सहज, सरल, स्पष्ट कार्यशैली ही हरिओमसिंह राठौड़ की थी पहचान
राजसमंद और मेवाड़ ही नहीं, बल्कि राज्य की राजनीति तक पहुंच रखने वाले सहज, सरल व्यक्तित्व के धनी हरिओमसिंह राठौड़ की आज द्वितीय पुण्यतिथि है। भाजपा में राजसमंद व मेवाड़ में भले ही दो गुट है, मगर राठौड़ की साफ छवि, ईमानदारी व स्पष्ट कार्यशैली से हर कोई प्रभावित था। राजनीतिक जीवन में कई उतार चढ़ाव आए, मगर उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और न ही उनके राजनीतिक कॅरियर में कभी कोई दाग लगा। दिग्गत नेता होते हुए भी हमेशा सादा जीवन जीया और कभी भी वीआईपी दिखाने का प्रयास नहीं किया। राजसमंद में जब भी आते, पुराना बस स्टैंड कांकरोली के पास राजकुमार अग्रवाल की दुकान पर बैठक कर साथियों से चर्चा करते बतियाते थे।
दिवंगत हरिओमसिंह राठौड़ के चेहरे पर हमेशा रहती थी मुस्कान और सरल, सहज सादगीपूर्ण कार्यशैली की चमक
नाम की कभी नहीं रही वाहिश
वर्तमान राजनीति में छोटे-मोटे कार्यों में भी अपने नाम की शीला पट्टिका लगाकर वाहवाही लूटी जाती है, वहीं इस आकर्षण से अछूूते रहे राठौड़ ने जयवद्र्धन पत्रिका के साक्षात्कार में कहा था कि शीलालेख पर नाम अंकित नहीं करवाने के सवाल पर जवाब दिया था कि मैंने आज तक इन पत्थरों पर लिखे नामों में से किसी को अमर होते हुए नहीं देखा, परन्तु हो सकता है कि मेरी जगह गांव के प्रतिभावान बच्चों का नाम लिखवाने की जो मैंने कोशिश की है, जिससे अन्य बच्चों को भी पे्ररणा मिल सकती है और वे शैक्षिक उन्नत के अव्वल प्रयास कर सकते हैं। ऐसे में हो सकता है यह परम्परा कहीं ना कहीं जाकर अमर हो जाए।
राठौड़ का राजनीतिक सफर
अखिल भारतीय द्यिार्थी परिषद से बीएन कॉलेज उदयपुर में चुनाव लड़े। फिर वर्ष 1980 में सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय उदयपुर से अध्यक्ष चुने गए। वे राजसमंद जिले के पहले जिला प्रमुख वर्ष 1995 में बने। उससे पहले भी वे भाजपा में सक्रिय रहे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में अच्छी छवि थी और प्रतिपक्ष नेता गुलाब चन्द कटारिया के अजीज मित्रों में थे। वे दो बार भाजपा जिलाध्यक्ष के साथ प्रदेश महामंत्री और प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव लड़कर वे पहली बार सांसद चुने गए।
राठौड़ का जीवन परिचय
जन्म : 1956
माता-पिता : गोविंद कंवर व फतहसिंह राठौड़
पुत्र- पुत्री : कर्णवीरसिंह व शिवानी तथा दो पौत्रियां
व्यवसाय : मुख्य रूप से वह मार्बल व्यवसायी
शिक्षा : सेन्टपॉल स्कूल उदयपुर व बीएन कॉलोज उदयपुर
पैतृक गांव : राजसमंद जिले में केलवा है, मगर शैक्षिक जीवन से ही उदयपुर में रहते थे। उदयपुर में अपना मकान भी है और करीब एक वर्ष से वे ज्यादातर उपचार के चलते उदयपुर में ही रहे।
कार पर सांसद नेमप्लेट तक नहीं
राठौड़ की सादगी ऐसी थी कि उन्होंने उनकी कार पर सांसद की प्लेट तक नहीं लगाई। वे कभी भी वीआईपी की कतार में नहीं रहे। वे हमेशा आम व्यक्ति की जिन्दगी जीये।
दीया कुमारी उनके सपनों पूरा करने में जुटे
राजसमंद में ब्रॉडगेज सरीखे कई विकास कार्यों को लेकर जो सपने थे, अब उन्हें पूरा करने के लिए सांसद दीया कुमारी द्वारा प्राथमिकता से एजेंडे में शामिल किया है। दीया कुमारी भी उनकी कार्यशैली से प्रभावित रही।