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राजसमंद विधानसभा परिक्षेत्र में विधायक पद के उप चुनाव प्रत्याशियों को अपनी कार्य क्षमता दिखाने के लिए लगभग दो वर्षों का प्रोबेशन पीरियड कहा जा सकता है। इसे प्रत्याशियों द्वारा अपने चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की मंशा को समझ लेने की क्षमता का परीक्षण पर्व कहा जा सकता है, तो दूसरी ओर यह मतदाताओं की इच्छा, अपेक्षाओं के पूर्ण होने, न होने की दृष्टि से एक प्रकार से मतदाता के भाग्य का भी परीक्षण है। यानि इस उप चुनाव के माहौल और परिणाम को प्रत्याशी व मतदाता को अपनी ताकत की कसौटी स्वरूप लेना चाहिए।
समझने की यह भी जरूरत है कि कहीं मतदाता का चुनाव को लेकर मोहभंग तो नहीं हो रहा है। कहीं राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न और उनका पृष्ठबल अब मतदाता की अरुचि के कारण तो नहीं बन रहे हैं? राजनीतिक छल छद्म, स्पद्र्धा के वर्तमान स्वरूप को लेकर गुस्सा, हताशा, वितृष्णा लोकतंत्रीय शुचिता को तो नहीं प्रभावित कर रही है?
ऐसा होने की वजह हो सकती है। चुनाव क्षेत्र को शतरंज की बिसात बनाकर मोहरों और चेहरों को सामने लाकर पेराशूट, बाहरी और स्थापितों द्वारा प्रभाव को जबरन स्थापित करना जनता जनार्दन में अविश्वास की वजह बन रहा हो।
जनता के मूड को देखें तो वहां भी प्रत्याशियों को लेकर भावुकता का प्रवाह देखने में आ रहा है। नए चेहरे पर पुरानी छवि और उपलब्धियों का आवरण उम्मीदवार के लिए अपने पक्ष में माहौल बनाने को काफी है। दूसरी ओर स्वयं की अराजनीतिक छवि और सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने का दावा भी असर डाल रहा है। विकास के दावों के बीच वैकल्पिक शक्ति के रूप में किसान और मजदूर वर्ग की आवाज बन नया चेहरा भी समीकरणों को प्रभावित करने और जनाधार खोजने की कोशिश में है। पारिवारिक पृष्ठभूमि से जमीन मजबूत करने की कोशिश हो, सामाजिक पृष्ठभूमि से जनाधार बनाने या राजसमंद को अपने राजनीतिक भविष्य के लिए सर्वेक्षण करने का प्रयास हो, राजसमंद सभी प्रत्याशियों के लिए मानों राजनीति की प्रयोगशाला बन गया है। इन सबके बीच राजनीति के पंडितों या द्रौणाचार्यों के लिए जैसा कि लगता है, यह विधानसभा क्षेत्र शह और मात का मैदान बन गया है।
इस बीच विकास का विजन और मिशन तो जनता जानती है। उसी से उठाकर मुद्दे प्रत्याशियों ने फिलहाल अपनी पोटली में बांध लिए हैं। जब मिली फुरसत तो भई देखा जाएगा, दुनियां के बारे में सोचा जायेगा।
एक ओर प्रत्याशियों की आवाज़ गांव-गांव, गली गली गूंज रही है। दूसरी ओर जन शक्ति समर्थन में नारे लगाकर भी जैसे चुप है। हमें तो चाणक्य याद आ रहे हैं। कीमत दोनों की ही चुकानी होती है, बोलने की भी, चुप रहने की भी।

अतिथि सम्पादक
डॉ. राकेश तैलंग
शिक्षाविद् व साहित्यकार
कांकरोली, राजसमंद

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  • Laxman Singh Rathor in jaivardhan News

    लक्ष्मणसिंह राठौड़ अनुभवी पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया जगत में 2 दशक से ज़्यादा का अनुभव है। 2005 में Dainik Bhaskar से अपना कॅरियर शुरू किया। फिर Rajasthan Patrika, Patrika TV, Zee News में कौशल निखारा। वर्तमान में ETV Bharat के District Reporter है। साथ ही Jaivardhan News वेब पोर्टल में Chief Editor और Jaivardhan Multimedia CMD है। jaivardhanpatrika@gmail.com

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By Laxman Singh Rathor

लक्ष्मणसिंह राठौड़ अनुभवी पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया जगत में 2 दशक से ज़्यादा का अनुभव है। 2005 में Dainik Bhaskar से अपना कॅरियर शुरू किया। फिर Rajasthan Patrika, Patrika TV, Zee News में कौशल निखारा। वर्तमान में ETV Bharat के District Reporter है। साथ ही Jaivardhan News वेब पोर्टल में Chief Editor और Jaivardhan Multimedia CMD है। jaivardhanpatrika@gmail.com