कुंभलगढ़ के कुंचोली बस स्टैंड पर बेकाबू पिकअप पलटने से एक नरेगा श्रमिक की मौत और आधा दर्जन श्रमिकों के घायल होने के मामले में 24 घंटे तक महिला का शव केलवाड़ा अस्पताल के मुर्दाघर में पड़ा रहा। फिर ग्राम पंचायत ने लीपापोती करने के लिए बिना एफआईआर दर्ज करवाए व पोस्टमार्टम के बगैर ही शव ले गए और अंतिम संस्कार करवा दिया।
जानकारी के अनुसार 17 अगस्त पिकअप कुंचोली बस स्टैंड पर पलट गई। हादसे में नरेगा श्रमिक कुंचोली निवासी खमाणी पत्नी रूपलाल गमेती की मौत हो गई, जबकि वगतुड़ी पत्नी रूपलाल गमेती की हालत उदयपुर अस्पताल में नाजुक बनी हुई है। इसके अलावा नरेगा श्रमिक नवली पत्नी मोहनलाल, मीरकी देवा गमेती, पारसी पुत्री रामलाल सहित आधा दर्जन श्रमिक घायल हो गए। हादसे के बाद खमाणी को तत्काल केलवाड़ा अस्पताल ले जाया गया, जहां मृत्यु होने पर शव केलवाड़ा अस्पताल के मुर्दाघर में रखवाया गया। फिर पूरे मामले को रफादफा करने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा कथित तौर पर ले- देकर समझौता कर लिया गया। शव का पोस्टमार्टम नहीं होने, एफआईआर दर्ज नहीं होने से अब नरेगा के तहत नरेगा श्रमिक को सरकार द्वारा मिलने वाली मुआवजा राशि मिलना मुश्किल है।
गंगा तलाई पर चल रहा था कार्य
ग्राम पंचायत द्वारा कुंचोली में गंगा तलाई पर कार्य के लिए ममस्टरोल पूनम कुंवर पुत्री पे्रमसिंह व धुलकी बाई पुत्री सरूपलाल को मस्टरोल जारी किया गया। 15 से 17 अगस्त तक श्रमिकों ने कार्य किया। 17 अगस्त को हादसे के बाद ग्राम पंचायत द्वारा उक्त मस्टरोल को वापस ले लिया गया। मस्टरोल में 70 श्रमिक नियोजित थे, लेकिन पूरे मामले को रफा दफा के लिए मस्टरोल ही वासस ले लिया।
सरपंच- वीडीओ की भूमिका पर सवाल
कुंचोली में नरेगा कार्य में श्रमिक की मौत और घायल होने के मामले को रफादफा करने को लेकर कुंचोली सरपंच निर्मला देवी भील व ग्राम विकास अधिकारी हरीश मीणा की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है।
ये सवाल भी मांग रहे जवाब
- हादसा स्वाभाविक है, कभी भी, कहीं भी हो सकता है, मगर छुपाने की क्या जरूरत।
- हादसे में एक नरेगा श्रमिक की मौत होने के बाद भी ग्राम विकास अधिकारी द्वारा अनभिज्ञता क्यों जताई जा रही
- हादसे के बाद शव केलवाड़ा अस्पताल में पड़ा रहा और मर्ग तक दर्ज क्यों नहीं किया गया
- नरेगा श्रमिक की मौत के बाद शव का पोस्टमार्टम क्यों नहीं करवाया गया
- हादसे के बाद कुंचोली में गंगा तलाई के मस्टरोल ग्राम पंचायत द्वारा वापस क्यों ले लिया, जबकि 70 श्रमिक कार्य कर रहे थे
- जब मामला पंचायतीराज विभाग के संज्ञान में आ गया, तब भी विभाग द्वारा गंभीरता से कार्रवाई क्यों नहीं की गई।