Charbhujanath Temple History : मेवाड़ के चार धामों में सम्मिलित चारभुजा मंदिर जिले में सबसे प्राचीन हैं हजारों वर्षों से वहां जलझूलनी मेला लगता है, इसका उल्लेख मंदिर के बाहर लगे शिलालेखों में भी है। शिलालेख से ही पता चलता है कि मंदिर लूटने के दौरान मंदिर की सुरक्षार्थ सेवकों के काम आने पर उनकी स्त्रियां मंदिर के बाहर सती हुई सती चबूतरे के शिलालेख में बताया है कि वैशख शुक्ल पक्ष तृतीया वि.सं. 1873 तारीख 30 अप्रैल 1916 ईस्वी के अनुसार सेवक सुजाजी बगड़वाल, जगाजी चौहान, दौलाजी चौहान और लाखाज पंचोली के काम आने के बाद उन चारों की पत्नियां सती हुई, इनकी प्रतिमा आज भी लगी है।
Shri Charbhuja Temple Rajsamand इतिहासकार शिवपालसिंह चुंडावत ने बताया कि पांडवकालीन मंदिर लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पुराना है और भगवान के चांदी के पाट लगभग दो हजार वर्ष पुराने होने का वर्णन है। गांव का पुराना नाम बदरी, चारभुजा बद्रीनाथ। मंदिर में भगवान विष्णु के चतुर्भुज अवतार की पूजा होती है और गुर्जर समाज के पुजारी सेवा करते हैं। शिलालेख मैं इस गांव का पुराना नाम बदरी लिखा है और उसमें श्री चारभुजानाथ जी को बद्रीनाथ भी दर्शा रखा है। कालांतर में पुजारी सूराजी बगड़वाल को ठाकुर जी मिले और उसके बाद देसूरी के तंवर वंश बोराणा राजपूतों ने गढ़वीर कस्बा बसाया, जिसमें चौहान, परमार, खरवड़, सिसोदिया, सोलंकी राजपूतों की जागीर में रहने का उल्लेख है। अंत में यह गांव देसूरी के सोलंकियों की जागीर में रहा और वि.सं. 1785 सन 1728 में देसूरी रूपनगर के तत्कालीन शासक प्रतापसिंह सोलंकी ने गांव को हमेशा के लिए श्री चारभुजानाथ जी को धर्मार्थ दे दिया था।
Charbhuja Temple Kumbhalgarh : विदेशी आक्रांताओं को खदेड़ा, मराठा सेनापति ने लूटा
Charbhuja Temple Kumbhalgarh : पांडव कालीन भगवान चारभुजा मंदिर को कई बार लूटने का प्रयास किया गया, लेकिन मेवाड़ की सेना ने हर बार विदेशी आक्रांताओं को खदेड़ कर असफल किया। मराठाकाल के दौरान वि.सं. 1873 में ग्वालियर के सिंधिया शासकों के अधीनस्थ मेवाड़ के सूबेदार आंबाजी इंगले के सेनापति तांत्या गंगाधर राव ने चारभुजा मंदिर को दो बार लूटा। उसके बाद मराठा सूबेदार अमृत राय ने कठोर कदम उठाते हुए हिंदू और मुस्लिमों को दुबारा मंदिर न लूटने के लिए शिलालेख लगवाकर राजाज्ञा उत्कीर्ण करवाई। उसके बाद मराठाओं ने वापस कभी नहीं लूटा।
Charbhujaji temple history : दो शिलालेखों में मंदिर सुरक्षा का वर्णन
Charbhujaji temple history : भगवान चारभुजा मंदिर के बाहर लगे तीन शिलालेख में प्रथम शिलालेख महाराजा जयसिंह और उनके पुत्र कुंवर अमरसिंह के मध्य हुए भगवान चारभुजानाथ के समक्ष हुए समझौते का वचन पत्र बना रखा है। एक अन्य शिलालेख में राचत जाति ने लोगों की प्रतिज्ञा है जिसमें भविष्य में चारभुजा जी के पुण्याचं भेंट गड़बोर वासुंदा, जबरिया आदि गांवों में किसी भी प्रकार का उजड़-बिगाड़ नहीं करेंगे लिखा है।
Charbhuja Garhbor : मालवा तक मंदिर की संपति
Charbhuja Garhbor : मेवाड़, मारवाड़, मालवा और हाड़ौती के शासकों ने अपने अपने क्षेत्र में श्री ठाकुर जी के नाम भूमिदान किया है तथा अनेक शासकों ने मंदिर को श्रद्धानुसार दान दिए जाने के उल्लेख रजतपत्रों पर अंकित है। मूल मंदिर निर्माण को लेकर कोई वर्णन नहीं है, लेकिन वि.सं. 1501 के शिलालेख के अनुसार प्राचीन मंदिर का समय समय पर श्रद्धालुओं ने जीणोद्धार कराया है।
Charbhuja Nath Temple Rajsamand : इन ठिकाणों की थी मेले की सुरक्षा जिम्मेदारी
Charbhuja Nath Temple Rajsamand : मंदिर की सुरक्षा आम दिनों में रूपनगर और झीलवाड़ा ठिकानों के द्वारा की जाती थी। मेले में जाब्ते के लिए मेवाड़ रियासत द्वारा कुंभलगढ़ से सेना भेजी जाती थी। वे जगह-जगह चीकियां बैठा थे और घुड़सवारों की मदद से गश्त करते थे। झीलवाड़ा, रूपनगर, ओलादर, केलवा, मोती, कोठारिया और चारभुजा रोड स्टेशन से गोमती तक आमेट ठिकाने के अश्वारोही सैनिक निरंतर गश्त लगा कर यात्रियों के जत्थों को सुरक्षा देते थे।