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कैलाश सामोता
“रानीपुरा” पर्यावरणविद

शिक्षक, कुंभलगढ़, राजसमंद

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, परंपरागत भारतीय खानपान, स्वास्थ्य के लिए वरदान…
राजसमंद. वैश्विक महामारी कोरोना कालखंड के बीच आमजन में सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन के उत्पादन और उपभोग के प्रति ध्यानाकर्षण करने के लिए, आज संपूर्ण विश्व “स्वस्थ कल के लिए आज का सुरक्षित भोजन” विषय पर केंद्रित “विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस-2021” का आयोजन वर्चुअली माध्यम से कर रहा है। खाद्य सुरक्षा यह सुनिश्चित करती है कि खाद्य सामग्री के उपभोग से पहले फसल उत्पादन, भंडारण और वितरण तक खाद्य श्रंखला का हर स्तर पूरी तरह से सुरक्षित हो। संयुक्त राष्ट्र संघ की दो एजेंसियों विश्व स्वास्थ्य संगठन और खाद्य व कृषि संगठन को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों का नेतृत्व करने और पोस्टिक खाने के प्रति लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी दी है। विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की तीसरी वर्षगांठ पर लोगों को कोविड-19 महामारी के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा और पोषण की सभी महत्वपूर्ण जानकारियों जैसे खाध जनित बीमारियों और जोखिमों की रोकथाम, जांच और प्रबंधन के प्रति लोगों को जागृत करना तथा उचित कार्रवाई करना है। खाद्य सुरक्षा यह सुनिश्चित करती है कि धरती पर रहने वाले हर व्यक्ति को अच्छा व पौस्टिक आहार मिले, ताकि किसी की सेहत प्रभावित ना हो और सभी स्वस्थ जीवन जी सकें। आज संपूर्ण विश्व को यह तय करना होगा कि मानव को पोस्टिक भोजन, शुद्ध हवा, स्वच्छ पानी व स्वास्थ्य की गारंटी प्रदान कैसे उपलब्ध करवाई जाए !

कुपोषण से हो रहा इंसान का मरण…
वर्तमान समय में गरीब तथा अमीर दोनों ही श्रेणी के लोग कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दूषित खाद्य व संक्रमित भोजन से हर साल 10 में से एक व्यक्ति बीमार होता है। दुनिया भर में कुपोषित 60 करोड़ से अधिक लोगों में से 30 लाख लोग सालाना बेसमय कीमती जीवन से हाथ धोते हैं। अकेले भारत देश में प्रतिवर्ष 4.5 लोगों की मौत, कुपोषण या आहार संबंधी संक्रमण से होती है, जिनमें 1.25 लाख बच्चे असमय काल के ग्रास में चले जाते हैं। मृत्यु के इन आंकड़ों को कम करने के लिए खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता के प्रति विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

खाद्य उत्पादन एवं प्रसंस्करण की प्रक्रिया पर हो नियंत्रण…
वर्तमान समय में विभिन्न खाद्य सामग्रियों के उत्पादन से लेकर, प्रसंस्करण एवं उपभोग की प्रक्रिया संक्रमित व जहरीली हो चुकी है, जैसे- अनाज, सब्जियां व फल उपजाने के लिए कृषको द्वारा बेतहाशा व अनियंत्रित रूप से रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक प्रचलन में लिए जा रहे हैं, जिसके कारण रसोई से लेकर थाली में परोसी जाने वाली हर खाद्य सामग्री विषैली हो गई है। फसल की पैदावार, संग्रहण, प्रसंस्करण व वितरण तक रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है जो भोजन के माध्यम से मानव शरीर तक पहुंचकर उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इतना ही नहीं खाद्य सामग्री में अखाद्य पदार्थों की मिलावटखोरी के चलते थाली और भी अधिक जहरीली हो गई है जिस पर नियंत्रण बेहद जरूरी है।

डिब्बाबंद जंक फूड बना, स्वास्थ्य के लिए खतरा…
वर्तमान चकाचौंध भरी जिंदगी व निर्माता कंपनियों के ललचाने वाले विज्ञापनों द्वारा बाजार में परोसे जा रहे, डिब्बाबंद सामग्री जैसे- घी, तेल, पनीर, दूध, बटर, शहद, मसाले, आदि में मिलावट कर बेचना, एक आम बात हो गई है। आज जंक फूड के बढ़ते प्रचलन से हर परिवार व उनके नौनिहाल कुपोषित होते जा रहे हैं। बच्चों की जिद के आगे मां-बाप मजबूर होकर, खुद ही उन्हें जहर लाकर परोस रहे हैं। विशेषकर कुरकुरे, चिप्स, नमकीन, कोल्ड ड्रिंक्स, पेटीज, पेस्ट्री, इडली, डोसा, चॉकलेट, पिज़्ज़ा, चाऊमीन, नूडल्स, सॉस, बर्गर, चाट मसाला, सॉफ्ट ड्रिंक्स, केक जैसी चटकीली भट्कीली खाद्य सामग्रियों ने बच्चों में कुपोषण की स्थिति ला दी है तथा इनके दुष्प्रभाव के रूप में नौनिहालों की पाचन प्रक्रिया व रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो चुकी है। इसलिए जंक फूड से अपने नौनिहालों के स्वास्थ्य को बर्बाद होने से बचाने के लिए जंक फूड का प्रचलन पूर्णतया बंद कर देना ही बेहतर व स्वास्थ्यवर्धक साबित होगा।

भारतीय खानपान, सेहत के लिए वरदान…
विश्व में भारतीय खानपान की पद्धति अनुकरणीय है, जिसमें भोजन को पूज्य व ऊर्जा दाता के रूप में अन्न भगवान मानकर खाया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि संसार में कोई व्यक्ति भूखा नहीं सोए। “जैसा खाए अन्न, वैसा ही बने मन” यानी कि खानपान का व्यक्ति के मन पर पड़ता है। हमारे देश में खाधान्न की पैदावार से लेकर, आहार तक की सभी प्रक्रिया स्वच्छ, प्राकृतिक व संतुलित रही है। भोजन में शाकाहार, मोटा अनाज, फलाहार व शुद्ध पशु उत्पाद का सेवन करने की परंपरा रही है, जो व्यक्ति के शरीर को स्वस्थ व रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। इसलिए हमें हमारे बेहतर स्वास्थ्य के लिए विदेशी खानपान पद्धति को तिलांजलि देकर, हमारी लुप्त प्राय हो चुकी परंपरागत भारतीय खानपान पद्धति को पुन: अपनाना होगा।