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Holi Festival of Vibrancy : होली उत्सव की जीवंतता, Jaivardhan ई बुक भी आलेख के बाद पढ़े

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Holi Festival of Vibrancy : होली प्राचीन हिंदू त्यौहारों में से एक है और यह ईसा मसीह के जन्म के कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है। प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं, जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं।

कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है। होली भारतीय त्यौहारों के बहुरूपदर्शक में एक ऐसा त्यौहार है, जो अपने उल्लास, रंग के दंगल व खुशी की असीम भावना के लिए जाना जाता है। रंगों के त्यौहार के रूप में जाना जाने वाला यह उत्सव भौगोलिक सीमाओं को पार कर विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को हंसी और उल्लास के सामूहिक स्वर में एकजुट करता है। जैसे-जैसे हम इस प्राचीन त्यौहार की समृद्ध कथावस्तु में उतरते हैं, हम इसके उत्सव के पीछे के असंख्य कारणों को उजागर करते हैं और आधुनिक समय में इसके स्थायी महत्व का पता लगाते हैं।

Holi Festival of Vibrancy : ‘रंगों के त्यौहार’ के तौर पर मशहूर होली का त्यौहार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्यौहार, हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है। हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था, जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था, जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था, जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी, क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया, पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्यौहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है। शक्ति पर भक्ति की जीत की ख़ुशी में यह पर्व मनाया जाने लगा। साथ में यह पर्व संदेश देता है कि काम, क्रोध, मद, मोह एवं लोभ रुपी दोषों को त्यागकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए।

होली से जुड़ी लोकप्रिय कहानियों में से एक भगवान कृष्ण की लीला के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी चंचल हरकतों के लिए जाने जाने वाले शरारती देवता हैं। किंवदंती है कि कृष्ण, एक युवक के रूप में, वृंदावन के गांव में राधा और अन्य गोपियों पर रंग छिड़कने में आनंद लेते थे। यह चंचल परंपरा होली के जीवंत त्यौहार में विकसित हुई, जो बुराई पर अच्छाई की जीत, बसंत के आगमन और प्रेम के खिलने का प्रतीक है। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध बसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं।

होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं। होली का त्योहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से जुड़ा हुआ है। श्री कृष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई। आज भी बरसाने और नंदगाव की लट्ठमार होली विश्व विख्यात है। शिवपुराण के अनुसार हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तपस्या कर रहीं थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र आदि देवताओं ने कामदेव को शिवजी की तपस्या भंग करने भेजा। भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिए कामदेव ने शिव पर अपने ‘पुष्प’ बाण से प्रहार किया था। उस बाण से शिव के मन में प्रेम और काम का संचार होने के कारण उनकी समाधि भंग हो गई।इससे क्रुद्ध होकर शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोल कामदेव को भस्म कर दिया। शिवजी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिवजी को पार्वती से विवाह के लिए राज़ी कर लिया। कामदेव की पत्नी रति को अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान और शिवजी का पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव की तरह मनाया। यह दिन फाल्गुन पूर्णिमा का ही दिन था। इस प्रसंग के आधार पर काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

प्राचीन काल में होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे। क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था, लेकिन समय के साथ रंगों की परिभाषा बदलती गई। आज के समय में लोग रंग के नाम पर कठोर रसायन का उपयोग करते हैं। इन खराब रंगों के चलते ही कई लोगों ने होली खेलना छोड़ दिया है। हमें इस पुराने त्यौहार को इसके सच्चे स्वरुप में ही मनाना चाहिए।

होली एक दिन का त्यौहार नहीं है। कई राज्यों में यह तीन दिन तक मनाया जाता है। प्रथम, पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है। द्वितीय दिन को पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मांए अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं। तृतीय दिन को ‘पर्व’ कहते हैं और यह होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।

समकालीन समय में, होली अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल से आगे बढ़कर एक वैश्विक घटना बन गई है, जिसे सभी पृष्ठभूमि के लोग मनाते हैं। समावेशिता, आनंद और सौहार्द का इसका संदेश भाषाई, धार्मिक और भौगोलिक बाधाओं को पार करते हुए दुनिया भर के लोगों के साथ गूंजता है। तेजी से विभाजित होती दुनिया में, होली विविधता को अपनाने और सभी व्यक्तियों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के महत्व की याद दिलाती है। इसके अलावा, इन दिनों होली पर्यावरण चेतना का प्रतीक भी बन गई है, जिसमें सिंथेटिक रंगों और पानी की बर्बादी के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। समुदाय फूलों, सब्जियों और मसालों से प्राप्त प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके और पर्यावरण की रक्षा के लिए पानी के उपयोग को कम करके “ग्रीन होली” मनाने के लिए एक साथ आ रहे हैं।

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March-2024

कुसुम अग्रवाल

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