Royal Family Dispute : मेवाड़ रियासत का इतिहास बड़ा ही गौरवशाली है। त्याग, बलिदान, शौर्य, पराक्रम, स्वतंत्रता के परिचायक स्थल जगह जगह है। इसलिए मेवाड़ ही नहीं, बल्कि देश व दुनिया भी मेवाड़ में महाराणा प्रताप का नाम बड़े अदब से लेते हैं। उसी मेवाड़ी रियासत की 77वीं पीढ़ी में उत्तराधिकारी के रूप में नाथद्वारा के विधायक विश्वराजसिंह मेवाड़ को मेवाड़ के राव- उमरावों ने मिलकर महाराणा की गद्दी पर बिराजित किया और चित्तौड़गढ़ के दुर्ग पर राजतिलक की शाही परम्परा का निर्वहन किया गया। मेवाड़ी इतिहास में किसी भी महाराणा के राजतिलक के बाद उदयपुर स्थित राजमहल में स्थित धुणी के दर्शन व कैलाशपुरी में एकलिंगनाथ के दर्शन की पुरातन परम्परा है, उसी परम्परा को निभाने के लिए जब विश्वराजसिंह मेवाड़ समर्थकों के साथ राजमहल पहुंचे, तो उनके चाचा अरविंदसिंह मेवाड़ व चचेरे भाई लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ ने राजमहल के द्वार ही बंद कर दिए। चूंकि विश्वराजसिंह के पिता स्व. महेंद्रसिंह व अरविंदसिंह के बीच पहले से सम्पत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है। विवाद के चलते महेंद्रसिंह व विश्वराजसिंह मेवाड़ का परिवार अलग रहता है, मगर महेंद्रसिंह मेवाड़ बड़े भाई होने से मेवाड़ी रियासते उन्हें ही महाराणा मानते हैं और उसी परम्परा के तहत महेंद्रसिंह के मेवाड़ के ज्येष्ठ पुत्र विश्वराजसिंह को महाराणा की पदवी पर बिराजित कर राजतिलक की रस्म निभाई गई, लेकिन अरविंदसिंह व उनके परिवार ने विश्वराजसिंह मेवाड़ के प्रवेश को वर्जित बता महल के द्वार बंद कर दिए। फिर प्रशासन द्वारा समझाइश के प्रयास किए, मगर मामला नहीं सुलझा। फिर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की दखल के बाद दोनों पक्ष धुणी दर्शन पर रजामंद हुए। इस बीच तीन दिन तक जो हालात मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार में बने, उससे न सिर्फ महाराणा का गौरवशाली इतिहास बदनाम हुआ, बल्कि हर कोई इस घटना को लेकर शर्मिंदगी महसूस कर रहा है।
चितौड़ में 493 साल बाद राजतिलक
चित्तौड़गढ़, भारत के गौरवशाली इतिहास का एक महत्वपूर्ण साक्षी रहा है। लगभग 493 वर्षों के अंतराल के बाद, चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर राजतिलक की रस्म अदा की गई। यह आयोजन धार्मिक और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ किया गया, जिसमें हजारों राजपूतों ने भाग लिया। यह भव्य समारोह दुर्ग के फतह प्रकाश महल प्रांगण में आयोजित किया गया। इस अवसर पर उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके पुत्र विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक किया गया। विश्वराज सिंह मेवाड़ इस गद्दी पर बैठने वाले एकलिंगनाथजी के 77वें महाराणा बने। मेवाड़ के महाराणा खुद को भगवान एकलिंग का दीवान मानते हैं। सोमवार को आयोजित इस कार्यक्रम में मेवाड़ के राव, उमराव और ठिकानेदार पारंपरिक वेशभूषा में दुर्ग पर पहुंचे। देश के विभिन्न राजपरिवारों के मुखिया या प्रतिनिधि, सामाजिक, शिक्षा, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्ति, मेवाड़ के संत-महात्मा और विभिन्न समाजों के प्रतिनिधि भी इस ऐतिहासिक अवसर पर उपस्थित रहे। यह उल्लेखनीय है कि इससे पहले 16वीं सदी में चित्तौड़गढ़ के राजटीले पर महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। यह घटना चित्तौड़गढ़ के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत है और मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास को आगे बढ़ाती है।
विश्वराज सिंह मेवाड़ का जन्म महाराणा प्रताप जयंती के पावन दिन 18 मई, 1969 को हुआ था, जो कि मेवाड़ के इतिहास में एक विशेष संयोग माना जाता है। उन्होंने मुंबई के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। वर्तमान में, वे नाथद्वारा से विधायक हैं और उनकी पत्नी महारानी महिमा कुमारी राजसमंद से सांसद हैं। इस जोड़े के दो संतानें हैं – पुत्र देवजादित्य सिंह और पुत्री जयति कुमारी। विश्वराज सिंह मेवाड़ के व्यक्तित्व में आधुनिक शिक्षा और पारंपरिक मूल्यों का एक अनूठा संगम देखने को मिलता है, जो उन्हें मेवाड़ की गौरवशाली परंपरा के योग्य उत्तराधिकारी बनाते हैं।
Rajtilak of Vishwaraj Singh Mewar : चित्तौड़ में पुनर्जीवित हुआ मेवाड़ का गौरव
Rajtilak of Vishwaraj Singh Mewar : चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक दुर्ग पर हुए राजतिलक समारोह के साथ मेवाड़ की प्राचीन राजधानी का गौरव एक बार फिर जीवंत हो उठा है। विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक मेवाड़ की परंपरा के अनुसार संपन्न हुआ। मेवाड़ की परंपरा के अनुसार सलूंबर रावत देवव्रत सिंह ने राजतिलक की रस्म अदा की। रावत देवव्रतसिंह ने अपने अगूंठे पर चीरा देकर विश्वराजसिंह मेवाड़ का राजतिलक किया जिसके बाद उन्हें एकलिंग दीवान की गादी पर बिठाया गया। इसके बाद उमराव, बत्तीसा, अन्य सरदार और विभिन्न समाजों के प्रमुख लोगों ने विश्वराज सिंह को नजराने पेश किए। विश्वराज सिंह पर एकलिंग दीवान का दायित्व निर्वहन करने का पूरा विश्वास जताया। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में आयोजित विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक समारोह में भव्यता और धूमधाम का माहौल रहा। दुर्ग के सभी सातों दरवाजों पर ढोल-नगाड़ों से आने वाले मेहमानों का स्वागत किया गया। इस ऐतिहासिक अवसर पर देशभर से पूर्व राजघरानों के सदस्य, रिश्तेदार, गणमान्य नागरिक और आमजन बड़ी संख्या में शामिल हुए। समारोह की शुरुआत वैदिक मंत्रोचार के साथ हुई और विश्वराज सिंह ने यज्ञ में पूर्णाहुति दी। राजतिलक के कार्यक्रम के बाद विश्वराजसिंह मेवाड़ ने चितौड़गढ स्थित कुलदेवी मां बायण के दशर्न कर आर्शीवाद लिया। समूचे कार्यक्रम में पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया गया और राजपूत संस्कृति की झलक देखने को मिली।
Eklingji Diwan Vishvraj Singh : विश्वराजसिंह मेवाड़ एकलिंगजी के 77वें दीवान
Eklingji Diwan Vishvraj Singh : प्रताप सिंह झाला ‘तलावदा’, जो करीब 30 साल तक महेंद्र सिंह मेवाड़ के साथ रहे, ने बताया कि मेवाड़ के महाराणा हमेशा अपनी प्रजा से गहरा नाता रखते आए हैं। वे कभी भी प्रजा से ऊंचे नहीं रहे, बल्कि हमेशा उनके बीच रहकर उनके लिए काम करते रहे हैं। मेवाड़ के इतिहास में यह माना जाता है कि महाराणा अपने 36 कौम को अपना परिवार मानते थे। इसीलिए, महाराणा हमेशा जनता के बीच रहकर काम करते थे और सिंहासन पर बैठकर बातचीत नहीं करते थे। चूंकि महाराणा हमेशा गद्दी पर बैठते थे, इसलिए राजतिलक के बाद महाराणा की पदवी हासिल करने वाले व्यक्ति भी इस परंपरा को निभाते हैं। अब विश्वराज सिंह मेवाड़ इस परंपरा को आगे बढ़ाएंगे। वे गद्दी पर बैठने वाले एकलिंगनाथजी के 77वें दीवान होंगे। यह दर्शाता है कि मेवाड़ की यह प्राचीन परंपरा आज भी जीवित है और विश्वराज सिंह मेवाड़ इस परंपरा को आगे बढ़ाकर मेवाड़ के लोगों की सेवा करेंगे।
मेवाड़ के राजघरानों का एकजुट प्रदर्शन
विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक समारोह में मेवाड़ से जुड़े विभिन्न राजघरानों के सदस्यों की उपस्थिति ने इस ऐतिहासिक अवसर को और भी खास बना दिया। सलूंबर, भिंडर, देवगढ़, आमेठ, देलवाड़ा, बनेड़ा, बड़ीसादड़ी, गोगुंदा, कोठारिया, बेदला, पारसोली, बेगूं, घाणेराव, बदनोर, कानोड़ और बिजोलिया जैसे प्रमुख राजघरानों के सदस्यों ने इस समारोह में हिस्सा लिया। इन सभी राजघरानों का मेवाड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सदियों से ये राजघराने मेवाड़ के महाराणाओं के साथ घनिष्ठ संबंध रखते आए हैं।
Dhuni Darshan Vivad : राजतिलक के बाद धुणी दर्शन विवाद
Dhuni Darshan Vivad : विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक के बाद जब वे परंपरा के अनुसार उदयपुर के सिटी पैलेस में धूणी के दर्शन करने पहुंचे, तो उन्हें एक अप्रत्याशित घटना का सामना करना पड़ा। महेंद्र सिंह मेवाड़ के भाई और विश्वराज के चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के परिवार ने रंगनिवास और जगदीश चौक के दरवाजे बंद कर दिए, जिससे विश्वराज सिंह को महल में प्रवेश करने से रोक दिया गया। विश्वराज सिंह और उनके समर्थक बैरिकेड्स हटाते हुए जगदीश चौक तक पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। महल में प्रवेश न मिलने पर उनके समर्थकों ने पुलिस का घेरा तोड़ दिया और महल के गेट तक पहुंच गए। कुछ समर्थक दीवार पर चढ़ गए। इस दौरान महल के अंदर से पत्थर और कांच की बोतलें फेंकी गईं, जिससे कई लोग घायल हो गए। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हल्का बल प्रयोग किया, लेकिन भीड़ को तितर-बितर करने में असमर्थ रही।
विवादित जगह को किया कुर्क
विश्वराज सिंह मेवाड़ और उनके चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच चल रहे विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है। दोनों पक्षों के बीच बातचीत के सभी प्रयास विफल हो गए हैं। प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए एक कड़ा कदम उठाते हुए विवादित धूणी वाली जगह को कुर्क कर दिया है। इस संबंध में एक नोटिस सिटी पैलेस के गेट पर चिपकाया गया है, जिसमें घंटाघर थानाधिकारी को इस स्थान का रिसीवर नियुक्त किया गया है। यह निर्णय प्रशासन द्वारा दोनों पक्षों के बीच लगातार हो रही हिंसा और अशांति को देखते हुए लिया गया है।
Violence In Udaipur : दूसरे दिन भी नही थमा विवाद
Violence In Udaipur : दूसरे दिन मंगलवार को भी सिटी पैलेस के गेट बंद रहे और किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए समोर बाग के बाहर पुलिस ने कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए। सिटी पैलेस के आसपास धारा 163 लागू है। मंगलवार को दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलाया। विश्वराज सिंह और लक्ष्यराज सिंह दोनों ने ही सोमवार को हुई हिंसक झड़प के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया। साथ ही, दोनों ने सरकार और जिला प्रशासन पर भी आरोप लगाए। लक्ष्यराज सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार में बैठे एक व्यक्ति के इशारे पर यह पूरा विवाद हो रहा है।
City Palace Udaipur : बुधवार को एकलिंगजी व धुणी दर्शन
City Palace Udaipur : तीन दिनों तक चले तनावपूर्ण माहौल के बाद, उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में राजतिलक की रस्मों को लेकर छिड़ा विवाद बुधवार शाम को शांत हो गया। विश्वराज सिंह मेवाड़ ने परंपरा के अनुसार राजतिलक के तीसरे दिन सिटी पैलेस में धूणी के दर्शन किए। बुधवार सुबह विश्वराज सिंह मेवाड़ ने एकलिंगजी के दर्शन किए और शोक भंग की रस्म निभाई गई। इसके बाद शाम को प्रशासन की मौजूदगी में उन्होंने धूणी दर्शन किए। इस दौरान उनके साथ अन्य राजघरानों के सदस्य भी मौजूद रहे। धूणी दर्शन के बाद विश्वराज सिंह अपने समर्थकों के साथ समोर बाग पहुंचे, जहां उनके समर्थकों ने आतिशबाजी की और नारे लगाए। इस पूरे विवाद पर लक्ष्यराज सिंह ने कहा कि केवल एक व्यक्ति के घमंड और गुरूर की वजह से जनता परेशान हुई है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि वे हिंसा के पक्ष में नहीं हैं लेकिन नपुंसक भी नहीं हैं। उदयपुर कलेक्टर अरविंद पोसवाल ने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद विश्वराज सिंह को धूणी दर्शन करवाने का फैसला लिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि कुर्क प्रॉपर्टी पर सिटी पैलेस के जवाब के बाद निर्णय लिया जाएगा।
शोक भंग की रस्म निभाई
मेवाड़ के राजा को एकलिंगनाथजी का दीवान माना जाता है। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए विश्वराज सिंह मेवाड़ ने एकलिंगनाथ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की। यहां पुजारियों ने रंग दस्तूर की विधि संपन्न कराई। इस दौरान विश्वराज सिंह के कंधे पर चांदी की छड़ी धारण कराई गई। यह छड़ी दीवान के पद का प्रतीक है। रंग दस्तूर की विधि के बाद पंडितों ने शोक भंग की रस्म निभाई। इस दौरान महाराणा के सफेद रंग की पाग को बदलकर रंगीन पाग पहनाई गई। यह रस्म शोक के अवसान और नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है। इसके बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ उदयपुर के समोरबाग पहुंचे जहां उन्होंने अपने परिवारजनों और पुराने जागीरदारों के साथ शोक भंग का उत्सव मनाया। इस दौरान सभी ने रंगीन मेवाड़ी पाग पहनी और उत्सव में शामिल हुए।
Lakshyraj Singh mewar : चौथे दिन खूले सिटी पैलेस के द्वार
Lakshyraj Singh mewar : उदयपुर में मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार में चल रहे विवाद का अंत हुआ है। चार दिनों तक चले तनाव के बाद, गुरुवार शाम 6:30 बजे सिटी पैलेस के गेट खोल दिए गए। मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह स्वयं मौके पर पहुंचे और दरवाजे खुलवाए। उन्होंने शहरवासियों और प्रशासन का धन्यवाद करते हुए कहा कि उदयपुर में एक बार फिर सौहार्द का माहौल कायम हो गया है। इस घटनाक्रम से शहर में राहत की सांस ली गई है। राजपरिवार के भीतर हुए इस विवाद ने शहर की शांति को भंग कर दिया था। अब गेट खुलने के साथ ही लोगों में उत्साह है और वे इस नए अध्याय की शुरुआत का स्वागत कर रहे हैं।