गुजरात के कच्छ में मर्यादा महोत्सव, दीक्षा में उम्र की सीमा को शांतिदूत ने किया समाप्त, देशभर से आए श्रावक। Acharya Mahashraman और Sadhvi Pramukh भी थे मौजूद

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Maryada Mahotsav 2025 : गुजरात के भुज का ऐतिहासिक स्मृतिवन परिसर में बने जय मर्यादा समवसरण के विशाल पण्डाल में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 161वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय आयोजन का शिखर दिवस। गुजरात के प्रथम मर्यादा महोत्सव के अंतिम दिवस चतुर्विध धर्मसंघ की विराट उपस्थिति। निर्धारित समय पर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण (Acharya Mahashraman) मंगलवाणी से उच्चरित मंगल महामंत्रोच्चार के साथ भव्य कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनि दिनेश कुमार ने जयघोष कराया। जयघोष से पूरा स्मृतिवन गुंजायमान हो रहा था। मुनि दिनेश कुमार ने ‘मर्यादा गीत’ का संगान कराया।

मर्यादा महोत्सव में शामिल हुए धर्मसंघ कार्यकर्ता राजकुमार दक ने बताया कि प्रारंभ में समणीवृंद ने गीत का संगान किया। तत्पश्चात साध्वीवृंद ने अपनी गीत को प्रस्तुति दी। तदुपरान्त मुनिवृंद ने भी मर्यादा महोत्सव के शिखर दिवस पर गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। गीतों की प्रस्तुति के उपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ की नवीं साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभाजी (Sadhvi Pramukh) ने चतुर्विध धर्मसंघ को उद्बोधित करते हुए प्रेरणा प्रदान कीं।

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maryada mahotsav bhuj : मर्यादा महोत्सव के शिखर दिवस पर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान शिखरपुरुष आचार्य श्री महाश्रमण (Acharya Mahashraman) ने जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि हम धर्म से जुड़े हुए हैं। आज हम एक धर्मसंघ के मर्यादा महोत्सव समारोह से भी जुड़े हुए हैं। भगवान महावीर के इस शासन में अनेक आम्नाय हैं। दिगम्बर हैं, श्वेताम्बर हैं। श्वेताम्बर परंपरा में भी अनेक संप्रदाय हैं, उनमें से एक है तेरापंथ धर्मसंघ। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ का संस्थापन वि.सं. 1817 में हुआ था। आज वर्तमान में इस धर्मसंघ को शुरु हुए 264 वर्ष संपन्न हो चुके हैं। हमारे धर्मसंघ के आदि अनुशास्ता भिक्षु स्वामी हुए। वे हमारे धर्मसंघ के पिता हैं और हम सभी उनकी संतानें हैं। उन्होंने धर्मसंघ की स्थापना की और उन्होंने मर्यादाएं भी बनाईं। उनकी एक लिखित मर्यादा पत्र वि.सं. 1859 का प्राप्त होता है। आचार्यश्री ने उस पत्र को दिखाते हुए कहा कि यह पत्र मानों हमारा गणछत्र है। इससे संदर्भित आज का यह मर्यादा महोत्सव आयोजित हो रहा है। मर्यादा महोत्सव का प्रारम्भ प्रज्ञापुरुष श्रीमज्जयाचार्य ने किया था। वि.सं. 1919 में राजस्थान के बालोतरा से हुआ। हमारे धर्मसंघ ने अतीत में दस आचार्यों का शासनकाल देख लिया है। यह मर्यादाओं का महोत्सव है। भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी भारत का मर्यादा महोत्सव है और हमारे धर्मसंघ का मर्यादा महोत्सव चल रहा है। इसके माध्यम से न्यारा में चतुर्मास करने वाले चारित्रात्माओं को गुरुदर्शन और सेवा में रहने का अवसर मिल जाता है। इसमें एक आचार्य के नेतृत्व में रहने की व्यवस्था है। इसमें एक आचार्य का ही विधान है। आचार्य की आज्ञा से ही साधु-साध्वियां हार-चतुर्मास करते हैं। इस नियम में 265 वर्षों में आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ। हमारे यहां साधु-साध्वियां भी हैं और समणश्रेणी भी हैं।

maryada mahotsav speech : परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के समय इस श्रेणी का प्रारम्भ हुआ है। ये साध्वियां तो नहीं हैं, किन्तु अनेक अंशों में साध्वियों के समान ही हैं। ये वाहन का यथाविधि उपयोग कर सकती हैं। देश-विदेश में जा सकती हैं और धर्म प्रचार कर सकती हैं। आचार्यों की दृष्टि के बिना आज तक कोई चतुर्मास नहीं हुए हैं। जहां आचार्य विहार के लिए कह दें, वहां विहार करने की मर्यादा है। कोई भी साधु-साध्वी अपना-अपना शिष्य-शिष्याएं न बनाएं। कभी-कभी साधु-साध्वी आचार्य की दृष्टि से दीक्षा तो सकते हैं, किन्तु वह शिष्य तो आचार्य का ही होता है। आचार्यश्री भी योग्य व्यक्ति को दीक्षित करते हैं और कोई दीक्षा के बाद भी अयोग्य निकले तो उसे गण से बाहर कर सकते हैं। योग्यता देखकर ही दीक्षा देनी चाहिए। आचार्य अपने गुरुभाई या शिष्य को अपना उत्तराधिकारी चुने तो उसे सभी साधु-साध्वियां सहर्ष स्वीकार करते हैं। पूरे धर्मसंघ में इन पांच मर्यादाओं का सम्यक् और दृढ़ता के साथ पालन हो रहा है। आचार्यश्री ने ‘हमारे भाग्य बड़े बलवान, मिला यह तेरापंथ महान’ गीत का आंशिक संगान किया।

maryada mahotsav speech : आचार्य श्री ने आगे कहा कि साधु-साध्वियों रूपी गण को प्रणमन करता हूं। हमारे पूर्वाचार्यों ने मर्यादाओं में विस्तार भी किया है। संन्यास व साधुता के प्रति पूर्ण जागरूकता रहे। हमारे धर्मसंघ में साधु-साध्वियां, समणियां और श्रावक-श्राविकाएं भी हैं। इनके साथ हमारी अनेक संस्थाएं भी हैं। केन्द्रीय हैं और स्थानीय और प्रान्तीय स्तर पर भी होती हैं। कितनी हमारी केन्द्रीय संस्थाएं कितनी अनुशासित और जागरूक होती हैं। जिनका कार्य बहुत व्यवस्थित प्लानिंग, योजना और फिर उसकी क्रियान्विति भी होती हैं। ये संस्थाएं समाज के सौभाग्य की बात है। कल्याण परिषद एक ऐसा मंच है, जहां योजनाओं पर निर्णय होता है और उसका पालन भी होता है। विकास परिषद भी है, वह भी कल्याण परिषद के अंतर्गत ही है। समाज की कई गतिविधियां भी बहुत उपयोगी हैं। ज्ञानशाला के माध्यम से छोटे-छोटे बच्चों को धार्मिक ज्ञान देने का बहुत सुन्दर उपक्रम है। महासभा के तत्त्वावधान में चलने वाली इस ज्ञानशाला में सभाएं और फिर अनेक संस्थाएं जुड़ी हुई होती हैं, बहुत अच्छा क्रम देखने को मिल रहा है। ज्ञानशाला और ज्ञानार्थियों की संख्या भी बढ़े तो बालपीढी के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है।

Jain Svetambara Terapanth Dharma Sangh : उपासक श्रेणी भी महासभा के तत्त्वावधान में चल रही है। आज इतने उपासक-उपासिकाएं बन गए हैं। उपासक-उपासिकाओं की संख्या भी बढ़े। पर्युषण में उनका अच्छा उपयोग हो और कभी संथारे की बात हो, जहां साधु-साध्वियां न हों, समणियां न हों तो उपासक-उपासिकाएं संथारा करा सकते हैं अणुव्रत आन्दोलन, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान जो हमारी गैर संप्रदायिक और लोककल्याणकारी प्रवृत्तियां हैं, जो गुरुदेव तुलसी के समय से चल रही हैं। इनके माध्यम से जन-जन का कल्याण हो सकता है।

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दीक्षा में उम्र संबंधी बाधा हुई समाप्त

161वें मर्यादा महोत्सव में आचार्य श्री महाश्रमण ने धर्मसंघ को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने पहले पुरुषों की दीक्षा में 50 वर्ष की सीमा लगी हुई थी। उसे आचार्यश्री ने खोलते हुए कहा कि जिस अवस्था के व्यक्ति की दीक्षा की इच्छा होगी, यदि वह हमारी कसौटियों पर खरा उतरेगा, उसे दीक्षा प्रदान की जा सकती है।

अहमदाबाद चतुर्मास में दीक्षा समारोह की घोषणा

मुमुक्षु कल्प मेहता, मुमुक्षु प्रीत कोठारी, मुमुक्षु मोहक बेताला, मुमुक्षु मनीषा, मुमुक्षु प्रेक्षा, मुमुक्षु राजुल, मुमुक्षु भावना, मुमुक्षु कीर्ति भाद्रव शुक्ला एकादशी 3 सितम्बर 2025 को चतुर्मास स्थल में दीक्षा समारोह के दिन इन आठ मुमुक्षुओं को मुनि व साध्वी दीक्षा देने का भाव है। मुमुक्षु भाविका, मुमुक्षु बिनू, मुमुक्षु अंजलि और मुमुक्षु साधना को उसी दीक्षा समारोह में समणी दीक्षा देने का भाव है। वैरागी श्री मनोज संकलेचा को साधु प्रतिक्रमण सीखने की स्वीकृति प्रदान की।

आचार्य महाश्रमण ने किया स्वरचित गीत का संगान

मर्यादा महोत्सव के अवसर पर तेरापंथ अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने स्वरचित गीत ‘करें हम आध्यात्मिक उत्थान रे, शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय का’ संगान किया। अपने आराध्य के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने इस गीत का संगान किया।

मर्यादा पत्र का तेरापंथ के अनुशास्ता ने किया वाचन

गीत संगान के उपरान्त आचार्यश्री ने मर्यादा महोत्सव के आधार ‘मर्यादा पत्र’ का वाचन किया। साधु-साध्वियों ने तन्मयता के साथ उसका अनुश्रवण किया। यह वही मर्यादा पत्र है, जिसकी मर्यादा के आधार पर तेरापंथ शासन का संचालन होता है। राजस्थानी भाषा में लिखित इस मर्यादा पत्र को आचार्यश्री ने वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को त्याग भी कराया। 43 साधु और 53 साध्वियां और 43 समणियों की उपस्थिति रही। तदुपरान्त विशाल प्रवचन पण्डाल में एक ओर संतवृंद, दूसरी ओर साध्वीवृंद और मध्य में समणीवृंद ने पंक्तिबद्ध होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादा, अनुशासन व व्यवस्था की इस नयनाभिराम दृश्य को देखकर भुज की धरा ही नहीं उपस्थित हजारों नेत्र हर्षान्वित और गौरवान्वित हो रही थीं। उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को आचार्यश्री ने ‘श्रावक निष्ठा पत्र’ का वाचन कराया। जो श्रावक-श्राविकाओं के वाचन से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री ने देश के विभिन्न हिस्सों में साधु-साध्वियों के विहार चतुर्मासों की घोषणा की। साथ ही आचार्यश्री ने विदेशों और देश के अन्य हिस्सों में स्थित श्रावक समाज को लाभान्वित करने के लिए सेण्टर्स व उपकेन्द्र की घोषणा की।

नॉनवेज व शराब से दूर रहने की सीख

आचार्य श्री ने आगे प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि तेरापंथ समाज कही भी रहे, कहीं भी जाए, नॉनवेज व शराब आदि के सेवन से बचने का प्रयास करना चाहिए। अपनी निंदा का जवाब अपने अच्छे कार्यों से देने का प्रयास करना चाहिए। संयम के साथ अपना अच्छा कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। समाज की संस्थाओं में नैतिकता रखने का प्रयास करना चाहिए। मैत्री और शुद्ध भावना रखना ही धर्म है। दूसरों का कल्याण हो, इसके लिए दूसरों की सेवा का भी प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाजी, साध्वीवर्याजी और मुख्यमुनि महावीर धर्मसंघ को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। और भी साधु-साध्वियां चाहे गुरुकुलवास में हों या न्यारा में वे अपने कार्यों में ध्यान देते हैं। कई संत बहुत अच्छी सेवा दे रहे हैं। संत कई संस्थाओं के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं। बहुत कर्मठता से अपनी सेवा दे रहे हैं। कई साध्वियां आगम के कार्य और अन्य सेवा के कार्य से जुड़ी हुई हैं। सभी अपने कार्य मंे जुटे रहें। आचार्य श्री पट्ट से नीचे खड़े हुए तो अपने आराध्य के साथ चतुर्विध धर्मसंघ खड़ा हुआ और संघगान प्रारम्भ किया। संघगान से पूरा स्मृतिवन गूंज रहा था। इसके साथ ही आचार्यश्री ने भुज-कच्छ में आयोजित 161वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय समारोह की सम्पन्नता की घोषणा भी की। इस प्रकार ऐतिहासिक भूमि पर तेरापंथ धर्मसंघ का ऐतिहासिक रूप में सुसम्पन्न हुआ। समारोह में मेवाड़ क्षेत्र से युवा गौरव पदमचंद पटावरी, ज्ञानमल मादरेचा, राजकुमार दक, विनय कोठारी, भीमराज कच्छारा, कांतिलाल धाकड़, रमेश मुथा, ईश्वर डागलिया, विजेंद्र मादरेचा, रोशन लाल बाफना, श्रीमती कैलाश मादरेचा, श्रीमती ममता दक, श्रीमती मंजू, श्रीमती सरोज, मंजू दक, तनसुख नाहर, नरेंद्र तातेड, महेंद्र कोठारी आदि सहित अनेक श्रावक श्राविकाओं ने सहभागिता निभाकर गुरु आशीर्वाद प्राप्त किया।

मर्यादा महोत्सव, आचार्य महाश्रमण और तेरापंथ धर्म संघ ?

मर्यादा महोत्सव क्या है?

मर्यादा महोत्सव तेरापंथ धर्म संघ का एक महत्वपूर्ण वार्षिक उत्सव है, जिसे गुरु द्वारा निर्धारित अनुशासन और मर्यादा की पुनर्स्थापना के लिए मनाया जाता है। यह महोत्सव हर वर्ष पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस अवसर पर तेरापंथ धर्म संघ के साधु-साध्वीगण, श्रावक-श्राविकाएँ और अनुयायी मिलकर गुरु की आज्ञा, संघीय मर्यादा और अनुशासन के प्रति अपनी निष्ठा को प्रकट करते हैं। इस महोत्सव में साधु-साध्वियों के विहार, उनकी मर्यादा और कर्तव्यों की समीक्षा की जाती है।

मर्यादा महोत्सव की शुरुआत आचार्य भिक्षु ने 1864 में की थी। इसका मुख्य उद्देश्य संघ में अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखना था। इस अवसर पर संघ की प्रशासनिक संरचना, साधु-साध्वियों की मर्यादा, उनके कर्तव्य, नियम और आगामी दिशा-निर्देशों की घोषणा की जाती है। यह महोत्सव केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि आत्मसंयम, आत्मविश्लेषण और अनुशासन को आत्मसात करने का अवसर भी है।

मर्यादा महोत्सव तेरापंथ धर्म संघ का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो अनुशासन, आत्मसंयम और संगठनात्मक मर्यादा को बनाए रखने के लिए मनाया जाता है। मर्यादा का पालन व्यक्ति और समाज दोनों के लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह अनुशासन, नैतिकता और एकता को बनाए रखती है। आचार्य महाश्रमण तेरापंथ के वर्तमान आचार्य हैं, जो अहिंसा, नैतिकता और सद्भावना का प्रचार कर रहे हैं। तेरापंथ धर्म संघ अपनी अनुशासनप्रियता, एक गुरु परंपरा और कठोर साधना के लिए प्रसिद्ध है। इन सभी पहलुओं से यह स्पष्ट होता है कि मर्यादा और अनुशासन केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक हैं।

आचार्य महाश्रमण कौन हैं?

आचार्य महाश्रमण वर्तमान में तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारहवें आचार्य हैं। उनका जन्म 13 मई 1962 को राजस्थान के सरदारशहर में हुआ था। उन्होंने मात्र 18 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की और कठोर तपस्या एवं ज्ञानार्जन के माध्यम से वे 2010 में तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य बने। आचार्य महाश्रमण (जन्म 13 मई 1962) जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्याहरवें आचार्य हैं। उनके विचार उदार और धर्मनिरपेक्ष हैं। अहिंसा, नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को बढ़ावा देने में उनका दृढ़ विश्वास है। अहिंसा की सीख वे दुनिया को दे रहे हैं। उनका जन्म मूलत: सरदारशहर में वि.सं. २०१९, वैशाख शुक्ला नवमी (13 मई 1962) को हुआ। दूगड़ परिवार में नेमादेवी की कोख से जन्म हुआ। परिवार में मोहन नाम था। पिता झूमरमल थे। मोहन बचपन से ही मेधावी, श्रमशील, कार्यनिष्ठ विद्यार्थी थे। उनकी विनम्रता, भद्रता, ऋजुता, मृदुता और पापभीरुता हृदय का छूने वाली थी। उस समय कौन जानता था कि वह बालक आगे चलकर जैन श्वेतांबर तेरापंथ के 11वें आचार्य बनेंगे।

आचार्य महाश्रमण अहिंसा यात्रा के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसका उद्देश्य नैतिकता, नशामुक्ति और सद्भावना का संदेश देना है। उन्होंने हजारों किलोमीटर की पदयात्राएँ की हैं, जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ नेपाल और भूटान भी शामिल हैं। वे समाज में नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना, साधना और आत्मसंयम को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यरत हैं। आचार्यश्री महाश्रमण ने अब तक भारत के दिल्ली, बिहार, असम, नागालैंड, मेघालय, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पांडिचेरी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र ,छत्तीसगढ़ और नेपाल एवं भूटान की यात्रा कर लोगों को नैतिकता और सदाचार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया हैं।

उनके प्रमुख गुण और कार्य:

  1. अहिंसा यात्रा – नैतिकता, नशामुक्ति और सद्भावना का संदेश देना।
  2. संयम और साधना – कठोर तपस्या और अनुशासन का पालन।
  3. शिक्षा और ज्ञान का प्रचार – युवा पीढ़ी को नैतिकता और मर्यादा के प्रति प्रेरित करना।
  4. सरलता और सादगी – वे सादा जीवन और उच्च विचारों के लिए जाने जाते हैं।

तेरापंथ धर्म संघ क्या है ?

तेरापंथ धर्म संघ जैन धर्म की एक प्रमुख शाखा है, जिसकी स्थापना आचार्य भिक्षु ने 1760 में राजस्थान में की थी। यह संघ अपने कठोर अनुशासन, मर्यादा और संगठनात्मक संरचना के लिए जाना जाता है।

तेरापंथ की विशेषताएँ:

  1. एक गुरु परंपरा – तेरापंथ में केवल एक आचार्य होता है, जो पूरे संघ का नेतृत्व करता है।
  2. कठोर अनुशासन – साधु-साध्वियों को कठोर नियमों का पालन करना होता है, जैसे कि स्थायी आश्रम न रखना, आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना और पैदल विहार करना।
  3. संघीय व्यवस्था – संघ में आचार्य का सर्वोच्च स्थान होता है, और सभी साधु-साध्वियाँ उनके मार्गदर्शन में रहते हैं।
  4. अहिंसा और नैतिकता – तेरापंथ अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों पर आधारित है।
  5. सामायिक और प्रेक्षाध्यान – तेरापंथ धर्म संघ ध्यान, आत्मसंयम और आध्यात्मिक अभ्यास को प्रोत्साहित करता है।

Author

  • Laxman Singh Rathor in jaivardhan News

    लक्ष्मणसिंह राठौड़ अनुभवी पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया जगत में 2 दशक से ज़्यादा का अनुभव है। 2005 में Dainik Bhaskar से अपना कॅरियर शुरू किया। फिर Rajasthan Patrika, Patrika TV, Zee News में कौशल निखारा। वर्तमान में ETV Bharat के District Reporter है। साथ ही Jaivardhan News वेब पोर्टल में Chief Editor और Jaivardhan Multimedia CMD है। jaivardhanpatrika@gmail.com

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By Laxman Singh Rathor

लक्ष्मणसिंह राठौड़ अनुभवी पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया जगत में 2 दशक से ज़्यादा का अनुभव है। 2005 में Dainik Bhaskar से अपना कॅरियर शुरू किया। फिर Rajasthan Patrika, Patrika TV, Zee News में कौशल निखारा। वर्तमान में ETV Bharat के District Reporter है। साथ ही Jaivardhan News वेब पोर्टल में Chief Editor और Jaivardhan Multimedia CMD है। jaivardhanpatrika@gmail.com