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कुछ लोगों का पर्यावरण के प्रति इतना प्रेम बढ़ जाता है कि वह अपना सारा समय पेड़ पौधों को बड़ा करने में लाग देते है। उनकी दिनचर्या भी यहीं रहती है कि सुबह से शाम तक वह अपना पूरा समय पैड़ पौधों की सार संभाल में लगा देते है। पर्यावरण प्रेमियों का प्रेम भी ऐसा होता है कि पेड़ों को अपना समझ कर उसकी देखभाल करते है। आज भी कई लोग ऐसे है जो पर्यावरण के लिए अपना पूरा समय दे रहे है।

राजस्थान के पाली जिले के तखतगढ़ के भूराराम घांची और कोसेलाव के भूराराम सीरवी ये वो दो पर्यावरण प्रेमी हैं जिनका जीवन पर्यावरण संरक्षण को लेकर समर्पित कहा जा सकता हैं। दोनों की उम्र अब 80 वर्ष से ज्यादा हो गई हैं। लेकिन गांव में इनकी ओर से सालों पहले लगाए गए पौधें आज पेड़ों का रूप ले चुके हैं। जो इनके पर्यावरण प्रेम को दर्शाता हैं।

तखतगढ़ निवासी भूराराम घांची वर्ष 1997 में प्राध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद से वे पौधरोपण कर रहे हैं। उनकी ओर से तखतगढ़ के गोगरा मार्ग श्मशान घाट पर सैकड़ों पौधें रोपित किए गए जो आज पेड़ का रूप ले चुके हैं।

कोसेलाव निवासी भूराराम सीरवी ने कस्बे के हिंगोटिया हनुमान मंदिर के सामने 200 पौधें लगाकर उनकी नियमित देखभाल कर उन्हें पेड़ बनाया। दोनों के लिए पौधों उनके परिवार के सदस्य के जैसे हैं। नियमित इनकी देखरेख करना इनके जीवन का हिस्सा रहा हैं। उसी का नतीजा हैं कि यह पौधें आज पेड़ बनकर हमारे सामने खड़े हैं।

कोरोना काल में हर आम व खास को जीवन में ऑक्सीजन महत्ता समझा दी। लोगों को रुपए खर्च करने के बाद भी जान बचाने के लिए ऑक्सीजन के सिलेंडर नहीं मिल रहे थे। लेकिन हमें निशुल्क ऑक्सीजन देने वाले पेड़-पौधों के संरक्षण को लेकर हम ज्यादा संवदेनशील नहीं थे। लेकिन कोरोना ने ऑक्सीजन की महत्ता लोगों को समझा दी। उसका सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा की कई जने पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूक हो गए। अपने आस-पास पौधे लगाकर उनकी देखभाल करना शुरू किया जिससे की आने वाली पीढ़ी को बेहतर कल दे सके।

कद्र करों पेड़ों की यह देते हैं हमें प्राणवायु

तखतगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की वैद्य मिनाक्षी पंवार का कहना हैं कि नीम व पीपल का पेड़ तो सर्वाधिक ऑक्सीजन देते हैं। इनकी छांव में बैठने से कई तरह की बीमारियों में भी राहत मिलती हैं। कोरोना काल में कई अन्य प्रजाति के पौधों की मांग बढ़ी है। जो बीमारियों से मुक्ति दिलाता है।