI के अनुसार, शिव क्षेत्र में 2,000 मेगावाट तक की ऊर्जा परियोजनाओं का काम विधायक के दखल के चलते बंद पड़ा है। इन परियोजनाओं के रुकने से 8500 करोड़ रुपये का भारी निवेश प्रभावित हुआ है। महासंघ ने इस बात पर जोर दिया कि यह समस्या न केवल राज्य की ऊर्जा जरूरतों को प्रभावित कर रही है, बल्कि राजस्थान को निवेश के एक बड़े अवसर से भी वंचित कर सकती है।
MLA Ravindra Singh Bhati : विधायक रविंद्र सिंह भाटी का जवाब: किसानों के लिए लड़ रहा हूं
MLA Ravindra Singh Bhati : इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए शिव के विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने स्पष्ट किया कि उन्होंने किसी भी परियोजना में कोई अड़चन नहीं डाली है। उनका कहना है कि वह सिर्फ अपने क्षेत्र के किसानों की आवाज उठा रहे हैं।
विधायक भाटी का तर्क:
- शिव क्षेत्र के किसानों के साथ जमीन अधिग्रहण के दौरान अन्याय हो रहा है।
- किसानों को मुआवजे के रूप में डीएलसी (जमीन का सर्किल रेट) से दोगुनी राशि दी जानी चाहिए।
- किसानों के हक के लिए संघर्ष करना उनकी जिम्मेदारी है।
भाटी ने दावा किया कि उनकी लड़ाई कंपनियों के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह किसानों को उनका हक दिलाने के लिए है।
Kisan Protest in Barmer : किसानों का आंदोलन : मुआवजे के लिए संघर्ष
Kisan Protest in Barmer : शिव क्षेत्र के एक दर्जन गांवों के किसान पिछले 70 दिनों से आंदोलन कर रहे थे। यह आंदोलन हाईटेंशन लाइन के लिए टावर लगाने के उचित मुआवजे को लेकर था।
मुआवजे की समस्या:
- टावर निर्माण के लिए कंपनी किसानों को केवल 50,000 रुपये प्रति टावर की पेशकश कर रही थी।
- किसान इस राशि से असंतुष्ट थे और उन्होंने सम्मानजनक मुआवजे की मांग की।
- किसानों ने इस मांग को लेकर टावर निर्माण का काम रुकवा दिया।
किसानों का आरोप था कि उनकी जमीनों का सही मूल्यांकन नहीं किया गया और कंपनियां न्यूनतम मुआवजे के जरिए उनके अधिकारों का हनन कर रही हैं।
NSEFI Project Barmer : NSEFI का प्रोजेक्ट और हाईटेंशन लाइन का मामला
NSEFI Project Barmer : यह हाईटेंशन लाइन और टावर निर्माण परियोजना NSEFI के प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस प्रोजेक्ट के रुकने से महासंघ ने नाराजगी जताई और विधायक पर सीधे आरोप लगाए। महासंघ का कहना है कि किसानों को भड़काने और प्रोजेक्ट में अड़चन डालने का काम विधायक द्वारा किया गया।
संघर्ष के बाद मिली सहमति
हालांकि शुक्रवार को इस विवाद को सुलझाने के लिए बाड़मेर के शिव क्षेत्र स्थित बाबा गरीबनाथ मंदिर में एक बैठक आयोजित की गई। इसमें विधायक रविंद्र सिंह भाटी, प्रभावित किसान, प्रोजेक्ट कंपनी के प्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी शामिल हुए। इस बैठक में सभी पक्षों के बीच सहमति बनी और वार्ता सफल रही। कंपनी ने किसानों को उनकी उचित मांगों को स्वीकार करने का भरोसा दिया। किसानों ने इस सहमति को अपनी जीत बताया।
बैठक के मुख्य बिंदु:
- कंपनी ने किसानों को उनके हक का सम्मानजनक मुआवजा देने का आश्वासन दिया।
- सभी लंबित कार्यों को जल्द शुरू करने पर सहमति बनी।
- विधायक भाटी ने कहा कि उनकी भूमिका केवल किसानों की आवाज उठाने तक सीमित थी।
राजनीतिक बयानबाजी: मामला गरमाया
इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। NSEFI द्वारा सीधे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखे जाने से यह विवाद और भी तूल पकड़ गया। महासंघ ने जहां इसे निवेश और विकास को रोकने वाला कदम बताया, वहीं विधायक और किसानों ने इसे अपने हक की लड़ाई का हिस्सा बताया।
किसानों की जीत: संघर्ष से निकला समाधान
किसानों का कहना है कि उनका संघर्ष उनकी जमीनों और अधिकारों को बचाने के लिए था। 70 दिनों के लंबे आंदोलन और वार्ता के बाद कंपनी ने उनकी मांगों को स्वीकार किया। किसानों ने इसे एक बड़ी जीत करार दिया।