Sanwariya Seth Temple : श्री सांवलिया सेठ मंदिर के इतिहास में कई किवदंतियां प्रचलित है। उसमें ही मीरा बाई से जुड़ाव की एक रोचक किवदंती भी प्रचलित है, जो काफी रोचक है। किवदंती है कि मंडफिया में बिराजे सांवलिया सेठ ही मीरा बाई के गिरधर गोपाल है, जिनकी वे हमेशा आराधना किया करती थी। कहा जाता है कि संत महात्माओं की जमात में सांवलिया सेठ की इस प्रतिमा के साथ तीन अन्य मूर्तियां भी भ्रमणशील थी। तभी मीरा बाई भी मंडफिया के मंदिर में स्थापित सांवलियाजी की मूर्ति के दर्शन से भाव विभोर थी। बताते हैं कि दयाराम नामक संत की जमात में ये सारी मूर्तिया थी।
Sanwriya Ji Mandir : कहा जाता है कि एक बार जब औरंगजेब की मुग़ल सेना मंदिर को तोड़ रही थी। मेवाड़ राज्य में पंहुचने पर मुग़ल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा। तब संत दयाराम जी ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड- भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान) में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्डा खोद कर पधरा दिया। साथ ही उसी के ऊपर जमीन पर सभी साधु संत धुणी रमने लग गए। फिर जब मुगल सेना आई, तो उन्हें कोई मूर्ति नहीं मिली और सेना चली गई। सुरक्षा की दृष्टि से वे चारों मूर्तियां लंबे समय तक उसी वट वृक्ष के नीचे खड्डे में रही। समय बीतने के साथ संत दयाराम का देवलोकगमन हो गया।
sanwariya seth story : कालान्तर में सन 1840 में मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नामक ग्वाले को एक सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां ज़मीन में दबी हुई है। फिर आस पास के करीब चार गांवों के ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से उस जगह पर खुदाई की गई, तो भोलाराम गुर्जर का सपना सही व सच साबित हो गया। उसमें से चार मूर्तिया निकली, जो बड़ी ही मनोहारी थी। बताते हैं कि उस वक्त एक मूर्ति खंडित हो गई थी, तो उसे फिर उसी जगह पधरा दिया था, जबकि तीन मूर्तिया को तीन गांव के लोगों ने अपने अपने गांवों में स्थापित की और मीराबाई जिस मूर्ति के दर्शन से प्रभावित हुई थी, वह मूर्ति अभी मंडफिया गांव में श्री सांवलिया सेठ मंदिर के नाम से विख्यात है। बताते हैं कि फिर सर्वसम्मति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा गांव में प्रतिष्ठापित किया, जबकि भादसोड़ा में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे। उनके निर्देशन में उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है। इसलिए यह सांवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंझली मूर्ति को वहीं खुदाई की जगह स्थापित किया गया, इसे प्राकट्य स्थल मंदिर भी कहा जाता है। सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर द्वारा मंडफिया ग्राम ले जाई गई जिसे उन्होंने अपने घर के परिण्डे में स्थापित करके पूजा आरंभ कर दी। चौथी मूर्ति निकालते समय खण्डित हो गई जिसे वापस उसी जगह पधरा दिया गया।
sanwariya seth temple history : कालांतर में सभी जगह भव्य मंदिर बनते गए। तीनों मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फैली। आज भी दूर-दूर से लाखों यात्री प्रति वर्ष श्री सांवलिया सेठ दर्शन करने आते हैं। सांवलिया सेठ के बारे में यह मान्यता है कि नानी बाई का मायरा करने के लिए स्वयं श्री कृष्ण ने वह रूप धारण किया था। व्यापार जगत में उनकी ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं।