जब भी आपके आसपास कोई घटना होती है जैसे चोरी, डकैती या मर्डर तो सबसे पहले इसकी जानकारी को दी जाती है। पुलिस को लोगों की सुरक्षा के लिए है। अगर आज लोग आराम से अपने घरों में चौन की नींद सो पाते हैं तो इसके पीछे भी पुलिस का बड़ा रोल होता है।

पुलिस की वर्दी में कंधे पर रस्सी जैसी वस्तु सीटी लटकाने की डोरी होती है जिसे ‘लैनयार्ड (Lanyard) कहते हैं। दूसरे कंधे पर पिस्टल के लिये भी लैनयार्ड पहनी जा सकती है। पुलिस की यूनिफॉर्म में लगी हुई वो रस्सी ऐसे ही नहीं लगाई जाती। उस रस्सी का अपना एक काम होता है। अगर आपने भी कभी इस रस्सी को ध्यान से देखा होगा तो आप यह जानते होंगे कि उनकी वो रस्सी पुलिस वालों की पॉकेट में डली हुई होती है। उनकी उस रस्सी के साथ सीटी बंधी हुई होती है, जो सीधे उनकी जेब में रखी होती है।

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रस्सी में लगी सीटी का क्या काम?

दरअसल, पुलिस उस सीटी का इस्तेमाल किसी तरह की इमरजेंसी पड़ने पर करते हैं। जैसे अगर किसी पुलिस वाले को इमरजेंसी स्थिति में किसी गाड़ी को रोकना हो या फिर किसी आपातकालीन स्थिति में उन्हें अपने किसी सहयोगी पुलिस वाले को कोई संदेश देना हो, तब वो आपको इस सीटी का इस्तेमाल करते हुए नजर आएंगे।

भारतीय पुलिस की वर्दी का रंग खाकी क्यों होता है?

भारतीय पुलिस की वर्दी देश की शान का प्रतीक है। कहीं भी खाकी रंग दिखते ही दिमाग में पुलिस की छवि आ जाती है। सन् 1847 के पहले भारतीय पुलिस की वर्दी का रंग खाकी की जगह सफ़ेद हुआ करता था। सफ़ेद रंग तो शांति का सन्देश देता है।फिर ऐसी क्या जरुरत पड़ी कि वर्दी का रंग बदलकर खाकी कर दिया गया।

ब्रिटिश शासन काल से बदला यूनिफार्म का रंग

भारत में जब ब्रिटिशर्स का शासन था उस समय भारतीय पुलिस की वर्दी का रंग सफ़ेद था। सफ़ेद कलर होने के कारण ड्यूटी के दौरान वर्दी पर चाय, धूल मिटटी या अन्य प्रकार के दाग धब्बे लगने से वर्दी जल्दी गन्दी हो जाती थी। वर्दी रोजाना साफ करनी होती थी। कर्मचारी काफी तंग हो जाते थे जिसकी शिकायत पुलिस कर्मियों को अक्सर रहती थी। तभी से यूनिफार्म के रंग बदलने की योजना के बारे में विचार किया गया। रंग बदलने के लिए डाई का इस्तेमाल किया गया और वर्दी का रंग सफ़ेद से खाकी कर दिया गया।

चाय की पत्तियों से दिया वर्दी को खाकी रंग 

उस समय वर्दी को डाई करने के लिए चाय की पत्तियों या कॉटन फैब्रिक कलर का इस्तेमाल किया गया था। जिससे वर्दी को खाकी रंग में बदला जा सका। यह कलर पुलिस के आला अधिकारी सर हैरी लैंसडेन को काफी पसंद आया क्योंकि इसमें धूल मिटटी आदि के दाग धब्बे पहले की तुलना में कई मायनों में काफी कम नजर आ रहे थे। कहते हैं कि देखने में भी यह कलर पुलिस कर्मचारियों को काफी आकर्षित लग रहा था। बस यही वजह थी जिससे भारतीय पुलिस की वर्दी खाकी कर दी गयी.