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हनुमानजी की मूर्ति से आधे घंटे तक निकलती रही पानी की बूंदे, दर्शन के लिए पहुंचे लोग, संत बोले ऐसा कभी नहीं हुआ पहले

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श्रीराम भक्त हनुमानजी की एक मूर्ति से अपने आप पानी की बुंदे निकलने लगी। मंदिर में बैठे संत ने यह देखा कि मूर्ति से पानी की बूंदे टपक रही है। इसे देख हर कोई चौक गया और हनुमानजी के दर्शन करने पहुंचे। संत और भक्तों का कहना है कि पहले ऐसा कभी नहीं हुआ।

राजस्थान के जोधपुर के बड़ा रामद्वारा में शनिवार को हनुमान जी की मूर्ति के बाएं पैर व हाथ पर पानी की बूंदे निकलने लगीं। करीब आधा घंटे ऐसा नजारा देखने को मिला। इस पर यहां विराजमान संत और भक्त बोले कि भगवान को पसीना आया है। उन्होंने कहा कि पहले इस मूर्ति से ऐसा कभी नहीं देखने को मिला। यह पहली बार है। जब मूर्ति से पानी की बूंदे पसीने के रूप में टपक रही थीं।.

मूर्ति में पसीने की बात भक्तों को पता चली तो वे दर्शन करने पहुंचें। करीब आधे घंटे तक इस नजारे के लोगों ने दर्शन किए। फिर पानी रुक गया। जियोलॉजी प्रोफेसर एल श्रीवास्तव से बात करने पर उन्होंने बताया कि कुछ स्टोन होते हैं, जो पानी ऑब्जर्व करते हैं, फिर वापस छोड़ते हैं। यह भी उसी का हिस्सा है, जो सामान्य प्रक्रिया है। पानी ऑब्जर्व करने के लिए यहां आसपास पानी होना चाहिए। संतों के अनुसार इस मूर्ति पर जलाभिषेक नहीं होता। सिर्फ सिंदूर चढ़ाया जाता है। ऐसे में यह रहस्य बना रहा कि आखिर पानी आया कहां से। संत आमृताराम ने बताया कि वह रामद्वारे में पिछले बीस साल से रह रहे हैं। रामस्नेही संतों का यहां 250 साल का इतिहास है। इतिहास में पहले ऐसा नजारा देखने को नहीं मिला। इस मूर्ति का इतिहास जाने तो यह 500 साल पूर्व छत्रपति शिवाजी के गुरु रामदास महाराज ने स्थापित की थी। उन्होंने यह भी बताया कि इस मूर्ति पर कभी जलाभिषेक नहीं हुआ। मंदिर की छत पर भी जल भराव या फिर पानी की टंकी नहीं है।

हनुमानजी के पैर पर आती पानी की बूंदे

इसके इतिहास के बारे में बात करते हुए वहां मौजूद संत ने बताया कि रामस्नेही मूर्ति पूजा नहीं करते। इसलिए इस मूर्ति के लिए पास के एक परिसर में मंदिर का निर्माण करवाया था। उस समय इस मूर्ति को यहां से हटा कर उस मंदिर में स्थापित करना चाहा, लेकिन 80 मजदूरों (पत्थर की शीलाएं उठाने वालें ) से भी मूर्ति नहीं उठी। मूर्ति हल्की तिरछी हुई। उठा नहीं सकें इस पर मूर्ति को फिर से सीधा कर यही रहने दिया गया। जियॉलोजी प्रोफेसर के एल श्रीवास्तव के अनुसार जोधपुरी पत्थर में पोर्स यानी छिद्र होते हैं, जो पानी को सोंखते है। यदि यह मूर्ति जोधपुरी पत्थर की बनी है तो वातावरण की नमी को इसने सोंखा होगा, फिर वाष्पीकरण की प्रक्रिया के तहत पानी की कुछ बूंदों को वापस छोड़ा होगा। उन्होंने बताया कि आज की यह घटना भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा हो सकती है।

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