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लक्ष्मणसिंह राठौड़ @ राजसमंद (राजस्थान)

नागणेची माता (Nagnechi Mata) सूर्यवंशी राठौड़ राजपूत की कुलदेवी है। इतिहास की बात करें तो राव शिओजी के पौत्र राव दूहड़ एक बार कन्नौज गए, जहां पर राठौड़ का राज था। उस वक्त इन्होंने राजस्थान के बाड़मेर जिले में माता नागणेची (Nagnechi Mata) मंदिर की स्थापना की।
जोधपुर संस्थापक राव जोधा ने विक्रम संवत 1523 में मेहरानगढ़ में भी नागणेची माता (Nagnechi Mata) मंदिर की स्थापना की। जोधपुर राज्य की ख्यात में लिखा है कि राव दूहड़ विक्रम संवत 1248 ज्येष्ठ सुदी तेरस को कर्नाटक देश सूं कुल देवी चक्रेश्वरी री सोना री मूरत लाय न गांव नागाणे थापत किवी। तिनसु नागणेची कहाई। मूर्ति में सिंह पर सवार मां नागणेच्या के मस्तक पर नाग फन फैलाए हैं। माता के हाथों, त्रिशूल, खप्पर है। नागणेची माता (Nagnechi Mata) को नागणेच्या, मंशा देवी, राठेश्वरी और पंखणी माता भी कहते हैं।
राठौड़ वंश की कुलदेवी का मुख्य मंदिर बाड़मेर जिले में कल्याणपुर के पास नगाणा गांव में स्थित है। यह मंदिर जोधपुर से 96 किमी. दूर है।

नागणेची माता (Nagnechi Mata) के महिषमर्दिनी का स्वरुप है। बाज या चील उनका प्रतीक चिह्न है, जो मारवाड़ (जोधपुर), बीकानेर तथा किशनगढ़ रियासत के झंडों पर देखा जा सकता है। नागणेची देवी जोधपुर राज्य की कुलदेवी थी। चूंकि इस देवी का निवास स्थान नीम के वृक्ष के नीचे माना जाता था। अत: जोधपुर में नीम के वृक्ष का आदर किया जाता था और उसकी लकड़ी का प्रयोग नहीं किया जाता था। यही परम्परा राठौड़ वंश के राजपूत ज्यादातर गांवों में आज भी निभा रहे हैं।

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nagnechi mata temple History : इतिहास की किवदंती

एक बार बचपन में राव दूहड़ ननिहाल गए, जहां उनके मामा का बेडोल पेट देखकर वे हंसी नहीं रोक पाए और जोर जोर से हंसने लगे। इस पर उनके मामा को गुस्सा आ गया और बोले कि अरे भाणेज। तुम मेरा बड़ा पेट देखकर हंस रहे हो, मगर तुम्हारे परिवार को बिना कुलदेवी का देखकर सारी दुनिया हंसती है। तुम्हारे दादाजी तो कुलदेवी की मूर्ति भी साथ लेकर नहीं आ सकें, तभी तो तुम्हारा कहीं स्थायी ठोर ठिकाना नहीं बन पा रहा है।
मामा की इस कड़वी बात पर राव दूहड़ ने मन ही मन निश्चय किया कि कुलदेवी की मूर्ति अवश्य लाऊंगा। वे अपने पिताजी राव आस्थानजी के पास खेड़ लौट आए, लेकिन राव दूहड़ को यह पता नहीं था कि कुलदेवी कौन है? उनकी मूर्ति कहा है और वह कैसे लाई जा सकती है? उन्होने तपस्या कर देवी को प्रसन्न करने का निश्चय किया। एक दिन बालक राव दूहड़ चुपचाप घर से निकल गए और जंगल में जा पहुंचे। वहां अन्नजल त्याग कर तपस्या करने लगे। बालहठ के कारण आखिर देवी का ह्रदय पसीजा। देवी प्रकट हुई, तब बालक राव दूहडज़ी ने देवी को आप बीती बताकर कहा की हे माता मेरी कुलदेवी कौन है और उनकी मूर्ति कहां है? वह कैसे लाई जा सकती है? देवी ने स्नेहपूर्वक उनसे कहा की सुन बालक तुम्हारी कुलदेवी का नाम चके्रश्वरी है और उनकी मूर्ति कन्नौज में है। तुम अभी छोटे हो, बड़े होने पर जा पाओगें। तुम्हे प्रतीक्षा करनी होगी।
फिर राव आस्थानजी का स्वर्गवास हुआ और राव दूहड़ खेड़ के शासक बनें। तब एक दिन राजपुरोहित पीथडज़ी को साथ लेकर राव दूहडज़ी कन्नौज रवाना हुए। कन्नौज में उन्हें गुरू लुंम्ब ऋषि मिले। उन्होंने दूहडज़ी को माता चक्रेश्वरी की मूर्ति के दर्शन कराएं और कहा कि यही तुम्हारी कुलदेवी है। इसे तुम अपने साथ ले जा सकते हो।
जब राव दूहडज़ी ने कुलदेवी की मूर्ति को विधिवत् साथ लेने का उपक्रम किया तो अचानक कुलदेवी की वाणी गूंजी ठहरो पुत्र मैं ऐसे तुम्हारे साथ नहीं चलूंगी। मैं पंखिनी (पक्षिनी) के रूप में तुम्हारे साथ चलूंगी। तब राव दूहडज़ी ने कहा हे मां मुझे विश्वास कैसे होगा कि आप मेरे साथ चल रही है। तब मां कुलदेवी ने कहा जब तक तुम्हें पंखिणी के रूप में तुम्हारे साथ चलती दिखूं। तुम यह समझना की तुम्हारी कुलदेवी तुम्हारे साथ है, लेकिन एक बात का ध्यान रहे, बीच में कही रूकना मत।
राव दूहडज़ी ने कुलदेवी का आदेश मान कर वैसे ही किया। राव दूहडज़ी कन्नौज से रवाना होकर नागाणा (आत्मरक्षा) पर्वत के पास पहुंचते पहुंचते थक गए थे। तब विश्राम के लिए एक नीम के नीचे तनिक रूके। अत्यधिक थकावट के कारण उन्हें वहां नींद आ गई। जब आंख खुली तो देखा की पंखिनी नीम वृक्ष पर बैठी है। राव दूहडज़ी हड़बड़ाकर उठे और आगे चलने को तैयार हुए तो कुलदेवी बोली पुत्र मैनें पहले ही कहा था कि जहां तुम रूकोगें, वही मैं भी रूक जाऊंगी और फिर आगे नहीं चलूंगी। अब मैं आगे नहीं चलूंगी। तब राव दूहडज़ी ने कहा कि हे मां! अब मेरे लिए क्या आदेश है। कुलदेवी बोली कि कल सुबह सवा प्रहर दिन चढऩे से पहले- पहले अपना घोड़ा जहां तक संभव हो, वहा तक घुमाना यही क्षैत्र अब मेरा ओरण होगा और यहां मैं मूर्ति रूप में प्रकट होऊंगी। परंतु एक बात का ध्यान रहे, मैं जब प्रकट होऊंगी, तब तुम ग्वालिये से कह देना कि वह गायों को हाक न करें, अन्यथा मेरी मूर्ति प्रकट होते होते रूक जाएगी।

अगले दिन सुबह जल्दी उठकर राव दूहडज़ी ने माता के कहने के अनुसार अपना घोड़ा चारों दिशाओं में दौड़ाया और वहां के ग्वालिये से कहा की गायों को रोकने के लिए आवाज मत करना, चुप रहना, तुम्हारी गाये जहां भी जाएगी, वहां से लाकर दूंगा। कुछ ही समय बाद अचानक पर्वत पर जोरदार गर्जना होने लगी, बिजलियां चमकने लगी। इसके साथ ही भूमि से कुलदेवी की मूर्ति प्रकट होने लगी। डर के मारे ग्वालिये की गाय इधर- उधर भागने लगी। तभी स्वभाव वश ग्वालिये के मुंह से गायों को रोकने के लिए आवाज निकल गई। बस, ग्वालिये के मुंह से आवाज निकलनी थी की प्रकट होती होती नागणेची माता (Nagnechi Mata) की मूर्ति वहीं थम गई।
ऐसे में कमर तक ही भूमि से मूर्ति बाहर आ सकी। राव दूहडज़ी ने होनी को नमस्कार किया और उसी अर्ध प्रकट मूर्ति के लिए सन् 1305 माघ वदी दशम सवत् 1362 ई. में मन्दिर का निर्माण करवाया। क्योंकि चक्रेश्वरी नागाणा में मूर्ति रूप में प्रकटी। अत: वह चारों और नागणेची रूप में प्रसिद्ध हुई। इस प्रकार मारवाड़ में राठौडों की कुलदेवी नागणेची कहलाई। अठारह भुजायुक्त नागणेची माता (Nagnechi Mata) के नागाणा स्थित इस मन्दिर में माघ शुक्ल सप्तमी और भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को प्रतिवर्ष मेला लगता है और लापसी खाजा का भोग लगता है। सप्त धागों को कुमकुम रंजित कर माता का प्रसाद मानकर सभी राखी बांधते हैं। इसके अलावा नागणेची माता (Nagnechi Mata) के मन्दिर जालोर, जोधपुर, बीकानेर व नागौर जिले के मेड़ता में मीरा महल में भी है। फिर राठौड़ राजाओं ने महलों में भी कुलदेवी के मंदिर बनवाए, ताकि प्रतिदिन पूजा अर्चना कर सकें।

Nagnechi Mata ki Aarti : नागणेची माता की आरती

सेवक की सुन मेरी कुल माता, हाथ जोड़ हम तेरे द्वार खड़े।
धुप दीप नारियल ले हम, माँ नागणेचियां के चरण धरे ।।

क्षत्रिय कुल राठौडो की माँ, हो खुश हम पर कृपा करें।
नागणेचियां माँ को नमन् है, कष्ठ हमारे माता दूर करे ।।

नाग रूप धर कर माँ, तुमने राव धुहड़ को आदेश करे।
कलयुग में कल्याण करण को, माँ तुमने विविध रूप धरे ।।

कृपा द्रष्टि करो हम पर माँ, तेरी कृपा से हो वंश हरे भरे !
दोष न देख अपना लेना, अच्छे बुरे पूत हम तवरे ।।

बुद्धि विधाता तुम कुल माता, हम सब का उद्धार करें।
चरण शरण का लिया आसरा, तेरी कृपा से सब काज सरे ।।

बांह पकड़ कर आप उठावो, हम तो शरण तेरी आन पड़े।
जब भीड़ पड़े भक्तों पर, माँ नागणेचियां सहाय करे ।।

नागणेचियां की आरती जो गावे, माँ उसके भण्डार भरे।
दर्शन तांई जो कोई आवे, माँ उसकी मंशा पूरी करे ।।

कुलदेवी को जो भी ध्यावे, माँ उसके कुल में वृद्धि करें।
कलि में कष्ठ मिटेंगे सारे, माँ की जो जय जयकार करे ।।

राठौड़ कुळ ले विन्नति , हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़ा।
धुप दीप और नारियल ले , माँ तुम्हारे चरण पडा ।।

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