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shiv temple : गुफा में 3 फीट ऊंचा शिवलिंग, माता अंजना ने की थी तपस्या

Anjnaeshwar mahadev 06 https://jaivardhannews.com/aanjneshwar-mahadev-mandir-story-in-devgarh/

यूं तो मेवाड़ के कण-कण में शिव बसे हैं, लेकिन उदयपुर जयपुर नेशनल हाईवे स्थित कामलीघाट से दे मदारिया की तरफ भीलवाड़ा मार्ग पर लगभग 8 किमी दूर आजनेश्वर महादेव महादेव का मंदिर अतिप्राचीन है, जो माता अंजना की तपस्या स्थली है। ऐसा माना जाता है कि सती माता अंजना ने यहां तपस्या की थी और बजरंगबली हनुमान का जन्म भी यहीं पर हुआ। इसलिए इस जगह का नाम आंजनेश्वर और स्थानीय गांव का नाम आंजना प्रचलित हुआ।

लोक मान्यता के अनुसार महाभारतकाल में पांडवों ने अपने वनवास के समय इस स्थान पर निवास किया था। तीन तरफ चट्टानों से गिरी गुप्त और उसके सामने जल से भरा प्राकृतिक कुण्ड और पेड़ों की सघनता से स्थान सुरक्षित रहा है ऐसा स्वभाविक प्रमाण प्रचलित लोक मान्यता को भी प्रमाणित करता प्रतीत होता है। चट्टान की पूर्व दिशा में मंदिर का प्रवेश द्वार है। बाहर एक कुंड है, जिसमें तीन तरफ मेवाड़ शैली में सीढियां बनी हुई है। उनके बगल में विभिन्न समाजों की धर्मशालाएं भी बनी हुई है। द्वार के अंदर प्रवेश करते ही चट्टान सामने नजर आती है, जिसकी आधी ऊंचाई पर स्थित मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करने पर एक विशाल गुफा दिखाई पड़ती हैं। गुफा के गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित है, जो तीन फीट ऊंचा है। गुफा में पुजारी और साधुओं का निवास रहता है। भजन- कीर्तन भी होते हैं।

Shiv Temple : शिवरात्रि पर हर साल यहां भरता है मेला

यह स्थान पर्वतीय पानी से घिरा है। कुदरत की गोद में अत्यंत रमणीक स्थान है। कई गुफाएं अवस्थित है ऋषि-मुनियों ने तपोभूमि के रूप में इस स्थान का उपयोग किया। यह क्षेत्र पर्वताकार चट्टानी संरचनाओं से बनी प्राकृतिक गुफाओं हरियाली और प्राकृतिक जलतों के कारण ऋषि-मुनियों की योग-साधना और तपस्या का केंद्र रहा। गुफा के बाहर गुबंद के बायी और चट्टान से ऊपर व पीछे जाने का मार्ग है, यहां से चारों ओर का दृश्य काफी मनोरम दिखता है।

shiv trishul : 20 फीट नुकीली चट्टान पर बना है शिवलिंग

चट्टानों के ऊपर पूर्व की ओर एक नुकीली चट्टान सीधी खड़ी दिखाई देती है। करीब 20 फीट ऊंची इस सीधी चट्टान पर पत्थर का विशाल त्रिशूल स्थापित है। त्रिशूल दूर से ही आजनेश्वर महादेव मंदिर का पता बता देता है। दूसरी चट्टान पर प्राचीन शिलालेख स्थापित है। इन शिलालेखों पर ब्रह्माजी, दत्तात्रेय व देवगढ़- मदारिया के तत्कालीन शासकों के विषय में जानकारी अंकित है। इसके पूर्व दिशा में एक चट्टान है। इसी श्रृंखला की सबसे ऊंची पर्वतमाला पर सेंड माता का मंदिर बना है। यहां मदारिया के एक बेहद पुरानी बस्ती होने के कुछ अवशेष आज भी विद्यमान हैं।

Aanjneshwar Mahadev : अकाल में भी नहीं सुखता कुंड

इतिहास के जानकार बताते हैं कि यहीं पर महाराणा कुम्भा के पिता महाराणा मोकल का ससुराल था। महाराणा कुंभा का जन्म यहीं अपने ननिहाल में हुआ था। चट्टानों की पीछे से सीडियां उतरकर नीचे पहुंचने पर फिर गुफा दिखाई पड़ती है, जो सामने से काफी चौड़ी और ऊंची है। गुफा के सामने एक प्राचीन कुण्ड बना है, जिसमें भीषण गर्मी में भी शीतल जल उपलब्ध रहता है। कितना ही भयंकर अकाल क्यों न पड़े, इसका पानी कभी नहीं सूखता। चारों ओर हरियाली और विशाल चट्टानों से स्थान रमणीय लगता है।

7 शताब्दी से भी ज्यादा प्राचीन है काबरी महादेव मंदिर

कुंवारिया मेवाड़ के प्रमुख शिवालयों में काबरी महादेव मंदिर का प्रमुख स्थान है। राजसमंद से 25 किमी दूर कुवारिया-गलवा मार्ग पर स्थित मंदिर की नैसर्गिक छटा से श्रृद्धालुओं काे बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। चन्द्रभागा नदी एवं डिगरोल नाले के मध्य बना यह मंदिर क्षेत्रवासियों के लिए प्रयागराज की तरह है। काबरी गांव के निकट होने से इस मंदिर का नाम काबरी महादेव पड़ा।

मंदिर स्थापना को लेकर एकमत नहीं है। करीब 700 वर्ष पूर्व इसका जीर्णोद्धार केलवा ठिकाने की ओर से कराया गया था। मंदिर में स्थापित मुर्ति को लेकर बताया जाता है कि एक गाय के थन से दुध निकलकर स्वत: जमीन पर गिरने लगा। लोगों ने उस स्थान की खुदाई की तो वहां से मूर्ति निकली, जिसे मंदिर में स्थापित किया। शिवालय के निकट ही पुजारी की जीवित समाधि भी है। यहां लगे शिलालेख के अनुसार पुजारी बलदेवपुरी ने विक्रम संवत् 1609 में वैशाख सुदी पूर्णिमा को समाधि ली थी। समाधिस्थल आस्था का केन्द्र है। मंदिर के पुजारी व श्रृद्धालुओं ने बताया कि समाधि स्थल पर पूजा- पाठ व मंत्रोच्चार का काफी प्रभावकारी फल प्राप्त होता है। मंदिर में यूं तो दर्शन के लिए आम दिनों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, परन्तु श्रावण, वैशाख, महाशिवरात्रि व विभिन्न सोमवारी पर विशेष रेलमपेल रहती है। यहां वैशाख सुदी अमावस्या पर मेला भी भरता है।

कुंड का पानी बना था घी

मंदिर के सामने बने सरस्वती कुण्ड के बारे में कहा जाता है कि एक धार्मिक कार्यक्रम में शुद्ध घी की कमी होने पर संत ने घी के स्थान पर इस कुण्ड के पानी को कढ़ाई में डाला तो वह घी बन गया। मंदिर के बारे में और भी कई दंतकथाएं प्रचलित हैं। शिवलिंग पर आज भी इसी कुण्ड का पानी चढ़ाया जाता है।

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