दशरथ पुत्र राम कोई व्यक्ति हो सकता है, मगर मर्यादा पुरुषोत्तम राम उस व्यक्ति का व्यक्तित्व हो जाया करता है और तुलसीकृत रामचरितमानस उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का कृतित्व हो जाया करता है। यही जीवन में राम बनने की प्रक्रिया है, मगर इस प्रक्रिया के लिए त्याग, तप, तपस्या और साधना का बहुत ही कठिन मार्ग है, जिस पर चलना एक आम आदमी के लिए आसान नहीं होता है। राम का प्रभाव जनमानस पर त्रेता युग में जितना था, उतना ही आज भी है। अवतार जन्म नहीं लेते, वह तो मानव ही होते हैं, मगर अपने कर्म, अपने व्यक्तित्व और कृतित्व की वजह से वो मानव से महामानव और उसके बाद ईश्वर के अवतार के रूप में पूजनीय हो जाते हैं।
दशरथ पुत्र राम होना जन्म है, वो इस तरह से है, जिस तरह से एक सामान्य बालक का किसी पिता के घर में जन्म लेना, मगर मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनना उस व्यक्ति की यात्रा है । उस यात्रा के पड़ाव में जो भी घटित होता है। वह प्रत्येक घटना इंसान के चरित्र को निखारती हुई नज़र आती है और उस चरित्र का आभामंडल इतना व्यापक, इतना व्योम, इतना उत्कृष्ट हो जाता है कि सृष्टि का कण-कण अपनी गूंज के साथ राम राम शब्द का ही उच्चारण करता नज़र आता है। तीनों लोकों के देवी देवता संपूर्ण ब्रह्मांड को साक्षी बनाकर जगत के पालनहार मर्यादा पुरुषोत्तम का जयघोष करने लगते है। जय राम, श्री राम, जय जय राम… राम उसी सत्य का नाम है, जो असत्य पर विजय पाकर सत्य को सनातन सत्य बनाने की क्षमता रखता है। वो सनातन सत्य हर युग में असत्य को परास्त कर धर्म की ध्वजा को लहराता है। राम का नाम ही सत्य है और यही मोक्षदायी भी है। इसीलिए तो पार्थिव शरीर को ले जाते हुए भी राम नाम सत्य है… का उच्चारण किया जाता है। राम तुलसी का प्रेम, सबरी का सब्र और कृष्ण भक्ति में डूबी मीरा का वो गान है जो दीवानी हो….. गा उठती है- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो….., शिला बनी अहिल्या का उद्धार करते हुए राम पत्थर में भी प्राण फूंक देते हैं। जड़ को चेतन बनाने का यह काम राम बड़ी आसानी से कर लेते हैं। पांच तत्व से बना शरीर प्रकृति का ही वो अंश होता है, जो अपने तप, अपनी तपस्या से परमात्मा का अवतार बन सारे जगत को तार देता है और तारणहार बन जाता है। राम नें अपनी लीला में अपने विराट स्वरूप को कभी नहीं दिखाया। ये मर्यादा राम ने पुरुषोत्तम बनते हुए भी दिखाई है। कृष्ण ने अपने अवतार में अपने विराट रूप को दिखा कर पूर्ण अवतार होने का प्रमाण दिया है, मगर राम को मर्यादा ने बांधे रखा और मर्यादा में रहकर किसी लीला को करना, राम के लिए तो आसान था, मगर कृष्ण के लिए यही कार्य कठिन प्रतीत होता नज़र आता है, इसीलिए कृष्ण को छलिया कहा गया ।
राम को सोलह कलाओं में वो सब करना पड़ा, जिसे कृष्ण चौसठ कलाओं का प्रदर्शन करके किया। राम ने उस कुल में जन्म लिया, जिस कुल के राजा कई पत्निया ब्याह कर लाते थे। राम के पिता दशरथ के ही तीन पत्नियां थी, मगर राम ने एक पत्नी को अपनी अर्धांगिनी बनाकर समाज में नारी को भोग विलास से ऊपर उठाकर जो सम्मान दिया है, वह सम्मान आज भी समाज में साक्ष्य बनकर सनातन धर्म में सात फेरों में सात जन्मों के लिए बनने वाले बंधन में पति – पत्नी के लिए एक मर्यादित उदाहरण है, राम आदर्श है, उस सनातन धर्म संस्कृति और समाज का जिसने वसुधा पर रहने वाले प्रत्येक जीव को वसुधैव कुटुंबकम् के सूत्र में बांधकर जगत में प्रेम को, भाईचारे को, सूत्र समानता को बिना किसी भेदभाव के अपनाया है। राम सभी जीवों की भाषा को समझने का सामर्थ्य रखते थे, चाहे फिर वो नभचर, थलचर या जलचर ही क्यों ना हो, इसलिए उन्होंने पाप का सर्वनाश करने के लिए अपनी सेना में सभी को स्थान दिया ।
समाज में ऊंच नीच का भेद मिटाकर सबको सहयोगी बना कर सबका साथ, सबका विकास करना ही समाज में रामराज्य की स्थापना करना है। राम का मंदिर अयोध्या में जो बना रहा है, वो दुनिया में रामराज्य की स्थापना करने का शिलान्यास है। भय और आतंक से ग्रसित दुनिया रामराज्य की कल्पना को साकार करती नज़र आएगी । विश्व में भारत भूमि की महानता एक दिन भारत को फिर सें विश्व गुरू बनाएगी। राम का आदर्श, राम की मर्यादा, राम की शिक्षा, राम का वचन, राम की निष्ठा, राम का कर्म फिर से सारी दुनिया में स्थापित होगा। ऐसा प्रतीत हो रहा है, आज सारी दुनिया राममयी हो रही है।
राम का जन्म नवमीं को हुआ, इसीलिए हम रामनवमी के पर्व को हर वर्ष बड़े हर्ष से मनाते हैं, नवमी में जो नौ का अंक है, उससे राम के जन्म को आसानी से समझ सकते हैं, जो अपने नौ द्वार व पांच इंद्रियों को अपने वश में रख सके और मन रूपी घोड़े को अपने मर्यादा रूपी रथ में जोत कर उसकी लगाम अपने हाथ में रख सके, वही दुनिया में राम बन सकता है। दशानन रूपी राक्षस रावण का वध करने के लिए, अपनी इंद्रियों को वश में करके अपनी शक्ति का जो संचय कर सकता है, वही राम शक्तिपुंज बनकर सनातन सत्य की रक्षा कर सकता है। राक्षसी प्रवृत्ति के लोग हर युग में आएंगे, उसका दमन करने के लिए हर योद्धा को अपनी शक्ति का इसी तरह से केंद्रीकरण करते हुए, हर युग में लड़ना होगा । राम – रावण युद्ध अच्छाई और बुराई के बीच चलने वाले संघर्ष का नाम है, कहते हैं सत्य परेशान तो हो सकता है, मगर पराजित नहीं हो सकता। कलयुग में मुगलों द्वारा विध्वंस किए हुए राम मंदिर का पुर्ननिर्माण इसका जीवंत उदाहरण है, पांच सौ साल के संघर्ष में कई पीढ़ियो ने पीढ़ी दर पीढ़ी राम लला के मंदिर के पुर्ननिर्माण हो, उसका सपना देखकर अपने प्राणों तक की आहुति दी है। साधु संत, महन्त भक्त और सनातन धर्म के अनुयायियों ने इस लड़ाई को जारी रखा, कोर्ट कचहरी तक राम जन्म भूमि का विवाद कई वर्षो तक चलता रहा। विवादित ढांचे का अदालती फैसला, जब सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा राम मंदिर के पक्ष में आया, तब भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता खुला और मंदिर बनने की प्रक्रिया शुरू हुई और 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। देश ही नहीं पूरी दुनिया में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा को एक उत्सव की तरह मनाने की तैयारी चली, ऐसा लगा है कि मानो रामलला पांच सौ वर्षों का वनवास काटने के बाद फिर से अयोध्या में अपने राजमहल में आ रहे हैं और उसी उत्सव को अयोध्या के नगरवासियों की तरह पूरी दुनिया मनाने की तैयारी में लगी हुई है।
देश ही नहीं विदेश के मंदिरों में भी धर्म की ध्वजा लहराएगी व दीप मालाओं की इस नई रोशनी में नया सूरज, नया उजाला, नया सवेरा, नई उम्मीद लेकर आएगा। घर घर में उस दिन दीपोत्सव का त्यौहार इसी सोच के साथ मनाया जाएगा कि ये सनातन संस्कृति के नए युग का प्रारंभ है, जिससे युवा पीढ़ी सुसंस्कृत और मर्यादित आचरण करने वाली होगी। अयोध्या में राम का यह मंदिर विश्वभर में आस्था, विश्वास और सांस्कृतिक विरासत का नया आयाम स्थापित करेगा।
सूर्यप्रकाश दीक्षित
काव्य गोष्ठी मंच, राजसमंद मो. 94146-21730