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Pregnancy Tourism चौंकिए मत, यह कोई काल्पनिक बात नहीं है, बल्कि हमारे ही भारत देश का एक इलाका है, जहां आधा दर्जन ऐसे ही गांव है, जहां पर विदेशी से महिलाएं अच्छे तंदुरुस्त, स्वस्थ व सुन्दर बेबी के लिए हमारे हैंडसम युवाओं के साथ रहने और उनके साथ संबंध बनाने आती है, ताकि उन्हें एक सुन्दर बेबी मिल सकें। यह सुनकर आपको अजीबोगरीब लग रहा होगा, मगर यह सही है। कई मीडिया रिपोर्ट है। इसके चलते प्रेग्नेंसी टूरिज्म (Pregnancy Tourism) का एक अजब कान्सेप्ट सामने आया है। यहां विदेश से महिलाएं आती है और स्थानीय युवाओं को संबंध बनाने के लिए ये महिलाएं मोटा पैसा भी देती है और जब वे प्रेग्नेंट हो जाती है तो वे वापस अपने वन को लौट जाती है। अब इसे व्यवसायिक दृष्टि से भी देखा जाने लगा है। हालांकि कुछ लोगों ने इसे गलत व अफवाह भी बताया और समाज को बदनाम करने की साजिश भी कहा है, लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट इसका खुलासा कर चुकी है। साथ ही वर्ष 2007 में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी रिलीज हुई थी, जिसे संजीव सिवन ने बनाया था, जिसमें एक जर्मन महिला ने यह बताया कि वह ‘शुद्ध आर्य बीज’ के सुन्दर बच्चे के लिए इस गांव में आकर यहां के मर्दो से संबंध बनाए हैं। (Ladakh Pregnancy Tourism)

unique story in hindi : आधा दर्जन से ज्यादा गांव फेमस

Interesting story in hindi अल जजीरा, ब्राउन हिस्ट्री व कर्ली टेल्स की रिपोर्ट में यह बताया कि लद्दाख (Ladakh Pregnancy Tourism) की राजधानी लेह से करीब 160 किलोमीटर दूर बियामा, डाह, हानू, गारकोन, दारचिक नाम के गांव है, जहां पर करीब 5 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं। यहां पर एक खास समुदाय के लोग रहते हैं, जिसे ब्रोकपा (Brokpa community) कहा जाता है। इन लोगों का दावा है कि वो दुनिया में आखिरी बचे हुए सबसे शुद्ध आर्य (Pure Aryans) हैं। यानि वे असल आर्य के वंशज है। पहले आर्य, लिए इंडो-इरानी मूल के लोगों को कहा जाता था, पर बाद में इंडो-यूरोपियन मूल के लोगों को कहा जाने लगा।

Mysterious village in india : दुनिया में सबसे हैंडसम होने की अलग कहानी

बताते है कि ये लोग सिकंदर की सेना में सैनिक हुआ करते थे। जब सिकंदर भारत आया, तब उसकी सेना के कुछ सैनिक सिंधु घाटी में रह गए और इन्हें मास्टर रेस के नाम से भी जाना जाता है। लद्दाख के अन्य लोगों की तरह उनकी बनावट काफी अलग है। ये मंगोल व तिब्बती जैसे नहीं दिखते। ये लंबे होते हैं, रंग गोरा होता है, बाल लंबे होते हैं, जबड़े उठे हुए होते हैं व आंख का रंग हल्का होता है। इस कारण ये लोग दिखने में काफी खूबसूरत होते हैं। इसी खूबसुरती के लिए विदेशी महिलाएं भी इन लोगों से प्रेग्नेंट होने के लिए आती है। क्योंकि जैसा पिता होगा, वैसा ही उस महिला का बेटा या बेटी होगी। इसलिए खूबसुरत बच्चे को जन्म देने के लिए यूरोप की महिलाएं यहां लद्दाख के कुछ गांवों में आती है।

Mysterious Story : शोध, जांच नहीं, मगर सबका दावा शुद्ध आर्य

चौंकाने वाली बात यह भी है कि अभी तक कोई शोध नहीं हुआ कि इस समुदाय के लोग शुद्ध रूप से आर्य है। न ही इनका किसी तरह से कोई डीएनए टेस्ट हुआ तथा न ही वैज्ञानिक जांच ही हुई है। फिर भी यहां के लोग भी यही कहते हैं कि वे शुद्ध आर्य है तो अन्य लोग भी उन्हें यही मानते हैं। इसीलिए लद्दाक के ये गांव काफी फेमस है और इसीलिए सुन्दर बच्चे के लिए विदेश से महिलाएं आर्य समाज के इन हैंडसम युवकों से गर्भवती बनने के लिए आती है। खास तौर से जर्मनी सहित यूरोप के कई देशों से महिलाएं आती हैं। इसी कारण इसे अब प्रेग्नेंसी टूरिज्म के नाम से जाना जाता है। दूसरी बात यह कि आर्यों को लेकर इतिहास भी अलग अलग है। इंडियाना के डेपॉव विश्वविद्यालय में मानव विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर मोना भान मानती हैं कि प्रेगनेंसी टूरिज्म जैसी कहानियां गढ़ी गई हैं।

pregnancy tourism in ladakh : इंटरनेट के बाद फेमस हुए खूबसुरत बेबी के किस्से

Pregnancy Tourism के लिए प्रसिद्ध ये गांव इंटरनेट के प्रचलन के बाद काफी प्रसिद्ध हुए हैं। विदेश से महिलाओं के खूबसुरत बेबी के लिए यहां आने की कहानियां भी सोशल मीडिया पर चलने ली और विदेशी महिलाओं के माउथ पब्लिसिटी भी खूब हुई। इस कारण ये गांव दिनोंदिन फेमस होते जा रहे हैं। बताया जाने लगा कि जर्मन महिलाएं ‘शुद्ध आर्य बीज’ व सुन्दर बेबी के लिए ब्रोकपा समाज के हैंडसम लोगों से गर्भवती बनने के लिए आती है।

Brokpa pregnancy tourism : अल जजीरा की रिपोर्ट में शुद्ध आर्य होने का दावा

अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक लद्दाख की राजधानी लेह से 160 किमी दक्षिण पश्चिम में बियामा, गारकोन, दारचिक, दाह व हानू गांव में शुद्ध आर्य समाज के लोगों के रहने का दावा है। इनमें मुख्य रूप से इन्हें ब्रोकपा समुदाय कहा जाता है। बताते हैं कि वे दुनिया के आखिरी बचे हुए ‘शुद्ध आर्य’ हैं। नस्लीय श्रेष्ठता की वजह से विवादित दावे को ब्रोकपा समाज के लोग अपने सिर ताज मानते हैं। वे इस बात को न सिर्फ सहर्ष स्वीकार करते हैं, बल्कि गर्व भी महसूस करते हैं।

Aryan valley pregnancy tourism : शुद्ध आर्य समाज को लेकर उठ रहे सवाल

नाज़ी-युग के नस्लीय सिद्धांतकारों ने शुद्ध नस्ल को “मास्टर रेस” कहा था। इसी आधार पर जर्मनी में यहूदियों का नरसंहार किया था। मास्टर रेस वालों की कथित खासियत यह मानी जाती है कि वे लंबे, गोरे, आंखें नीली व जबड़े मजबूत होते हैं, तो पूरे चेहरे व शरीर की कदकाठी भी काफी खूबसुरत होती है। साथ ही कथित तौर पर आम लोगों की बजाय उन्हें ज्यादा इंटेलिजेंट भी माना जाता है।

Brokpa tribe pregnancy tourism : आईटीबीपी ने गांव की तस्वीरे की थी शेयर

pregnancy tourism in india वर्ष 2017 में भारत सरकार की ITBP (Indo-Tibetan Border Police) ने ब्रोकपा समुदाय के गांव व कुछ लोगों की तस्वीरें शेयर कर लिखा था कि “लद्दाख स्थित दुर्लभ रेड आर्यन का घर। दारचिक गांव में ऐतिहासिक ब्रोकपा आदिवासी समुदाय।” ब्रोकपा लद्दाख की बहुसंख्यक मंगोलीयन फीचर वाली आबादी से अलग दिखते भी हैं। स्थानीय भाषा में ब्रोकपा का मतलब घुमंतू होता है। ब्रोकपा बौद्ध होने के बावजूद देवी-देवताओं में यकीन करते हैं। वे आग की पूजा करते हैं। बलि देने की भी प्रथा है। वे गाय से ज्यादा बकरी को पवित्र मानते हैं।

Pregnancy tourism : डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बन चुकी

वर्ष 2007 में संजीव सिवन द्वारा 30 मिनट की डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई थी। “Achtung Baby: In Search of Purity” रिलीज हुई। डॉक्यूमेंट्री में एक जर्मन महिला कैमरे पर स्वीकार करती है कि वह ‘शुद्ध आर्य शुक्राणु’ की तलाश में लद्दाख आई है। aryan valley pregnancy tourism in hindi डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग सिवन के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं थी। एक भारतीय कर्नल की मदद से उन्होंने लेह के एक रिसॉर्ट में ब्रोकपा आदमी के साथ छुट्टियां मना रही एक जर्मन महिला का पता लगाया। जिस व्यक्ति के साथ जर्मन महिला छुट्टी मान रही थी, वह दारचिक (कथित रेड आर्यन विलेज) का रहने वाला था। तब गांव में विदेशियों को आसानी से जाने की अनुमति नहीं थी। यही वजह थी कि दोनों ने लेह में ठहरे हुए थे। सिवन को दोनों के एक साथ घूमने की गुप्त फुटेज शूट करनी पड़ी और फिर महिला को बात करने के लिए राजी करना पड़ा। ब्रोकपा समुदाय के व्यक्ति को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि उसकी वीडियो बनाई जा रही है। डॉक्यूमेंट्री में महिला बताती है कि एक आर्यन बच्चे को जन्म देने के लिए इतनी दूर यात्रा करने आने वाली पहली जर्मन महिला नहीं है और ना ही आखिरी। वह बताती है कि कैसे इस प्रेगनेंसी टूरिज्म के पीछे एक पूरा ऑर्गनाइज सिस्टम काम कर रहा है। लेकिन वह इस बारे में विस्तार से बताने से इनकार करती हैं। वह कहती है कि “मैं जो कर रही हूं यह गलत नहीं है। मैं जो चाहती हूं उसके लिए पेमेंट भी कर रही हूं।” इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में जर्मन महिला ने न केवल उस व्यक्ति को उसकी सेवाओं के लिए भुगतान किया था, बल्कि वह उसके परिवार और बच्चों के लिए उपहार भी लाई थी। ब्रोकपा समुदाय का व्यक्ति इस चीज से खुश था। वह कहते हैं, “मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है। मैं यह काम करता रहना चाहूंगा। एक दिन मेरे बच्चे मुझसे मिलने आएंगे और मुझे जर्मनी ले जाएंगे।” डॉक्यूमेंट्री में जर्मन महिला का चेहरा नहीं दिखाया गया है। हालांकि, ब्रोकपा आदमी को आसानी से पहचाना जा सकता है। वह कारगिल जिले के दारचिक गांव का रहने वाला है। उसका नाम त्सेवांग लुंडुप है। इसके अलावा बीबीसी ने एक रिपोर्ट में एक ब्रोकपा दुकानदार के दावे को दर्ज किया है। दुकानदार का दावा था कि कुछ वर्ष पहले उससे एक जर्मन महिला मिली थी। दोनों साथ में लेह के होटल में रहे थे। गर्भवती होने के बाद वह जर्मनी वापस चली गई। कुछ वर्ष बाद अपने बच्चे के साथ मिलने आई।”