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हमारी आजादी का पर्व 15 अगस्त, कौन भूल सकता है। इस यादगार लम्हे को, जब हम अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर आजाद हुए थे, कई शूरवीरो ने अपने प्राणों की आहुति देकर इस भारतवर्ष को आजाद कराया, कई नामी चेहरे इसके साक्षी रहे हैं, लेकिन कई ऐसे क्रांतिकारी भी थे, जो गुमनामी में कहीं खो गए, लेकिन वह क्रांतिकारी ऐसे थे, जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ भारत माता को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों को हंसते हंसते अपने देश पर न्यौछावर कर दिया। आज हम आजादी का 77वां पर्व बड़ी ही धूमधाम और उल्लास से मना रहे हैं, उन क्रांतिकारियों के इस बलिदान को यह मिट्टी हमेशा याद रखेगी।
जब भारत आजाद हुआ था, तब दिल्ली में 14 अगस्त 1947 की रात को करीब दस लाख लोग लाल किले के इर्द-गिर्द जमा हो चुके थे, क्योंकि रात को 12 बजे अपना तिरंगा लाल किले पर फहराना था। 12 बजे से पहले ब्रिटिश झंडा उतार लिया गया और ठीक 12 बजे शंखनाद की ध्वनि के साथ भारत मां के सर पर सुशोभित हुआ तिरंगा झंडा, तभी इंद्रदेव ने जोरदार गर्जना के साथ अपनी बूंदों से स्वागत किया, नए भारत का। धीरे-धीरे इस उत्सव के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी और वह यह पर्व बहुत ही अच्छी तरीके से मनाने लगे।

लेकिन कुछ बीते वर्षों में, स्वतंत्रता दिवस पर्व को मनाने में उत्सुकता काफी कम हो गई। बच्चे अब स्कूलों में झंडा फहराने के समय दिखाई नहीं देते, जिला स्तरीय हो या खंड स्तरीय सभी जगह कुछ गणमान्य लोग ही इस उत्सव में देखे जा सकते हैं, देशभक्ति अब दिखाई देती है, तो सोशल मीडिया की डीपी पर या स्टोरी पर, आज भारत का व्यक्ति स्वतंत्रता की उस कहानी को जानता भी नहीं है कि आजादी को पाने के लिए इस मिट्टी ने अपने कितने सपूतों को बलिदान किया है, आज का युवा आज के दिन को सिर्फ और सिर्फ इसे सरकारी छुट्टी मानता है, उसे आज के इस दिवस की न तो उत्सुकता है न कौतूहल।

भारत आज आगे बढ़ रहा है, यह गर्व की बात है, लेकिन देश के युवाओं का अपने राष्ट्रीय दिवस के इस तरीके से अनदेखी करना एक बहुत बड़ा सोचनीय विषय है, जिस पर मनन करना आपके लिए और हमारे लिए जरूरी है, हमें अपने बच्चों को इस बारे में जागरूक करना होगा कि यह पर्व हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है, यह हमारे आजादी का पर्व है, अगर आज हम आजाद नहीं हुए होते तो हम किस हाल में होते यह सोचना ही एक भयावह सपने जैसा है।

आज हम भारतवर्ष में जिस आजादी के साथ बहुत ही आनंद से रह रहे हैं, उसका सम्मान करना भी हमारी नैतिक जिम्मेदारी है, क्योंकि हम इस देश के कारण ही आज इतने सफल हुए है, देश है तो हम हैं, इसीलिए आज हम सभी को एक प्रण लेना है कि हम आज से ही इस देश के लिए जिएंगे, मरेंगे, इसके लिए हर वक्त सोचेंगे, इसको प्यार करेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे, ताकि विश्व में हमारा नाम और इस पूरे भारतवर्ष का सम्मान बढ़ता रहें, जय हिंद।

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राहुल दीक्षित RD, साहित्यकार
कांकरोली, राजसमंद, मो. 94610-16726