
Charbhujanath Temple History : राजस्थान के राजसमंद जिले की कुम्भलगढ़ तहसील में गढ़बोर गांव में स्थित चारभुजा नाथ मंदिर मेवाड़ के चार धामों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप, जिन्हें चारभुजा नाथ के नाम से पूजा जाता है, को समर्पित है। इस मंदिर का इतिहास पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानीय परंपराओं से बुना हुआ है, जो इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अद्वितीय बनाता है। चारभुजा नाथ मंदिर का इतिहास भक्ति, बलिदान और चमत्कारों की गाथा है। पांडवों से लेकर मेवाड़ के महाराणाओं और गुर्जर पुजारियों की अनूठी परंपराओं तक, यह मंदिर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का जीवंत प्रतीक है। गढ़बोर का यह तीर्थ स्थल न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत के श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र गंतव्य बना हुआ है।
charbhuja temple gadbor : मेवाड़ के चार धामों में सम्मिलित चारभुजा मंदिर राजसमंद जिले में सबसे प्राचीन हैं। हजारों वर्ष से वहां जलझूलनी मेला लगता है, इसका उल्लेख मंदिर के बाहर लगे शिलालेखों में भी है। शिलालेख से ही पता चलता है कि मंदिर लूटने के दौरान मंदिर की सुरक्षार्थ सेवकों के काम आने पर उनकी स्त्रियां मंदिर के बाहर सती हुई सती चबूतरे के शिलालेख में बताया है कि वैशख शुक्ल पक्ष तृतीया वि.सं. 1873 तारीख 30 अप्रैल 1916 ईस्वी के अनुसार सेवक सुजाजी बगड़वाल, जगाजी चौहान, दौलाजी चौहान और लाखाज पंचोली के काम आने के बाद उन चारों की पत्नियां सती हुई, इनकी प्रतिमा आज भी लगी है।
Charbhuja Temple Garhbor : इतिहासकार शिवपालसिंह चुंडावत ने बताया कि पांडवकालीन मंदिर लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पुराना है और भगवान के चांदी के पाट लगभग दो हजार वर्ष पुराने होने का वर्णन है। गांव का पुराना नाम बदरी, चारभुजा बद्रीनाथ। मंदिर में भगवान विष्णु के चतुर्भुज अवतार की पूजा होती है और गुर्जर समाज के पुजारी सेवा करते हैं। शिलालेख मैं इस गांव का पुराना नाम बदरी लिखा है और उसमें श्री चारभुजानाथ जी को बद्रीनाथ भी दर्शा रखा है। कालांतर में पुजारी सूराजी बगड़वाल को ठाकुर जी मिले और उसके बाद देसूरी के तंवर वंश बोराणा राजपूतों ने गढ़वीर कस्बा बसाया, जिसमें चौहान, परमार, खरवड़, सिसोदिया, सोलंकी राजपूतों की जागीर में रहने का उल्लेख है। अंत में यह गांव देसूरी के सोलंकियों की जागीर में रहा और वि.सं. 1785 सन 1728 में देसूरी रूपनगर के तत्कालीन शासक प्रतापसिंह सोलंकी ने गांव को हमेशा के लिए श्री चारभुजानाथ जी को धर्मार्थ दे दिया था।
चारभुजा मंदिर दर्शन का समय
Charbhuja temple timings : यह मंदिर सुबह 5 बजे खुल जाता है और दिनभर दर्शन खुले रहते हैं। हालांकि चारभुजानाथ के शृंगार व भोग के दौरान कुछ देर दर्शन बंद रहते हैं। इसके अलावा शाम को शयन तक लगातार दर्शन खुले ही रहते हैं।
- मंगला दर्शन : 5.30 बजे से 6.30 बजे तक
- ग्वाल दर्शन : 8.15 बजे से 11 बजे तक
- राजभोग दर्शन : 11.30 बजे से 3.45 बजे तक
- उत्थापन दर्शन : शाम 4 बजे
- संध्या आरती दर्शन : शाम 7 बजे से
- शयन दर्शन : 8.45 बजे से रात 10 बजे तक

पौराणिक उत्पत्ति: पांडवों और श्रीकृष्ण से संबंध
Charbhuja Mandir : चारभुजा नाथ मंदिर का इतिहास लगभग 5285 वर्ष पुराना माना जाता है, जो पांडवकाल से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम भक्त उद्धव को हिमालय में तपस्या करने का आदेश दिया और स्वयं गोलोक जाने की इच्छा व्यक्त की। उद्धव ने श्रीकृष्ण से कहा कि उनके गोलोक जाने की खबर से पांडव और सुदामा जैसे भक्त प्राण त्याग देंगे। तब श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा को आदेश दिया कि उनकी और बलराम की मूर्तियां बनाई जाएं। ये मूर्तियां राजा इंद्र को सौंपकर पांडवों और सुदामा को दी गईं, ताकि वे इनका पूजन कर सकें।
कहा जाता है कि गढ़बोर में चारभुजा नाथ के रूप में स्थापित मूर्ति वही है, जिसकी पूजा पांडवों ने की थी। पांडवों ने हिमालय जाने से पहले इस मूर्ति को जलमग्न कर दिया था, ताकि इसकी पवित्रता को कोई खंडित न कर सके। पास के सेवंत्री गांव में रूपनारायण के नाम से स्थापित मूर्ति सुदामा द्वारा पूजित बलराम की मूर्ति मानी जाती है।
मंदिर का निर्माण: गंगदेव और स्वप्न का आदेश
Charbhuja Temple Rajsamand : ऐतिहासिक रूप से, चारभुजा नाथ मंदिर का निर्माण सन् 1444 ईस्वी में खरवड़ राजपूत शासक गंगदेव द्वारा करवाया गया। कथा है कि गंगदेव को स्वप्न में भगवान चारभुजा नाथ ने दर्शन देकर आदेश दिया कि वे जल में से उनकी मूर्ति निकालकर मंदिर में स्थापित करें। गंगदेव ने ऐसा ही किया और गोमती नदी के किनारे मूर्ति को स्थापित करवाकर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर की वास्तुकला में सफेद संगमरमर, चूना मसाला और शीशे का उपयोग किया गया, जो इसकी शोभा को और बढ़ाता है। मंदिर के अंदर शानदार शीशे का काम और बाहर सोने की परत चढ़े द्वार इसकी भव्यता के प्रतीक हैं।
मुगल काल और मूर्ति की रक्षा
Shri Charbhuja Temple : मुगल काल में मंदिर और इसकी मूर्ति को कई बार खतरा हुआ। मुगलों के अत्याचारों से बचाने के लिए मूर्ति को बार-बार जलमग्न किया गया। कहा जाता है कि मंदिर की रक्षा के लिए 125 से अधिक युद्ध लड़े गए। मेवाड़ के महाराणाओं ने मंदिर की व्यवस्था और सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। महाराणा संग्राम सिंह, जवान सिंह और स्वरूप सिंह जैसे शासकों ने मंदिर के रखरखाव के लिए जागीरें प्रदान कीं और इसकी सुव्यवस्था सुनिश्चित की।
एक रोचक कथा महाराणा और पुजारी देवा से जुड़ी है। एक बार महाराणा उदयपुर से देर रात दर्शन के लिए पहुंचे, तब पुजारी देवा ने भगवान का शयन करा दिया था और महाराणा को दी जाने वाली माला स्वयं पहन ली थी। महाराणा ने माला में सफेद बाल देखकर पूछा कि क्या भगवान बूढ़े हो गए हैं। घबराए पुजारी ने हां कह दिया। अगले दिन जांच में भगवान के केशों में एक सफेद केश दिखा, जिसे हटाने पर मूर्ति से रक्त की बूंदें निकलीं। यह चमत्कार देखकर महाराणा ने भक्त देवा की भक्ति को स्वीकार किया। उसी रात भगवान ने महाराणा को स्वप्न में आदेश दिया कि भविष्य में कोई महाराणा गढ़बोर दर्शन के लिए न आए। तब से यह परंपरा है कि मेवाड़ के महाराणा यहां दर्शन नहीं करते, लेकिन युवराज के रूप में महाराणा बनने से पहले दर्शन करने आते हैं।
अनूठी पूजा परंपराएं: ओसरा प्रथा
Famous Krishana Temple : चारभुजा नाथ मंदिर की पूजा परंपराएं अनूठी हैं। यहां गुर्जर समाज के लगभग 1000 परिवार बारी-बारी से एक माह तक पूजा और सेवा करते हैं, जिसे “ओसरा” कहा जाता है। यह प्रथा परिवारों की संख्या के आधार पर निर्धारित की गई है। कुछ परिवारों को जीवन में केवल एक बार (48-50 वर्ष में) यह अवसर मिलता है, जबकि कुछ को हर 4 वर्ष में। प्रत्येक अमावस्या को ओसरा बदलता है, और नया परिवार मुख्य पुजारी बनता है।
ओसरा के दौरान पुजारी को कठिन नियमों का पालन करना पड़ता है, जैसे व्यसन से दूर रहना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, साबुन का उपयोग न करना, और मंदिर में ही रहना। यदि परिवार में मृत्यु भी हो जाए, तब भी पुजारी पूजा का दायित्व निभाता है। भगवान की रसोई में केवल चांदी के कलश में लाए गए जल का उपयोग होता है। यह प्रथा मंदिर की पवित्रता और भक्ति की गहराई को दर्शाती है।
मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएं
चारभुजा नाथ मंदिर राजस्थानी शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर का शिखर ऊंचा है, और गर्भगृह में भगवान चारभुजा नाथ की 85 सेमी ऊंची मूर्ति स्थापित है, जो काले पत्थर से बनी है। मूर्ति के चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल सुशोभित हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर पत्थर के विशाल हाथी बने हैं, और गर्भगृह के मुख्य द्वार पर सोने की परत चढ़ी है। मंदिर के पास एक बावड़ी और हनुमानजी का मंदिर भी है। भाद्रपद एकादशी (झालिझूलनी एकादशी) पर यहां विशेष उत्सव और जलझूलनी मेला आयोजित होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
ऐतिहासिक लूट और शिलालेख
मंदिर के इतिहास में कुछ दुखद घटनाएं भी दर्ज हैं। 1873 में ग्वालियर के सिंधिया शासकों के अधीन मेवाड़ के सूबेदार आंबाजी इंगले के सेनापति तांत्या गंगाधर राव ने मंदिर को दो बार लूटा। इसके बाद मराठा सूबेदार अमृत राय ने कठोर कदम उठाते हुए शिलालेख लगवाकर मंदिर की लूट पर रोक लगाई। मंदिर के बाहर लगे तीन शिलालेखों में एक में महाराजा जयसिंह और उनके पुत्र कुंवर अमरसिंह के बीच हुए समझौते का उल्लेख है, जबकि अन्य में मंदिर की सुरक्षा और भविष्य में लूट न करने की प्रतिज्ञा दर्ज है।
आधुनिक समय में मंदिर
आज भी चारभुजा नाथ मंदिर मेवाड़ और मारवाड़ के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। हाल के वर्षों में, मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य भी हुआ है, और यह पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय हो रहा है। हर साल दीपावली और जन्माष्टमी जैसे अवसरों पर विशेष आयोजन होते हैं, जिसमें भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
विदेशी आक्रांता को खदेड़ा, मराठा सेनापति ने लूटा
Charbhuja Temple Kumbhalgarh : पांडव कालीन भगवान चारभुजा मंदिर को कई बार लूटने का प्रयास किया गया, लेकिन मेवाड़ की सेना ने हर बार विदेशी आक्रांताओं को खदेड़ कर असफल किया। मराठाकाल के दौरान वि.सं. 1873 में ग्वालियर के सिंधिया शासकों के अधीनस्थ मेवाड़ के सूबेदार आंबाजी इंगले के सेनापति तांत्या गंगाधर राव ने चारभुजा मंदिर को दो बार लूटा। उसके बाद मराठा सूबेदार अमृत राय ने कठोर कदम उठाते हुए हिंदू और मुस्लिमों को दुबारा मंदिर न लूटने के लिए शिलालेख लगवाकर राजाज्ञा उत्कीर्ण करवाई। उसके बाद मराठाओं ने वापस कभी नहीं लूटा।

दो शिलालेखों में मंदिर सुरक्षा का वर्णन
Charbhujaji temple history : भगवान चारभुजा मंदिर के बाहर लगे तीन शिलालेख में प्रथम शिलालेख महाराजा जयसिंह और उनके पुत्र कुंवर अमरसिंह के मध्य हुए भगवान चारभुजानाथ के समक्ष हुए समझौते का वचन पत्र बना रखा है। एक अन्य शिलालेख में राचत जाति ने लोगों की प्रतिज्ञा है जिसमें भविष्य में चारभुजा जी के पुण्याचं भेंट गड़बोर वासुंदा, जबरिया आदि गांवों में किसी भी प्रकार का उजड़-बिगाड़ नहीं करेंगे लिखा है।
Charbhuja Garhbor : मेवाड़, मारवाड़, मालवा और हाड़ौती के शासकों ने अपने अपने क्षेत्र में श्री ठाकुर जी के नाम भूमिदान किया है तथा अनेक शासकों ने मंदिर को श्रद्धानुसार दान दिए जाने के उल्लेख रजतपत्रों पर अंकित है। मूल मंदिर निर्माण को लेकर कोई वर्णन नहीं है, लेकिन वि.सं. 1501 के शिलालेख के अनुसार प्राचीन मंदिर का समय समय पर श्रद्धालुओं ने जीणोद्धार कराया है।
इन ठिकाणों की थी मेले की सुरक्षा जिम्मेदारी
Charbhuja Nath Temple Rajsamand : मंदिर की सुरक्षा आम दिनों में रूपनगर और झीलवाड़ा ठिकानों के द्वारा की जाती थी। मेले में जाब्ते के लिए मेवाड़ रियासत द्वारा कुंभलगढ़ से सेना भेजी जाती थी। वे जगह-जगह चीकियां बैठा थे और घुड़सवारों की मदद से गश्त करते थे। झीलवाड़ा, रूपनगर, ओलादर, केलवा, मोती, कोठारिया और चारभुजा रोड स्टेशन से गोमती तक आमेट ठिकाने के अश्वारोही सैनिक निरंतर गश्त लगा कर यात्रियों के जत्थों को सुरक्षा देते थे।
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Laxman Singh Rathor को पत्रकारिता के क्षेत्र में दो दशक का लंबा अनुभव है। 2005 में Dainik Bhakar से कॅरियर की शुरुआत कर बतौर Sub Editor कार्य किया। वर्ष 2012 से 2019 तक Rajasthan Patrika में Sub Editor, Crime Reporter और Patrika TV में Reporter के रूप में कार्य किया। डिजिटल मीडिया www.patrika.com पर भी 2 वर्ष कार्य किया। वर्ष 2020 से 2 वर्ष Zee News में राजसमंद जिला संवाददाता रहा। आज ETV Bharat और Jaivardhan News वेब पोर्टल में अपने अनुभव और ज्ञान से आमजन के दिल में बसे हैं। लक्ष्मण सिंह राठौड़ सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि खबरों की दुनिया में एक ब्रांड हैं। उनकी गहरी समझ, तथ्यात्मक रिपोर्टिंग, पाठक व दर्शकों से जुड़ने की क्षमता ने उन्हें पत्रकारिता का चमकदार सितारा बना दिया है।
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