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Shameful Picture of Poverty : गरीबी की दिल दहला देने वाली तस्वीर : कठघरे में सरकारी तंत्र

लक्ष्मणसिंह राठौड़ @ राजसमंद

Shameful Picture of Poverty : गरीबी, एक ऐसा शब्द जो समाज में अक्सर सुना जाता है, लेकिन क्या वास्तव में गरीबी के दर्द को समझ पाते हैं? क्या ऐसे गरीब की कल्पना कर पाते हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी में बुनियादी सुविधाओं से ही वंचित हैं? कुरसिंह चदाणा की कहानी कुछ ऐसे ही गरीबी की असल तस्वीर दिखाती है, जो न सिर्फ हर किसी को चौंकाएगी, बल्कि हर किसी के दिन को झकझोर देने वाली है। उसके घर को घर कहना भी शायद गलत होगा। एक तिरपाल का टुकड़ा, जो उन्हें बारिश और धूप से बचाने का काम करता है। तिरपाल से ढके जर्जर दीवारों में मूलभुत सुविधा के अभाव में बेटे के साथ जैसे तैसे गुजर कर रहे हैं और टपकती दीवारों व गीले फर्श पर रात गुजारने को मजबूर है।

Jaivardhan News : यह दु:खदायी और सरकारी तंत्र की पोल खोलती रियल गरीबी की यह तस्वीर राजसमंद जिले के गढ़बोर तहसील क्षेत्र के झीलवाड़ा पंचायत के चदाणा की भागल में है, जहां कुरसिंह एक तिरपाल के नीचे गुजर बसर कर रहा है। पत्नी रूकमणीबाई का डेढ़ साल पहले निधन के बाद से जीवन और भी कठिन हो गया है। गरीबी दूर करने वाली सरकार की कल्याणकारी योजनाएं इस गरीब तक क्यों नहीं पहुंच पाई, यह यक्ष सवाल हर किसी के जेहन में है। कुरसिंह का परिवार रोजमर्रा की जिंदगी में भोजन, कपड़े और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है। अभी वह नरेगा में मजदूरी करके जैसे तैसे गुजारा चला रहा है, मगर तंगहाली के चलते घर में बुनियादी सामान का भी अभाव है। गरीबी का असर सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। गरीबी के कारण वह न सिर्फ डिप्रेशन, चिंता और तनाव में है, बल्कि समाज से अलगाव भी महसूस कर रहा है। इससे सभ्य मानव समाज में गरीबी के कलंक से उसके आत्म सम्मान को भी ठेंस पहुंच रही है। इस तरह कुरसिंह के गरीबी की रियल कहानी व उसके दु:ख दर्द को शब्दों में बयां करना भी मुश्किल है।

poor family : गरीबी के दलदल से क्यों नहीं उठ पाया कुरसिंह

poor family : विष्णु उर्फ बद्री गुर्जर ने बताया कि तंगहाल कुरसिंह की कहानी यह सवाल करने पर मजबूर करती है कि आखिर क्यों यह गरीबी के दलदल से बाहर नहीं निकल पाया। क्या सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में ही है। क्या यह सिर्फ कुरसिंह की बदकिस्मती है अथवा फिर हमारे समाज और सरकारी तंत्र में कुछ गड़बड़ है? आखिर केन्द्र हो या राज्य सरकार। गरीबी उन्मूलन की योजनाएं इस गरीब तक तक क्यों नहीं पहुंच पाई। ऐसे गरीब परिवार पर समृद्ध परिवार को दया नहीं आती। गरीबी के पीछे के बेबस इंसान क्यों नहीं दिखा और क्यों आज तक ऐसे हालात में वह जी रहा है। कुरसिंह की कहानी हमें सरकार की उन योजनाओं की याद दिलाती है, जो गरीबी उन्मूलन का दावा करती हैं।

Help the Poor : मानवीय संवेदनाएं भी हो गई तार तार

Help the Poor : कुरसिंह व उसके बेटे गोविंद का जीवन गरीबी की स्याही से रचा है, जिसमें अभावग्रस्त हालात है। आमजन को मूलभुत सुविधा उसका जन्मसिद्ध अधिकार है, मगर कुरसिंह को बुनियादी सुविधाएं क्यों नहीं मिल पाई। बेटा अभी आठवीं में पढ़ रहा है, मगर परिवार की तंगहाली के चलते उसके लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमिकन सा लग रहा है। गरीबी के चलते यह परिवार समाज से ही अलग थलग सा हो गया है, जहां मानवीय संवेदनाएं भी तार तार होती प्रतीत हो रही है। कुरसिंह के घर को अब घर कहना भी शायद गलत होगा। यह एक मवेशी के बाड़े जैसा तिरपाल का ढांचा है। एक ऐसा ढांचा जो न तो बारिश से बचाता है और न ही सर्दी की ठंड से। इस तिरपाल के नीचे एक पिता और एक पुत्र, दो जिंदगियां गुजर बसर कर रही हैं। बारिश में पूरे मकान में पानी टपकता है। फिर भी इसी तिरपाल के नीचे रहने को मजबूर है।

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मवेशी के बाड़े से भी बदत्तर घर

कुरसिंह का घर, घर कहना भी शायद गलत होगा। यह एक मवेशी के बाड़े जैसा तिरपाल का ढांचा है। एक ऐसा ढांचा जो न तो बारिश से बचाता है और न ही सर्दी की ठंड से। इस तिरपाल के नीचे एक पिता और एक पुत्र, दो जिंदगियां गुजर बसर कर रही हैं। बारिश में पूरे मकान में पानी टपकता है। फिर भी इसी तिरपाल के नीचे रहने को मजबूर है।

मॉर्निंग न्यूज व्यू : कठघरे में मानवता व सरकार!

गरीबी रेखा से जीवनयापन की बातें होती है, मगर वास्तविक गरीबी की तस्वीर तो यह है। कच्चा घर भी नहीं है। मवेशी के बाड़े जैसा तिरपाल ढके घर में पिता- पुत्र गुजर बसर कर रहे हैं। डेढ़ साल पहले पत्नी का निधन हो गया। इस तंगहाल परिवार को न तो सरकार से मकान की सुविधा मिली और न ही गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले इस परिवार को अन्य कोई सरकारी सहायता मिल पाई है। गरीबी से आहत कुरसिंह चदाणा की यह रियल कहानी भामाशाह तक भी नहीं पहुंच पाई, जिससे आज भी वह इस तरह बदहाल जीवन जीने को मजबूर है। कुरसिंह के हालात ने सरकारी तंत्र की भी पोल खोल दी। गांव- ढाणी तक सरकारी तंत्र की पहुंच है, तो गरीबी की रियल तस्वीर सरकार तक क्यों नहीं पहुंची और अगर पहुंची, तो फिर वह गरीबी से क्यों नही उबर पाया और क्याें उसे कल्याणकारी योजना का फायदा नहीं मिला। सभ्य मानव समाज को भी संवेदनशील बनने की जरूरत है और इस तरह के तंगहाल परिवार की हैसियत के अनुसार जरूर मदद करनी चाहिए। कुरसिंह की गरीबी की कहानी कहानी न सिर्फ सरकारी तंत्र पर सवाल खड़े कर रही है, बल्कि कहीं न कहीं मानवता भी कठघरे में है कि कोई समृद्ध व्यक्ति, भामाशाह व दानदाता इस तरह के रियल गरीब की मदद को आगे क्यों नहीं आया।

गरीब परिवार की हरसंभव करेंगे मदद

झीलवाड़ा के चदाणा की भागल में कुरसिंह के जर्जर मकान के बारे में अभी पता चला है। इसके बारे में बीडीओ व ग्राम पंचायत के माध्यम से भौतिक रिपोर्ट मांगी है। साथ ही परिवार को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ेंगे और हर संभव सरकार की सभी योजनाओं से पात्रता के आधार पर लाभ दिलाया जाएगा।

राजेश शर्मा, तहसीलदार गढ़बोर
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