6 महीने पहले प्रभु श्री द्वारकाधीश मंदिर के गर्भ गृह में आग लगने के मामले में शनिवार को एसपी कार्यालय की तरफ से फाइनल रिपोर्ट पेश की। आगजनी का कारण गर्भगृह में दीपक से लगना बताया गया। एएसपी रैंक के अधिकारियों ने भी मंदिर में गर्भ गृह में आग दीपक की वजह से लगना बताया। इससे पहले तत्कालीन कलेक्टर ने टीम का गठन कर जांच करवाई थी। इसकी गोस्वामी परिवार के दूसरे भाइयों ने पुलिस के उच्चाधिकारियों से जांच करवाने की मांग की थी।
इस पर एएसपी रैंक के अधिकारियों ने भी मंदिर के गर्भ गृह में आग दीपक की वजह से लगना बताया। द्वारकाधीश मंदिर में 21 जून 2015 को द्वारिकाधीश मंदिर के गर्भ गृह में आग लग गई। ऐसे में गोस्वामी ब्रजेश कुमार के परिवार के सदस्यों ने गर्भ गृह में आग लगाने की पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई गई। तत्कालीन कलेक्टर कैलाश चंद्र वर्मा को दी गई। इस पर तत्कालीन एसडीएम राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल के नेतृत्व में जांच समिति का गठन की।
टीम में राजसमंद डीएसपी ओम कुमार, विद्युत निगम के सहायक अभियंता आरके कर्ण और एफएसएल टीम के सदस्य थे। जांच टीम ने बताया कि उक्त आग इलेक्ट्रिक शॉर्ट सर्किट से नहीं लगी थी। सीसीटीवी फुटेज देखने से ज्ञात हुआ कि उस दिन प्रभु द्वारकाधीश निज तिबारी में शैया पर पौढ़े (शयन) हुए थे। सुबह 4 बजकर 40 के आसपास तिबारी की बाईं तरफ तेज लपटें उठी और उस आग ने रौद्र रूप ले लिया।
इसके साथ ही इस बात की भी पुष्टि होती है कि घटनास्थल पर किसी भी व्यक्ति द्वारा न तो प्रवेश किया और न ही निकासी। एफएसएल जांच से ही अंतिम निष्कर्ष निकाला गया। घटना के एक साल चार माह बाद पीठाधीश बृजेश कुमार के भतीजे कपिल कुमार की तरफ से कांकरोली थाने पर रिपोर्ट दर्ज करवाई। इसमें अन्य आरोपों के साथ यह आरोप भी लगाया कि आगजनी की घटना को पीठाधीश बृजेश कुमार और उनके पुत्र वागीश कुमार गोस्वामी ने लगाई।
इसकी जांच तत्कालीन थानाधिकारी लक्ष्मणराम द्वारा की। कपिल कुमार की शिकायत पर इसकी जांच सीआईडी (सीबी) को सौंप दी। सीआईडी के जांच अधिकारी ने भी अपनी जांच में उक्त घटना में किसी की संलिप्तता नहीं पाई गई। उनके द्वारा न्यायालय में अंतिम प्रतिवेदन एफआर पेश कर दी। जिसे न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया।
परिवादी द्वारा इसकी निगरानी याचिका सेशन कोर्ट में पेशकर निवेदन किया कि उन्हें सुना जाकर अंतिम निर्णय करें। परिवादी कपिल कुमार की प्रार्थना को स्वीकारते हुए न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय को आदेशित किया कि परिवादी पक्ष को सुना जाकर यथोचित आदेश पारित किया जाए। कपिल कुमार की ओर से अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रार्थना-पत्र पेश कर विनती की, मामले की जांच पुलिस महानिदेशक राजस्थान से करवाई जाए।
परिवादी की प्रार्थना को आंशिक रूप से स्वीकारते हुए एसपी राजसमंद को आदेशित किया कि वे इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच एएसपी स्तर के अधिकारी से 3 माह में करवाकर न्यायालय में प्रतिवेदन पेश करें। आदेश पर दोनों पक्षों ने सहमति दी। लगभग सवा दो साल बाद दो-दो एएसपी स्तर के अधिकारियों ने जांच की।
लेकिन अब पीठाधीश बृजेश कुमार गोस्वामी और उनके पुत्र वागीश कुमार के एडवोकेट नीलेश पालीवाल ने इसी माह 8 अक्टूबर को न्यायालय में एक प्रार्थना पेश कर जांच लंबित होने से परिवादी पक्ष द्वारा अनावश्यक रूप से परेशान किया जा है। इसलिए अविलंब एएसपी से प्रगति रिपोर्ट मंगवाई जाए। न्यायालय द्वारा एएसपी राजसमंद को तलब किए जाने पर उनके द्वारा न्यायालय में अंतिम प्रतिवेदन एफआर प्रस्तुत कर दी।
जांच में किसी की सलिप्पता नहीं मिली : निष्कर्ष में एडिशनल एसपी ने किसी भी व्यक्ति की घटना में संलिप्तता नहीं मानते हुए घटना के समय तेज हवाएं चलने से प्रभु की शैया के निकट रखे दीपक से आग लगने की संभावना को मानते हुए अंतिम रिपोर्ट पेश की। क्योंकि सीसीटीवी फुटेज में किसी भी व्यक्ति की आवाजाही नजर नहीं आई, गोस्वामी परिवार के निज तिबारी तक पहुंचने के मार्ग पर लगे दरवाजे पर दोनों तरफ सांकल पर ताले लगे होना पाया, इसकी चाबी खवास के पास थी।
इस प्रकार गोस्वामी बृजेश कुमार और वागीश कुमार गोस्वामी का घटना के समय घटनास्थल पर पहुंच पाना असंभव था। इस तरह चार-चार जांच अधिकारियों द्वारा जांच किए जाने पर किसी भी व्यक्ति द्वारा मंदिर में आगजनी कारित करना साबित नहीं हुआ।