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विश्व पर्यावरण दिवस : प्रकृति ही परमात्मा, वसुंधरा से वन-संपदा का ना होने दे खात्मा

कैलाश सामोता पर्यावरणविद, शिक्षक, कुंभलगढ़ किला

राजसमन्द। संपूर्ण विश्व जन-समुदाय को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरुक एवं सचेत करने के उद्देश्य से वर्ष 2021 की थीम पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली यानी कि पृथ्वी को फिर से अच्छी अवस्था में बहाल करने के साथ विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन कर रहा है। इसके लिए वर्ष 2021 में उन सभी प्राकृतिक प्रक्रियाओं और उभरती हुई हरित तकनीकी पर ध्यान दिया जाएगा, जो दुनिया के पारिस्थितिक तंत्र को फिर से कायम करने में मददगार साबित हो। वर्तमान वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल में, दुनिया के 192 देशों ने लगभग 36 लाख मानव जिंदगीयों को खोया है और लगभग 18 करोड लोगों ने कोरोना महामारी का सामना किया है। कोरोना की मानव जाति के साथ जारी इस जंग में न जाने अभी और कितनी जिंदगियां समाप्त होंगी। बावजूद, इसके मानव की प्रकृति के साथ खिलवाड़ व अमानवीय गतिविधियां थमने का नाम नहीं ले रही है। प्रकृति के बिना मानव जीवन संभव नहीं है। संपूर्ण मानवता का अस्तित्व, प्रकृति पर ही निर्भर है इसलिए स्वस्थ व सुरक्षित पर्यावरण के बिनाए मानव जाति के अस्तित्व की कल्पना अधूरी है। सरकारें चाहे पर्यावरण संरक्षण का कितना ही ढिंढोरा पीटती रहे लेकिन वन माफियाओं के आगे नतमस्तक ही नजर आती हैं ! ऐसी हालात में पर्यावरण संरक्षण और हरित संपदा की रक्षा के दावों का कोई औचित्य नहीं रह जाता ! यदि यही हाल रहा तो धरा से जीव-जंतुओं की हजारों प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी और धरा की परिस्थितिकी तंत्र बहाली के बजाय, बदहाली का नजारा देखने को मिलेगा।

वन-संपदा है धरती का शृंगार, रोको इसका संहार
संयुक्त राष्ट्र संघ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार हर साल संपूर्ण धरा पर दुनिया में 1 प्रतिशत की दर से वृक्ष विनाश या जंगल काटे जा रहे हैं और यदि यही क्रम सतत रूप से जारी रहा तो आगामी 20 वर्षों में दुनिया से 40 प्रतिशत जंगल साफ हो जाएंगे। देश में आज सरकार ही जंगलों के खात्मे में लगी है, जिसके दुष्परिणाम पर्यावरण पर पड़ रहे हैं और परिवेश का पारिस्थितिकी असंतुलित होता जा रहा है। वन विनाश की घटनाओं से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण स्तर में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है जिसका हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ! इसलिए धरती पर प्राणी जातियों के अस्तित्व के लिए, वन-संपदा को जीवित रखना बेहद जरूरी है। जंगलों की कटाई से न केवल पेड़ों का खात्मा हो रहा है, बल्कि वन्यजीवों की आवास भी खत्म हो रहे हैं। पर्यावरण से हरियाली गायब होने के कारण, वायुमंडल में ज़हरीली गैसों का स्तर लगातार बढ़ रहा है और जैव विविधता की स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है। इस तरह मानव अपनी अमानवीय गतिविधियों को बेलगाम कर जलवायु परिवर्तन, भूमंडलीय तापन, ग्लेशियरों के पिघलने व पीछे खिसकनेए ग्रीन-हाउस गैसों में बढ़ोतरी, ओजोन परत का क्षरणए तूफान, चक्रवात, ऋतु परिवर्तन, बाढ़, सूखाएलू, जैसे प्राकृतिक प्रकोपो के जोखिमों को और अधिक बढऩे का आमंत्रण दे रहा है।

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भूमंडलीय तापन में बढ़ोतरी से समुद्र मचा रहा है तबाही…
धरा पर तेजी से हो रहे वृक्ष विनाश के कारण धरती तप रही है और इसकी तपन से समुद्रों में खलबली व उफान की स्थिति बन रही है। यह उफनती समुद्री लहरें, चक्रवात व तूफानों के रूप में धरती पर तबाही मचा रही हैं। विगत एक वर्ष में ही अम्फन, निसर्ग, निवार, तौकते, यास, नामक तूफानों द्वारा धरा पर मचाई तबाही का मंजर सब ने देखा है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ और तेज हवाओं के तूफान अधिक भयावह होते जा रहे हैं और ऐसे तूफानों का प्रमुख कारण, समुद्र के गर्भ में मौसम की गर्मी से हवा का गर्म होना है। इससे कम वायुदाब का क्षेत्र बनता है और लहरें आपा खो देती हैं। विगत कुछ वर्षों में समुद्र से उठने वाले तूफानों व चक्रवातो की संख्या व तीव्रता में बढ़ोतरी, जीवन के लिए बेहद ही चिंताजनक स्थिति निर्माण की ओर इशारा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी का औसतन तापमान 1800 के दशक की तुलना में सतत रूप से 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है तथा वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। इस तपन के परिणामस्वरूप धरा पर जल संकट व महामारिया बढ़ेगी, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आएगी, धु्रवों की बर्फ निकलेगी, जिससे समुद्रों का विस्तार व जलस्तर बढ़ेगा और दुनिया के कई देशों में जल प्रलय के हालात बनेंगे। औद्योगिकीकरण व प्रदूषण से निकल रही ग्रीन-हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि से भी धरा की तपन बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ी है, जिससे ग्लेशियरों की बर्फ लगातार पिघल रही है। इस प्रकार समूची दुनिया पेरिस जलवायु समझौते का अपमान करते जा रही है तथा यदि प्रकृति में हो रही हलचल को नजरअंदाज करने का यही क्रम जारी रहा तो वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक परिणाम बेहद ही खतरनाक देखने को मिल सकते हैं, जो संपूर्ण कायनात के लिए खतरा है।

धरा को कचरे का ढेर बनने से बचाएं
वैश्विक तौर पर आबादी की अनियंत्रित बढ़ोतरी के चलते प्रति व्यक्ति कचरा उत्सर्जन की मात्रा भी बढ़ती जा रही है। औद्योगिक इकाइयों, वाहनों, सामाजिक व घरेलू कार्यों द्वारा प्रकृति में प्लास्टिक, ठोस, गिला, गैसीय तथा इलेक्ट्रॉनिक कचरा निरंतर छोड़ा जा रहा है, जिससे ना केवल प्राकृतिक जल स्रोत प्रदूषित हुए हैं बल्कि मृदा, समुद्र व वायुमंडल बुरी तरह से प्रदूषित हो चुके है। परिणामस्वरूप जलीय, वायुवीय एवं स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र की साम्यावस्था प्रभावित होकर उनमें असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गई हैं। इसी का परिणाम है कि आज धरा पर शुद्ध पेयजल के लिए किल्लत व मारामारी देखी जा रही है और परिवेश में सांस लेना दूभर हो गया है तथा वायुमंडल में प्राण वायु ऑक्सीजन के लिए कोहराम मचा हुआ है। मानव की यंत्रों पर निर्भरता, तकनीकी व डिजिटल उपकरणों के प्रचलन ने धरा को इलेक्ट्रॉनिक कचरे के ढेर के रूप में बदल दिया हैं, इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निस्तारण एवं पुनर्चक्रण की योजना आज तक सरकारों के पास नहीं है। इसलिए वैश्विक स्तर पर ठोस, गीले व इलेक्ट्रॉनिक कचरे के संग्रहण, निस्तारण व स्थाई प्रबंधन की रणनीति बनाई जानी चाहिए ताकि धरा पर जीवन संकट को कम किया जा सके।

जलवायु परिवर्तन, प्रकृति और मानव के विलगाव की ही परिणति
असल में वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति, प्रकृति और मानव के विलगाव की ही परिणति है। जब तक जल, जंगल, जमीन के अति दोहन पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक जलवायु परिवर्तन से उपजी चुनौतियां बढ़ती ही चली जाएंगी और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जारी संघर्ष अधूरा ही रहेगा। मानव ने सभ्यता के विकास के दौरान प्रकृति के साथ बहुत ही छेड़छाड़ की है। प्रकृति की सहन करने की अपनी एक सीमा होती है। कोरोना संकट को संकेत मानकर, मानव मात्र को समझ जाना चाहिए कि बेतहाशा व विस्फोटक रूप से बढ़ रही मानव जनसंख्या व बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने की दिशा में गंभीर प्रयास हो। पृथ्वी युवा प्रकृति को दिए घावों को भरने के लिए, अब हमें धरा पर अधिक से अधिक वृक्षवर्धन कर, उनके संरक्षण का संकल्प लेना होगा। ऐसा करने पर ही हमारी वसुंधरा पर सुखद व स्वस्थ जीवनयापन की स्थिति तैयार हो सकती है। प्रकृति देती है हमें सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे।

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