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Eid Ul Zuha : क्यों मनाते हैं बकरा ईद, क्या है इसके पीछे कुर्बानी का कारण और इतिहास

Bakra Eid History https://jaivardhannews.com/why-celebrate-the-festival-of-bakra-eid/

मुस्लिम धर्म में बकरा ईद (Bakra Eid) को बकरे की कुर्बानी के रूप में मनाया जाता है। इसे ईद उल ज़ुहा या ईद अल अज़हा (Eid ul zuha or eid al azha) का त्यौहार भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस त्यौहार को ईद उल फीतर के करीब 2 महीने और 10 दिन बाद मुस्लिम धर्म में बकरा ईद का पर्व मनाया जाता है।

बता दें कि, बकरा ईद के दिन सभी मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) के लोग अपने घर में पल रहे बकरे की बली देते हैं और जिनके घर में बकरा नहीं होता है वो ईद से कुछ दिन पहले बकरा खरीद कर लाते हैं और उसकी बली दी जाती है। बली देने के बाद इसका मीट बनाया जाता है, जिसे गरीबों (Poor People), रिश्तेदारों (Relatives) और दोस्तों (Friend) में बांटा जाता है। साथ ही एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हुए पुराने गिले शिकवे भूलाए जाते हैं और सभी लोग राग द्वेष भूलाकर भाईचारे से रहने लगते हैं।

आखिर क्यों मनाया जाता है बकरा ईद का पर्व

बईद का यह त्यौहार मुसलमानों के पैग़म्बर और हज़रत मोहम्मद के पूर्वज हज़रत इब्राहिम की दी गई कुर्बानी को याद के तौर पर मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब हज़रत इब्राहिम अल्लाह की भक्ति कर रहे थे, तो उनकी भक्ति से खुश होकर उनकी दुआ को कबूल किया था, जिसके बाद अल्लाह ने उनकी परीक्षा ली। इस परीक्षा में अल्लाह ने इब्राहिम से उनकी सबसे कीमती और प्यारी चीज की बली देने की मांग की।

तब हज़रत इब्राहिम दे रहे थे अपने बेटे की बली

हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह की बात मान कर अपनी सबसे प्यारी चीज यानी की अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने का निर्णय कर लिया। इसके बाद जब हज़रत इब्राहिम अपने बेटे की बली देने जा रहे थे, इतने में ही अल्लाह ने उनके बेटे की जगह एक बकरे को रख दिया, जिसके बाद जो परीक्षा अल्लाह इब्राहिम की ले रहे थे, वो सफल हो गया और इस दिन को बकरा ईद के रुप में मनाया जाने लगा।

कैसे मनाई जाती है बकरा ईद

इस दिन सभी मुस्लमान सुबह उठकर नमाज पढ़ने जाते हैं। साथ ही कब्रिस्तान में पूर्वजों की कब्र पर पुष्प, लोबान चढ़ाकर फातिहा पढ़ी जाती है। इसके बाद अपने घर पर पल रहे बकरे की बली देते हैं और जिन लोगों के पास बकरा नहीं होता है वो खरीद कर बकरे को लेकर आते हैं और उनकी बली देते हैं। बकरे की बली देने के बाद उसका मीट बनाया जाता है जिसके बाद सबसे पहले उसे गरीबों में दान किया जाता है। साथ ही दोस्तों और रिश्तेदारों को ईद मुबारक कहकर मीट दिया जाता है।

बकरीद ईद का इतिहास (History of Bakrid Eid)

हजरत इब्राहिम को अल्लाह का बंदा माना जाता हैं, जिनकी इबादत पैगम्बर के तौर पर की जाती है। इन्हें इस्लाम मनाने वाले अल्लाह का दर्जा दिया जाता है। एक बार खुदा ने हजरत मुहम्मद साहब का इम्तिहान लेने के लिए आदेश दिया कि हजरत अपनी सबसे अजीज की कुर्बानी देंगे, तभी वे खुश होंगे। हजरत मुहम्मद साहब का सबसे खास बेटा था। वे बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। जब कुर्बानी का समय आया तो हजरत इब्राहिम ने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे की कुर्बानी दी, लेकिन जब आँखों पर से पट्टी हटाई तो बेटा सुरक्षित था। अहम बात ये है कि इब्राहीम के अजीज बकरे की कुर्बानी अल्लाह ने कुबूल की। अल्लाह ने खुश होकर बच्चे की जान बक्श दी। तब से बकरीद की पंरपरा शुरु हो गई।

कब हुई शुरुआत (How Bakri Eid started)

पैगंबर मुहम्मद ने सन् 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद हुई थी। पैगंबर हजरत मोहम्मद ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की। इसकी खुशी में ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की नमाज अदा होने लगी। इसके बाद से दान या जकात दिया जाने लगा।

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