चारभुजा में 200 पुरानी परंपरा है यहां पर दशहरे पर्व पर पत्थरों से रावण बनाते है इसके बाद उसे गोलियां चलाकर उसका वध करते है। इसके बाद पत्थर मारते है जब तक वह गिर नहीं जाता। यह अनूठी परंपरा पिछले कई वर्षो से चली आ रही है। इस अनोखी परंपरा को देखने आस-पास के गांवों के बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है।
राजस्थान के मेवाड़ के प्रसिद्ध कृष्णधाम चारभुजानाथ में शुक्रवार को दशहरे पर ग्रामीणों ने रावण और मेघनाद का वध करने की 200 साल पुरानी अनूठी परंपरा निभाई। यहां जवाहर सागर मैदान में पत्थर से रावण का पुतला बनाकर बंदूक से फायरिंग कर वध किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीण इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए मौजूद रहे।
सरगरा समाज के लोगों ने रावण का पुतला तैयार किया। रावण पुतले के सिर और पेट पर मटका लगाया गया, जिसमें रंग भरा गया। चारभुजानाथ की कसार आरती के बाद मंदिर से पुजारी बल्लम, तलवार निशान थामे देवस्थान विभाग के सिपाहियों के साथ परंपरा निभाने पहुंचे। इसके बाद देवस्थान विभाग के सिपाहियों ने बंदूक की गोलियों से पुतले को छलनी कर दिया। इस दौरान पहली ही गोली में रावण के पेट पर लगी और रावण का पेट फूट गया। इसके बाद रावण के हाथ-सिर को भी छलनी करने की रस्म निभाई गई।
इसके बाद लोगों ने पुतले को तब तक पत्थर मारे, जब तक पुतला बिखरकर गिर नहीं गया। इस दौरान चारभुजा के कई लोग शामिल हुए। पुजारी परिवार के लोगों ने बताया कि वध करने की परंपरा करीब 200 सालों से निभाई जा रही है। चारभुजानाथ की स्थापना पांडवों ने वनवास के वक्त की थी, तब से पत्थर मारकर रावण के वध की परंपरा थी, लेकिन पिछले 200 सालों से बंदूक से गोली मारकर वध करने की परंपरा निभाई जा रही है।