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Yam cultivation : मेवाड़ का श्रीगंगानगर कहे जाने वाले रेलमगरा क्षेत्र के रतालू की डिमांड मध्यप्रदेश और गुजरात तक है। एक ही गांव में 500 से 700 परिवार रतालू की खेती कर रहे हैं, जिनसे गुजरात, एमपी व उदयपुर की मंडियों के व्यापारी या दलाल सीधे संपर्क कर रतालू की गाड़िया भर ले जाते हैं। खास बात यह है कि रतालू के साथ बीच में खाली जगह पर किसान रिजके की फसल भी ले रहे हैं, जिससे किसानों को दोहरा मुनाफा हो रहा है। सर्वाधिक रतालू की खेती बामनिया कलां गांव में हो रही है, जहां पर 400 परिवार इसमें जुटे हुए हैं। इसके अलावा गोगाथला, मेघाखेड़ा, मालीखेड़ा, कुरज, मऊ, जीतावास, बैठुंबी, पनोतिया, गिलूंड, सिंदेसर कला, कुंडिया में भी कुछ किसान रतालू की बुवाई कर अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। रतालू की बुवाई मार्च माह में करने के बाद नवंबर माह में निकालते हैं। अभी रतालू निकालकर सीधे मंडियों में बेचने का कारोबार जोरों पर चल रहा है। एक बीघा के खेत में करीब चार क्विंटल रतालू की बुवाई करने पर आसानी से 40 से 50 क्विंटल रतालू की उपज आसानी से हो जाती है।

ratalu ki sabji : बामनिया कलां गांव में उगने वाले रतालू की सब्जी काफी स्वादिष्ट होती है। यह लाल रतालू है, जो अन्य की अपेक्षा काफी बेहतर है। खास तौर से नदी किनारे गांव होने से खेतों की उर्वरक क्षमता भी काफी अच्छी है। इसलिए बामनिया कला पंचायत सहित आस पास के गांवों में रतालू की खेती काफी लोग करने लगे हैं।

kheti : रतालू के लिए रेतीली मिट्टी कारगर

Agro Success Story : बनास नदी के किनारे बसे गांवों के आस पास की मिट्टी रेतीली और दोमट मिट्टी होने से रतालू के लिए काफी उपजाऊ है। इसी मिट्टी में यह फसल काफी ग्रोथ करती है। रतालू की बेल को बांस के सहारे ऊपर चढ़ाया जाता है। यह करीब 30 फीट भी ऊंचा जा सकता है। वहीं पानी की पर्याप्त मात्रा में चाहिए होता है।

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Agro Success Story : इंदौर में सफेद, तो गुजरात में लाल रतालू की मांग

ratalu : रतालू की दो किस्म सफेद और लाल रंग का होता है। लाल रंग का रतालू बामनिया कला गांव में सबसे ज्यादा होता है। वहीं सफेद रतालू तहसील क्षेत्र के सभी गांवों में होता है। सफेद रतालू की मांग इंदौर में होती है। इंदौर का प्रसिद्ध नाश्ता गराडू में सफेद रतालू का उपयोग किया जाता है। वहीं महिलाएं सफेद रतालू का उपयोग सब्जी, चिप्स, वेफर बनाने में करती है। लाल रतालू सफेद के बजाए खाने में स्वादिष्ट लगता है। इसकी मांग अहमदाबाद, वड़ोरदा व सूरत में सबसे ज्यादा रहती है। अहमदाबाद मंडी के व्यापारी और दलाल भी लाल रतालू की मांग करते है। इसका उपयोग भी सब्जी, चिप्स व वेफर बनाने का कार्य किया जाता है।

Agriculture Success : एक बीघा में 15 हजार का खर्चा

Agriculture Success : रतालू की एक बीघा में बुवाई करने पर 15 हजार का खर्चा आता है। वहीं इससे आय हजारों में होती है। रोगों से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की दवाइयों का छिडक़ाव किया जाता है। सफेद रतालू का होलसेल भाव 20 से 40 रुपए किलो और लाल रतालू का होलसेल भाव 40 से 50 रुपए किलो है। जबकि बाजार में इसका भाव 80 से 100 रुपए किलो बिकता है। किसानों के साथ सब्जी व्यापारियों की आय लाखों में होती है।

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kapas ki kheti : एक हैक्टेयर में एक टन रतालू की पैदावार

Ratalu Vegetable : प्रति हैक्टेयर में अनुमानित एक टन रतालू की उपज होती है। इस तरह से रेलमगरा क्षेत्र के 130 हैक्टेयर में एक लाख 30 हजार किलो रतालू की पैदावार हर साल होती है। नवंबर माह के अंतिम दिनों में रतालू जमीन से निकालने का काम शुरू हो जाता है। जो फरवरी माह तक चलता रहता है। इसके लिए क्षेत्र के सब्जी विक्रेता व बाहर से आए दलाल क्षेत्र के किसानों के संपर्क में रहते है। उनसे सीधा संपर्क करके खेतों में ही रतालू निकालने श्रमिक लगाकर उनकी सफाई करवाकर उनको कर्टन में पैकिंग करवाते है। इसके अलावा राजसमंद, उदयपुर, नाथद्वारा, फतहनगर की मंडियों में भी रतालू जाता है।

farming tips : किसान बन रहे आत्मनिर्भर

बामनिया कलां व आस पास के क्षेत्र में रतालू की सर्वाधिक खेती होती है। नकदी फसल के प्रति किसानों में रुझान बढ़ रहा है, मगर सरकार व कृषि विभाग को कुछ अनुदान देना चाहिए, ताकि किसानों को आर्थिक रूप से सम्बल मिल सकें।

किशन सालवी, सरपंच बामनिया कलां

Ratalu in english Yam : रतालू को अंग्रेजी में Yam कहते हैं।