Kumbhalgarh Fort Instresting History : चीन के बाद कुंभलगढ़ में दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार

ByLalita Rathore

Nov 30, 2023 #history of kumbhalgarh fort, #jaivardhan news, #jayavardhan news, #jayvardhan news, #Kumbhalgarh, #kumbhalgarh fort, #kumbhalgarh fort history, #kumbhalgarh fort history in hindi, #kumbhalgarh fort rajasthan, #kumbhalgarh kila, #live rajsamand, #mewar news, #Rajasthan news, #rajasthan news live, #rajasthan police, #rajsamand news, #udaipur news, #कुंभलगढ़ का इतिहास, #कुंभलगढ़ का जैन इतिहास, #कुंभलगढ़ किले का रहस्य, #कुंभलगढ़ किले के दीवार का रहस्य, #कुंभलगढ़ के किले का इतिहास, #कुंभलगढ़ दुर्ग, #कुम्भलगढ़ उदयसिंघ का इतिहास, #कुम्भलगढ का इतिहास, #कुम्भलगढ़ का किला, #कुम्भलगढ़ किला, #कुम्भलगढ़ किला का इतिहास, #कुम्भलगढ़ किले का इतिहास, #कुम्भलगढ़ की दीवार, #कुम्भलगढ़ की दीवार और किला का इतिहास, #कुम्भलगढ़ के किले का इतिहास, #कुम्भलगढ़ के मंदिरों का इतिहास, #कुम्भलगढ़ दुर्ग, #कुम्भलगढ़ पन्ना धाय का इतिहास, #चीन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार राजस्थान में, #दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार, #दुनिया की दूसरी सबसे लम्बी दीवार, #दुनिया की सबसे लंबी दूसरी दीवार कौन सी है?, #भारत में है दुनिया की दूसरी सबसे लम्बी दीवार
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राजस्थान के इतिहास में कुंभलगढ़ दुर्ग का एक अनूठा इतिहास है। यह दुर्ग आज भी देश व दुनिया के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। कुंभलगढ़ के किले का एक अलग ही महत्व है। इस किले की खासियत इसकी 36 किमी लंबी दीवार है। यह राजस्थान के हिल फाउंटेन में शामिल एक विश्व धरोहर स्थल है। 15वीं शताब्दी के दौरान राणा कुंभा द्वारा निर्मित इस किले की दीवार को एशिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार का दर्जा प्राप्त है, जो चीन के बाद दूसरे नंबर की दीवार माना जाता है।

दुनिया में चीन की ग्रेट वॉल ऑफ चाइना सबसे लंबी मानी गई है, मगर उसके बाद माना जाता है कि सबसे लंबी दीवार कुंभलगढ़ दुर्ग की ही है। राजसमंद जिले के अंतर्गत कुंभलगढ़ किला राजस्थान का सबसे बड़ा दूसरा किला माना जाता है। अरावली पर्वतमाला पर समुद्र तल से 1,100 मीटर (3,600 फीट) की पहाड़ी की चोटी पर है। बताते है कि कुंभलगढ़ दुर्ग के चारों तरफ एक बड़ी दीवार बनी हुई है, जिसकी लंबाई 36 किमी (22 मील) बताई जाती है और इसकी चौड़ाई 15 फीट चौड़ी है। अरावली रेंज में फैला कुम्भलगढ़ किला मेवाड़ के प्रसिद्ध राजा महाराणा प्रताप का जन्मस्थान है। 2013 में, विश्व विरासत समिति के 37 वें सत्र में किले को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। बताते है कि इसकी ऊंचाई अंदाजा इससे भी लगाते थे कि नीचे से अगर ऊपर देखा जाए और सिर पर पगड़ी है, तो वह गिर जाती है।

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दुर्ग परिसर में 360 मंदिर है, जो ऐतिहासिक

कुंभलगढ़ दुर्ग का निर्माण भी काफी ऐतिहासिक है। इस दुर्ग की चार दीवारी के बीच में कई मंदिर स्थित है। किला सात विशाल द्वारों के साथ बनाया गया है। इस भव्य किले के अंदर की मुख्य इमारतें बादल महल, शिव मंदिर, वेदी मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर और मम्मदेव मंदिर हैं। कुंभलगढ़ किला में करीब 360 कुल मंदिर हैं, जिनमें से 300 जैन मंदिर हैं और शेष हिंदू मंदिर हैं। इस दुर्ग की एक विशेषता यह है कि कभी युद्ध में नहीं जीता गया था। हालाँकि इसे केवल एक बार मुगल सेना ने धोखे से पकड़ लिया था, जब उन्होंने किले की जल आपूर्ति में जहर मिला दिया था। मुख्य किले तक पहुँचने के लिए आपको एक खड़ी रैंप जैसे पथ (1 किमी से थोड़ा अधिक) पर चढ़ने की आवश्यकता है। किले के अंदर बने कमरों के साथ अलग-अलग खंड हैं और उन्हें अलग-अलग नाम दिए गए हैं।

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रात को लाइट एंड साउंड सिसस्टम से इतिहास का गान

कुंभलगढ़ दुर्ग पर पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग द्वारा रात को लाइट एंड साउंड सिस्टम लगा रखा है। इससे हर रोज शाम को दिन ढलने के बाद आकर्षक लाइटिंग की जाती है और साउंड सिस्टम के माध्यम से कुंभलगढ़ दुर्ग के इतिहास को बताया जाता है। रात के समय इसे देखने के लिए देश व विदेश से बढ़ी तादाद में पर्यटक यहां आते हैं। हर शाम एक लाइट एंड साउंड शो होता है जो शाम 6.45 बजे शुरू होता है। 45 मिनट का शो एक आकर्षक अनुभव है जो किले के इतिहास को जीवंत कर देता है। शो की कीमत वयस्कों के लिए 100 रुपए है और बच्चों के लिए 50 रुपए है। यह शाम 6.45 बजे शुरू होता है और अंत तक आते-आते यहां काफी अंधेरा हो जाता है। किले को रोशन करने के लिए शाम के समय विशाल रोशनी जलाई जाती है।

कुंभलगढ़ के दीपक से मारवाड़ में होती थी रात में खेती

इतिहासकार बताते हैं कि कुंभलगढ़ दुर्ग की छत पर एक बड़ा दीपक जलाया जाता था, जिसे पिलोत कहा जाता था। इसमें करीब 100 किलो कपास व 50 किलो घी का इस्तेमाल होता है। रात में इसके उजाले से मारवाड़ की तरफ लोग रात में खेतों की सिंचाई करते थे। यह कहा जाता है।

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लाइव नजारा, कुछ इस तरह से करता है आकर्षित

केलवाड़ा से कुम्भलगढ़ किले की ओर जाते हुए सड़क के किनारे कई बड़े होटल, रेस्टोरेंट और रिज़ॉर्ट देखने को मिले जिसमें क्लब महिंद्रा का शानदार रिज़ॉर्ट भी शामिल है। अरावली की सुनसान पहाड़ियों में इन होटलों की रौनक देखते ही बनती है। किले से एक किलोमीटर पहले ही किले की दीवारें दिखाई देनी शुरू हो जाती है। बीच.बीच में सड़क के किनारे कुछ पेड़ भी लगे हुए हैए मुख्य सड़क किले के विशाल प्रवेश द्वार से होते हुए अंदर तक जाती है। दक्षिण की ओर स्थित किले के बाहरी प्रवेश द्वार से होते हुए हम अंदर दाखिल हुए। यहाँ एक पार्किंग है। इस किले की बनावट कुछ अलग थी, जो अपने आप में ख़ास थी। किले की बाहरी दीवार के बीच बीच में बने गुंबद के आकार के बुर्ज इस दीवार को सुरक्षा प्रदान करते है। इन विशाल बुर्जो को देख कर कोई भी इस किले की विशालता का अंदाज़ा लगा सकता है।

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1458 में बनकर तैयार हुआ था कुंभलगढ़ दुर्ग

ये किला मेवाड़ के महान शासक महाराणा प्रताप की जन्मस्थली भी है। 19वी सदी तक आम जनता के लिए बंद रहने वाले इस किले को वर्तमान में लोगों के लिए खोल दिया गया है। प्रतिदिन शाम को यहाँ किले में कुछ समय के लिए रोशनी भी की जाती है। चित्तौडगढ़ के बाद इस किले को मेवाड़ के सबसे महत्वपूर्ण किलों में गिना जाता हैए इस किले की 36 किलोमीटर दूर तक फैली दीवार चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है और राजस्थान में चित्तौडगढ़ के किले के बाद ये दूसरा सबसे बड़ा किला है। किले को बनाने का निर्माण कार्य 1443 में शुरू हुआ और ये 1458 में बनकर तैयार हुआ। इस तरह इस किले को बनने में लगभग 16 वर्षों का समय लगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार किले के निर्माण में रात को काम करने वाले श्रमिकों को रोशनी मुहैया कराने के लिए के राणा कुम्भा ने बड़े पैमाने पर दीपक जलवाए। जिनमें रोजाना 50 किलो घी और 100 किलो कपास लग जाता था।

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राणा कुंभा का यह सबसे बड़ा किला

कहते है कि राणा कुम्भा ने अपने शासनकाल में 84 किलों का निर्माण करवाया था। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 1100 मीटर है। किले के प्रांगण में कई इमारतें, मंदिर, बगीचे और पानी को संरक्षित करने के लिए कई बावलिया और कुंड भी बनाए गए थे। आज किले के प्रवेश द्वार हनुमान पोल के पास बलिदानी के नाम पर एक मंदिर स्थित है। किले में दक्षिण से प्रवेश करने पर आरेट पोल, हल्ला पोल और हनुमान पोल पड़ते है। यहाँ पोल का अर्थ द्वार से ही है। किले के ऊपरी भाग में बने महलों तक जाने के लिए आपको भैरव पोल, निम्बो पोल और पागड़ा पोल से होकर जाना होता है। इस किले के पूर्व में भी एक प्रवेश द्वार है जिसे श्दानी बिट्टा के नाम से जाना जाता है, ये मेवाड़ को मारवाड क्षेत्र से जोड़ता है, हालाँकि वर्तमान में इस किले में प्रवेश के लिए आधिकारिक तौर पर केवल दक्षिणी द्वार ही खुला है। संकट के समय इस किले को मेवाड़ के तत्कालीन शासकों के लिए शरणगाह के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता था। गुजरात के शासक अहमद शाह प्रथम ने एक बार 1457 में इस किले पर आक्रमण भी किया, लेकिन उसकी कोशिश बेकार गई। 1458 और 1467 में इस किले पर फिर से आक्रमण हुए, इस बार आक्रमणकारी था महमूद खिलजी, लेकिन ये कोशिश भी बेकार गई। ये किले की मजबूत नींव और निर्माण का ही परिणाम था कि सीधे हमले से तो ये किला सदैव ही अभेद्य रहा। जब 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड पर हमला करके चित्तौडगढ़ के किले को अपने कब्ज़े में ले लिया था, तो मेवाड़ के नवजात राजकुमार उदय सिंह को चित्तौड से लाकर यहाँ इसी किले में छुपाकर रखा गया था । इसी राजकुमार उदय सिंह ने आगे चलकर राजगद्दी संभाली और बाद में उदयपुर शहर भी स्थापना भी की। किले की बाहरी दीवार इतनी चौड़ी है कि इसपर एक साथ 8 घोड़ो को क्रमबद्ध तरीके से खड़ा किया जा सकता है। तत्कालीन दौर में यहाँ तोपख़ाना हुआ करता था, प्रदर्शनी स्वरूप कुछ तोपें यहाँ एक कक्ष में रखी गई है, बगल में ही चित्रों के माध्यम से उस दौर की जीवन शैली को दिखाने का प्रयास भी किया गया है।

यहाँ हमें कुछ उपकरणों के अवशेष भी देखने को मिले। इन उपकरणों को तोप में प्रयोग होने वाले बारूद की पिसाई और गोले बनाने के काम में प्रयोग में लाया जाता था। तोपखाने के पास ही एक छोटा कुंड भी था, जिसे शायद तोपखाने में काम करने वाले श्रमिक उपयोग में लेते होंगे। तोपखाने के पीछे किले की बाहरी दीवार में हथियारबंद सैनिकों के खड़े होने की व्यवस्था थी जो किले पर हमले के समय सुरक्षा की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण था। बादल महल इस किले की सबसे खूबसूरत इमारतों में से एक है। यहाँ भी एक मंदिर बना है। कुछ सीढ़ियाँ महल के गुप्त दरवाज़ों की ओर जाती है, हालाँकि, वर्तमान में इन दरवाज़ों को बंद कर दिया गया है। नीचे नीलकंठ महादेव मंदिर में एक विशाल शिवलिंग भी स्थापित है। मंदिर की संरचना ही कुछ ऐसी है कि बाहर कितनी ही धूप हो, यहाँ अंदर हमेशा ठंडक ही बनी रहती है।

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