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Udaipur Royal Family : विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक का दस्तूर चित्तौड़ में 25 नवंबर को

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Udaipur Royal Family : उदयपुर व मेवाड़ के पूर्व राज परिवार के मुखिया व पूर्व सांसद महेंद्रसिंह मेवाड़ के निधन के बाद अब उनके बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ को वंश परंपरा के अनुसार राजगद्दी पर बिराजने व राजतिलक की रस्म व दस्तूर 25 नवंबर को शाही परम्परा के तहत होगा। परम्परानुसार ही यह कार्यक्रम चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित फतह प्रकाश महल में 25 नवंबर सुबह 10 बजे होगा। इस कार्यक्रम में मेवाड़ के समस्त पूर्व राजपरिवार से जुड़े सदस्य, पूर्व राव व उमराव के परिवारों के साथ देशभर के विभिन्न पूर्व राजपरिवारों के सदस्य भी शामिल होंगे। मेवाड़ की प्राचीन राजधानी रहे चित्तौड़गढ़ महाराणा विक्रमादित्य के बाद मेवाड़ रॉयल फेमिली की 77वीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी विश्वराजसिंह मेवाड़ के राजतिलक का दस्तूर फिर उसी जगह होने जा रहा है।

Udaipur News : मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के मुखिया महेंद्रसिंह मेवाड़ का 10 नवंबर 2024 को अनन्ता मेडिकल कॉलेज में उपचार के दौरान निधन हो गया था। उसके बाद पैतृक आवास समोर बाग से दूसरे दिन 11 नवंबर को शाही परम्परानुसार अंतिम यात्रा निकाली और अंतेष्टी की रस्म निभाई गई। उसमें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सहित देश व प्रदेश के कई राजनेता, पूर्व राजपरिवारों के सदस्य व मेवाड़ के लोग शामिल हुए थे। महेंद्रसिंह मेवाड़ के निधन के बाद अब 21 नवंबर को बारहवें की रस्म निभाई जाएगी। देलवाड़ा के पूर्व राज परिवार सदस्य प्रज्ञात सिंह देलवाड़ा ने बताया कि कार्यक्रम में देशभर के पूर्व राजघरानों के सदस्य, रिश्तेदार, गणमान्य नागरिकों के अलावा आमजन सहित बड़ी संख्या में लोग शामिल होंगे।

Vishvraj Singh Mewar : चित्तौड़गढ़ में राजगद्दी बिराजने का दस्तूर

Vishvraj Singh Mewar : मेवाड़ जन उदयपुर संस्था के संयोजक कंवर प्रताप सिंह झाला ‘तलावदा’ बताते हैं कि बारहवें दिन की क्रिया जो 21 नवंबर को पूरी हो जाएगी। इसके बाद राजगद्दी पर बिराजने का दस्तूर कार्यक्रम का मुहूर्त 25 नवंबर को निकला है। ज्यादातर लोगों की भावना थी कि यह आयोजन चित्तौड़गढ़ के फतह प्रकाश महल में किया जाए, वहां से सात जिले कवर हो जाएंगे और सभी पहुंच जाएंगे। कार्यक्रम के बाद मेवाड़ वहां से उदयपुर आकर कुल के देवताओं के दर्शन कर एकलिंगजी के दर्शन करेंगे। ‘तलावदा’ ने बताया कि एकलिंगजी में उनका शोक भंग कराया जाएगा। एकलिंगजी के पुजारी उनको रंग देंगे। उसके बाद वे सफेद पाग के बाद में कलर की पाग बांध सकते है। वहां से समोरबाग पैलेस आएंगे जहां पर परिवार और अन्य रंग देंगे उसके बाद वे अगले दिन से रंग वाली पाग बांध सकेंगे।

Mewar Royal Family : सिसोदिया वंश की 77वें राणा होंगे विश्वराज मेवाड़

Mewar Royal Family : उदयपुर पूर्व राजपरिवार का इतिहास पूरी दुनिया के लिए प्रेरणास्पद है, जहां के राजपरिवार के साथ लोगों में देशभक्ति, मातृभूमि के लिए मर मिटने को तैयार हो जाते हैं। महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराजसिंह मेवाड़ अब सिसोदिया पूर्व राजवंश की 77वीं पीढ़ी के राणा होंगे, जो अभी नाथद्वारा के विधायक भी है। वे पहली बार भाजपा से चुनाव लड़े और विधायक बने। इनके पिता स्व. महेंद्रसिंह मेवाड़ भी चित्तौड़गढ़ से सांसद रह चुके हैं, जबकि उनकी पुत्रवधू महिमा कुमारी मेवाड़ अभी राजसमंद की सांसद है। विश्वराज सिंह मेवाड़ आज भी मेवाड़ी बोलते हैं। विश्वराज सिंह अक्सर राजशाही ड्रेस में, हाथों मे तलवार थामे और मेवाड़ी पगड़ी के साथ लोगों के बीच नजर आते हैं। Mahendra Singh Mewar

महाराणा विक्रमादित्य का चित्तौड़ में हुआ था आखिरी राजतिलक

मेवाड़ पूर्व राजपरिवार से जुड़े सदस्य प्रतापसिंह झाला तलावदा ने बताया कि महाराणा सांगा के पुत्र विक्रमादित्य का 1532 में चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अंतिम बार राजतिलक की रस्म हुई थी। उल्लेखनीय है कि राणा सांगा का निधन होने पर उनके ज्येष्ठ पुत्र रतनसिंह का 1528 में राजतिलक हुआ था, लेकिन बूंदी दरबार ने शिकार के बहाने बुलाकर रतनसिंह की हत्या कर दी थी। इस पर 1532 में दूसरे पुत्र विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। फिर दासी पुत्र बनवीर ने षड़यंत्रपूर्वक विक्रमादित्य की भी हत्या कर दी और खुद का राजतिलक करवाकर स्वयं महाराणा बन गया था। लेकिन वैध तरीके से देखा जाए तो 1532 में आखिरी बार विक्रमादित्य का राजतिलक चित्तौड़गढ़ में हुआ था और अब 77वीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी विश्वराजसिंह मेवाड़ के राजतिलक की रस्म चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित फतह प्रकाश महल में होगी। फिर उदयसिंह का जन्म हुआ, तो दासी पुत्र बनवीर ने उसकी भी हत्या करने की साजिश रची, तभी पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह की जगह सुला दिया और उदयसिंह को अपने पुत्र चंदन के कपड़े पहनाकर दुर्ग से निकल गई। वह राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ दुर्ग पहुंची, जहां किलेदार आशा सहाय ने उदयसिंह का राजतिलक कुंभलगढ़ दुर्ग में किया। उसके बाद उदयसिंह ने उदयपुर बसा दिया, जिसे राजधानी घोषित कर दिया। अमरसिंह का राजतिलक गोगुंदा में हुआ था। उसके बाद उदयपुर में ही राजतिलक की रस्म होती रही है। महेंद्रसिंह का राजतिलक 1984 में हुआ था, जो मेवाड़ राजवंश के 76वें उत्तराधिकारी थे।

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