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Royal Family Udaipur : मेवाड रियासत के राजस्थान में विलय का रोचक इतिहास

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Royal Family Udaipur : मेवाड की रियासत का एक गौरवशाली इतिहास है। इसलिए जब रियासतों का एकीकरण किया जा रहा था, तब मेवाड के महाराणा भूपालसिंह ने रियासती विभाग को स्पष्ट कह दिया गया था कि राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया में मेवाड किसी अन्य रियासत के साथ नहीं मिलेगा। अगर आप चाहो तो अन्य रियासतों का विलय मेवाड में कर सकते हैं। अब रियासती विभाग भी मेवाड के साथ में जबरदस्ती नहीं कर सकता था, क्योंकि मेवाड रियासत भारत संघ में रहते हुए अपने आपको एक स्वतंत्र इकाई रखने के लिए रियासती विभाग की उस शर्त को पूरा करता था, जिसके तहत वह अपने आपको स्वतंत्र इकाई रख सकता था। उस वक्त मेवाड रियासत की आबादी करीब 19 लाख के आस पास थी और मेवाड़ रियासत की सालाना आय भी एक करोड से ज्यादा थी। इसीलिए रियासती विभाग जबरदस्ती नहीं कर सकता था। जब महाराणा भूपालसिंह ने इस प्रकार की बातें कही और 25 मार्च 1948 को राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया के दूसरे चरण में जब 9 रियासतों और एक ठिकाने को मिला दिया और महाराणा ने तो उससे कुछ दिनों पहले तक अपने आपको एक स्वतंत्र इकाई रखने पर ज्यादा जोर दिया, तो फिर माणिक्य लाल वर्मा जो कि मेवाड प्रजा मंडल की गतिविधियों के प्रमुख केंद्र थे, उनके द्वारा संविधान निर्मात्री सभा में यह कहा गया कि अकेले महाराणा और उनके प्रधानमंत्री सर राममूर्ति दोनों मेवाड की 20 लाख जनता के भाग्य का फैसला नहीं कर सकते। फिर आखिर मेवाड रियासत का राजस्थान में किस प्रकार से विलय हुआ और महाराणा भूपाल सिंह की ओर से वह क्या शर्ते रखी गई थी, जिनको मानने के बाद महाराणा भूपाल सिंह ने भी राजस्थान के एकीकरण में मेवाड रियासत का विलय कर दिया था। आज हम इसी विषय पर विस्तार से बात करेंगे और आप देखना शुरू कर चुके हो जयवर्द्धन न्यूज।

वैसे तो मेवाड के महाराणा भूपाल सिंह ने भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत विभाजन के समय भारत संघ में सम्मिलित होना स्वीकार किया था। मोहम्मद अली जिन्ना और भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां के उन प्रयासों को दो टूक शब्दों में विराम दे दिया था कि उन्हें किस संघ में शामिल होना है, भारत या पाकिस्तान में। भूपालसिंह बोले कि इसका फैसला तो मेरे पूर्वज ही कर गए थे। मेवाड तो हैदराबाद से बडी रियासत थी। वे बोले कि अपने पूर्वजों की इच्छा के अनुरूप ही मेवाड भारत संघ में ही सम्मिलित होगा। हालांकि भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले यानि 15 अगस्त 1947 से पहले ही इन्होंने भारत संघ के साथ सम्मिलित होना स्वीकार कर लिया था, लेकिन इनकी इच्छा यह थी कि यह अपने आपको भारत संघ में रहते हुए एक स्वतंत्र इकाई के रूप में रखें अर्थात भारत-संघ में विलय हो लेकिन ज्यादा से ज्यादा अपनी मांगें व शर्ते मनवा लें और स्वतंत्र इकाई के रूप में रखें। रियासती विभाग के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल और सचिव वीपी मैनन थे, जिसका गठन 5 जुलाई 1947 हुआ था। इस रियासती विभाग द्वारा रियासतों के एकीकरण में आ रही समस्याओं को दूर करने का काम करता था। चूंकि रियासती विभाग की शर्त के अनुसार 10 लाख से ज्यादा आबादी व 1 करोड से ज्यादा सालाना आय वाली रियासत स्वतंत्र इकाई के रूप में रख सकते हैं और यह शर्त मेवाड रियासत पूरी करता था।

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इसीलिए जब मेवाड के आस पास की 9 रियासत और एक ठिकाने को विलय कर लिया। विलय के बाद 25 मार्च 1948 को राजस्थान संघ का गठन किया। इनमें तीन रियासत थी हाडौती की, जहां पर हाडा चौहानों का शासन था। इसीलिए यह क्षेत्र हाडौती कहलाता था, जिसमें बूंदी, कोटा और झालावाड। इसके अतिरिक्त वागड की तीन रियासतें डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ तथा शाहपुरा रियासत जो वर्तमान में भीलवाडा जिले में है। इसके अलावा किशनगढ जो वर्तमान में अजमेर जिले में है और एक टोंक रियासत थी। साथ ही एक ठिकाना जो बांसवाडा जिले में कुशलगढ था। जब इनको मिलाकर 25 मार्च 1948 को राजस्थान संघ बनाया गया, तो मेवाड़ रियासत इनके बीच में आ रहा था और सरदार वल्लभभाई पटेल और उनके सचिव वीपी मेनन के द्वारा यह कहा गया कि आपको भी इस संघ में शामिल हो जाना चाहिए। इस पर भूपालसिंह ने कहा गया कि मेवाड रियासत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, इसीलिए मेवाड रियासत में अन्य रियासतों को मिला दिया जाए। इस तरह 25 मार्च 1948 से पहले तक महाराणा भूपालसिंह चाहते थे कि मेवाड भारत संघ में शामिल होकर भी स्वतंत्र इकाई के रूप में रहे, लेकिन उस वक्त जनता का दबाव भी था और मेवाड प्रजामंडल के नेता माणिक्य लाल वर्मा ने संविधान निर्मात्री सभा में यह कहा कि मेवाड की 20 लाख जनता का फैसला अकेले महाराणा और उनके प्रधानमंत्री सर राममूर्ति नहीं ले सकते।

Maharana Bhupal Singh : विलय के पहले रखी ये शर्ते

Maharana Bhupal Singh : माणिक्यलाल वर्मा के आव्हान पर महाराणा के खिलाफ जनता सडकों पर उतर गई। जब महाराणा को लगा कि अब सम्मिलित होना ही ठीक है। क्योंकि बहुत भारी जन दबाव उन पर आ रहा है और जनप्रतिनिधियों का भी लगातार दबाव था। इसीलिए महाराणा भूपाल सिंह 23 मार्च 1948 राजस्थान संघ में शामिल होने के लिए मान गए, लेकिन फिर एक बात रखी कि 25 मार्च 1948 की तारीख को आगे बढाया जाए। क्योंकि उनके प्रधानमंत्री सर राममूर्ति की रियासती विभाग से शर्तो को लेकर वार्ता चल रही है, जिसमें पहली शर्त थी कि वंशानुगत राज प्रमुख बने, संघ की राजधानी मेवाड़ रहे, शासक को सालाना पेंशन के तौर पर 10 लाख तय किए, मगर महाराणा भूपाल सिंह 20 लाख रुपए सालाना मांग रहे थे। बाद में रियासती विभाग से वार्तालाप के बाद तीनों ही शर्तो में कुछ बदलाव करते हुए यह तय किया गया कि पहली शर्त में राज प्रमुख वंशानुगत नहीं सकता, मगर आप आजीवन राज प्रमुख रहेंगे और आपके वंशज उत्तराधिकारी को राज प्रमुख नहीं बनाया जाएगा। फिर मेवाड को राजधानी रखने पर सहमति बन गई और 20 लाख रुपए सालाना पेंशन की मांग पूरी करना कानूनन मुश्किल हो रहा था। इस पर कुछ वार्तालाप के बाद यह तय किया कि 10 लाख वार्षिक पेंशन, 5 लाख राज प्रमुख को भत्ता मिलेगा और 5 लाख रुपए धार्मिक कार्यों के लिए दिए जाएंगे। इस तरह तीनों शर्तो पर सहमति बन गई।

Mewar Rajpariwar : संयुक्त राजस्थान का गठन

Mewar Rajpariwar : अब मेवाड रियासत को सम्मिलित करने के लिए 11 अप्रैल 1948 को महाराणा भूपालसिंह के नए समझौता पत्र के तहत राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया का तीसरा चरण शुरू हुआ। इस तरह संयुक्त राजस्थान यानि यूनाइटेड स्टेट ऑफ राजस्थान पर मेवाड रियासत के हस्ताक्षर हो गए। साथ ही 9 रियासतों और एक ठिकाने के द्वारा भी इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए गए। क्योंकि अब मेवाड जब मिल रहा था तो अब बाकि की जो शर्ते थी वह ज्यादातर मेवाड रियासत के अनुसार ही पूरी की जानी तय हो गई। इसके बाद 18 अप्रैल 1948 को संयुक्त राजस्थान का विधिवत गठन कर दिया गया। मेवाड की गौरवमय परम्परा के तहत इस पल को अविस्मरणीय बनाने के लिए उस वक्त के सबसे बडे नेता थे, जो कि पंडित जवाहरलाल नेहरू को बुलाया गया था और उनके सानिध्य में संयुक्त राजस्थान का गठन किया गया। इससे पहले दो चरण में मत्स्य संघ और राजस्थान संघ का गठन नरहर विष्णु गाडगिल के द्वारा किया गया था। जो उस समय के भारत के खनिज मंत्री, पीडब्ल्यूडी मंत्री और ऊर्जा मंत्री थे। इस तरह मेवाड रियासत शामिल होने से बने संयुक्त राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 29 हजार 777 वर्ग मील हो गया और इसकी कुल आबादी 42 लाख 60 हजार हो गई। साथ ही वार्षिक आय 316 लाख हो गई। यह हिंदी ग्रंथ अकादमी की किताब के आंकडे हैं, जबकि राजस्थान विधानसभा पोर्टल पर दर्ज आंकडों में आंशिक अंतर है। इससे पहले दूसरे चरण में बने राजस्थान संघ का क्षेत्रफल 16807 वर्ग मील था। अगर अकेले मेवाड का एरिया देखा जाए, तो वह है 12970 वर्ग मील था।उसके बाद मंत्रिमंडल का गठन किया गया, जिसमें राज प्रमुख, उप राज प्रमुख, कनिष्ठ उप प्रमुख मनोनीत किया गया।

Udaipur City Palace : महारावल भीमसिंह हुए नाराज

Udaipur City Palace : महाराणा भूपालसिंह को शर्त के अनुसार राज प्रमुख बनाया गया। फिर कोटा के जो शासक थे, महारावल भीमसिंह, वे थोड़ा नाराज हुए कि कोटा को राजधानी से भी हटा दिया और उनके राज प्रमुख का पद भी छिन लिया। इस पर प्रजामंडल द्वारा उन्हें प्रसन्न करने के लिए कहा गया कि प्रतिवर्ष विधान मंडल सत्र कोटा में आयोजित किया जाएगा। इसके अलावा कोटा के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए कोटा के विकास के लिए भी प्रयास किए जाएंगे। साथ ही महारावल भीमसिंह को वरिष्ठ उप राज प्रमुख बना दिया गया। बूंदी के शासक महाराल बहादुर सिंह कनिष्ठ उप राज प्रमुख बना गया। डूंगरपुर के शासक महारावल लक्ष्मणसिंह को भी उप राज प्रमुख बनाया गया। फिर मंत्रिमंडल का गठन किया गया, जिसमें माणिक्य लाल वर्मा को प्रधानमंत्री बनाया गया। गोकुल लाल असावा उप प्रधानमंत्री बनाया गया, जिनका जन्म राजस्थान के टोंक जिले के देवली में हुआ था। शाहपुरा रियासत में सबसे पहले उत्तरदायी सरकार का गठन हुआ था, जिसमें गोकुल लाल असावा को मंत्री बनाए थे। साथ ही मंत्रिमंडल में डूंगरपुर के भोंगीलाल पांड्या को शामिल किया, जिन्हें वागड का गांधी भी कहा जाता है। राजस्थान का गांधी गोकुल भाई भट्ट को कहा जाता है, जो उस वक्त राजस्थान कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे थे। इसके अलावा प्रेमनारायण माथुर, भूरेलाल बयां, मोहनलाल सुखाडिया को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया था, जो बाद में 4 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे, जिन्हें आधुनिक राजस्थान का निर्माता भी कहते हैं। बूंदी से ब्रिज सुंदर शर्मा बूंदी और कोटा से अभिन्न हरि को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया।

History Of Mewar : मशहूर किला काला पानी

History Of Mewar : अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन पर भूरेलाल बयां को गिरफ्तार कर लिया था, जिन्हें सराडा के किले में रखा था, जिसे मेवाड का काला पानी कहा जाता था, जबकि राजस्थान का काला पानी के नाम से मशहूर किला है, माचिया का किला, जो कि जोधपुर में स्थित है। वर्ष 1942 में 42 स्वतंत्रता सेनानियों को उसी जगह कैद कर रखा गया था। स्वतंत्रता सेनानियों की याद में 15 अप्रैल 1999 में गहलोत सरकार द्वारा कीर्ति स्तम्भ का निर्माण भी कराया गया। रियासतों के महाराणा व जनप्रतिनिधियों के बीच विवाद हो गया था। उस वक्त महाराणा चाहते थे कि मंत्रिमंडल में उनके जागीरदारों को भी शामिल किया जाए, ताकि उनका प्रभाव बना रहे। हालांकि राजा, महाराणाओं की वह बात कायम नहीं रही। जनप्रतिनिधियों के दबाव के चलते जागीरदारों काे मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात चली नहीं।

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