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वृंदावन का अनोखा मंदिर जहां दिन में मनाते हैं श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, बगैर माचिस जलाते आरती

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देशभर में जहां आधी रात को कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। वहीं ब्रज का एक ऐसा प्राचीन सिद्ध मंदिर है, जहां दिन में भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है। आज मथुरा-वृंदावन के सभी मंदिरों में मध्य रात्रि के समय बाल गोपाल का महाभिषेक किया जाएगा। भगवान कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि को हुआ था इसलिए वैदिक परंपरा के अनुसार, उनके जन्म से संबंधित सभी धार्मिक अनुष्ठान मध्य रात्रि में ही किए जाते हैं लेकिन वृंदावन के ठा. राधारमण मंदिर में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव दिन में मनाया जाता है।

इन मंदिरों में भी दिन में मनाया जाता है कृष्ण जन्मोत्सव

वृंदावन भगवान कृष्ण की लीला स्थल रहा है और इस पवित्र भूमि पर भगवान के कई मंदिर बने हुए हैं, जिनका अपना अलग-अलग महत्व है। हालांकि केवल राधारमण मंदिर, श्रीराधादामोदर और श्रीराधारमण के विग्रह वाले शाहजी मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी परंपरागत रूप में से दिन में मनाई जाती है और दिन में ही बाल गोपाल का अभिषेक व आरती की जाती है।

इस तरह शुरू हुई परंपरा

बताया जाता है कि एक समय में सप्त देवालयों की सेवा की जिम्मेदारी श्रीजीव गोस्वामी करते थे और उनको ठाकुरजी की सेवा में काफी वक्त लगता था। इसलिए राधा दामोदर, श्री राधारमण और श्री राधा गोकुलानंद मंदिर में जन्माष्टमी की सेवा दिन में और बाकी की सेवा रात में करना शुरू कर दिया। उनके द्वारा शुरू की गई परंपरा वर्तमान में भी कायम है। राधारमण मंदिर में भगवान का स्वरूप शालिग्राम शिवा से श्रीराधारमण के स्वरूप का स्वयं प्राकट्य हुआ है। इस मंदिर में श्रीविग्रह, गोपीनाथ और गोविंद देव मंदिर के दर्शन होता है। माना जाता है कि ऐसा अद्भुत नजारा ब्रज के किसी ओर मंदिर में देखने को नहीं मिलता।

यह है मान्यता

मान्यता है कि आधी रात को नींद से जगा कर उनके बेटे का अभिषेक किया जाना, माता यशोदा का पसंद नहीं है। इसी मान्यता के तहत ठा. राधारमण मंदिर में दिन के समय कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सुबह 8 बजकर 30 मिनट से प्रारंभ होता है। सबसे पहले गोस्वामी यमुना तट से यमुना का जल लेते हैं और फिर दूध, शहद, घी, दही, शर्करा आदि वस्तुओं से ठाकुरजी का अभिषेक होता है। भगवान के अभिषेक में 2000 लीटर दूध का अभिषेक होता है।

मंदिर में नहीं होता माचिस का प्रयोग

मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर में प्रभु की पूजा में माचिस का भी उपयोग नहीं किया जाता। बताया जाता है कि 500 साल पहले मंदिर की पहली आरती के लिए अग्नि वैदिक मंत्रों के माध्यम से की गई थी। उसके बाद भगवान कृष्ण ने गोपाल भट्ट स्वामी के मन में यह भाव पैदा किया कि आज से इसी अग्नि के माध्यम से आरती की जाएगी। इसी कारण आज तक इस मंदिर में माचिस का प्रयोग नहीं किया गया।

मंदिर में नहीं होता माचिस का प्रयोग

मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर में प्रभु की पूजा में माचिस का भी उपयोग नहीं किया जाता। बताया जाता है कि 500 साल पहले मंदिर की पहली आरती के लिए अग्नि वैदिक मंत्रों के माध्यम से की गई थी। उसके बाद भगवान कृष्ण ने गोपाल भट्ट स्वामी के मन में यह भाव पैदा किया कि आज से इसी अग्नि के माध्यम से आरती की जाएगी। इसी कारण आज तक इस मंदिर में माचिस का प्रयोग नहीं किया गया।

ऐसे बनता है ठाकुरजी का भोग

आज भी ठाकुरजी की आरती के लिए उसी अग्नि का प्रयोग किया जाता है, जो 500 साल पहले मंत्रों के जरिए प्रकट हुई थी। ठा. राधारमण मंदिर की रसोई में सेवायत खुद अपने हाथों से ठाकुरजी का प्रसाद तैयार करते हैं और किसी भी बाहरी व्यक्ति का मंदिर की रसोई में प्रवेश नहीं करवाया जाता। मंदिर में विग्रह स्थापना के दौरान पैदा हुई अग्नि से ही रसोई में ठाकुरजी का भोग बनाया जाता है।

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