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डॉ. महेन्द्र कर्णावट
अणुव्रत प्रवक्ता
कल्पना कुंज, राजसमंद मो. 9414172325



शिक्षा एक शक्तिशाली हथियार है जिससे समाज और दुनिया को बदला जा सकता है। कोरोना महामारी में यह हथियार भी ठहर गया है, चल नहीं पा रहा है। विगत फरवरी 2020 से पूरे विश्व में एक-एक कर हर देश के शिक्षण संस्थान बंद हो गये। बच्चे घरों में कैद हो गए और पूरा जन-जीवन ठहर गया।

दिसम्बर 2020 में कोरोना का कहर कम हुआ। जीवन पटरी पर आना प्रारंभ हुआ ही था कि विश्वव्यापी कोरोना महामारी की दूसरी लहर पूरे देश में फैल गई। 13 अप्रैल 2021 को राजस्थान राज्य में 5530 कोरोना मरीज दर्ज किये गये और 25 व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हो गई। 15 अप्रैल 2021 को देश में कोरोना रोगियों की संख्या बढ़कर 50 हजार हो गई और फिर दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही गई। बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए राजस्थान सरकार ने 16 अप्रैल 2021 से राज्य में सभी शैक्षणिक संस्थान पुन: बंद करने का निर्णय किया और कक्षाओं के दरवाजे फिर से बंद हो गए।

स्थिति की भयावहता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने पहली कक्षा से नवीं तथा ग्यारहवीं कक्षाओं के विद्यार्थियों को बिना परीक्षा लिए अगली कक्षा में प्रोमोट करने का निर्णय लिया तो दसवी-बारहवीं बोर्ड परीक्षाओं को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड दिल्ली ने दसवीं बोर्ड परीक्षा रद्द करने तथा बारहवीं कक्षा की परीक्षा स्थगित करने की घोषणा कर दी। कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने शिक्षा जगत पर पुन: वज्रपात कर दिया। चहुंओर निराशा व्याप्त हो गई। शिक्षा जगत के इतिहास में ऐसा पहलली बार हुआ कि परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी। विगत वर्ष में निजी शिक्षण संस्थानों की आर्थिक स्थितियां लडख़ड़ा गई थी। अब तो पूरी तरह से टूट सी गई। हजारों निजी विद्यालय बंद होने के कगार पर आ गये तो हजारों शिक्षक अन्य मजदूरी करने को विवश हो गए। शिक्षकों-कर्मचारियों की रोजी-रोटी बंद हो गई। निजी विद्यालय प्रबंधन ने हाथ खींच लिए। महीनों से वेतन अदेय और अभिभावक फीस नहीं देने की हठधर्मिता पर अडिंग। लगता है जनता ने ही जनता का अस्तित्व समाप्त कर दिया है।

शिक्षा जगत में समस्याएं दिन-प्रतिदिन तेजी से बढ़ रही है, जिनका समाधान कही से नहीं हो पा रहा है। कक्षाओं पर ताले लगने से शिक्षा वापिस दूरस्थ शिक्षा और ऑनलाईन शिक्षा के प्रकल्प में आ गई है। मगर ऑनलाईन शिक्षा परम्परागत कक्षा कक्ष का विकल्प नहीं हो सकती। ऑनलाईन शिक्षा से विद्यार्थी को बौद्धिक रुप से सक्रिय नहीं किया जा सकता। ऑनलाईन शिक्षा प्रकल्प से पढ़ते-पढ़ते एक सत्र गुजर गया और अब तो ज्यादातर विद्यार्थी ऑनलाईन शिक्षा से चिढ़ गये है। ऑनलाईन शिक्षा से स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी बढ़े है- सिरदर्द, माइग्रेन, कमर में दर्द, आंखों के कमजोर होने का खतरा, चिड़चिड़ापन, तनाव, जिद्दीपन, अवसाद, मोटापा इत्यादि ? स्कूल बंद होने से बच्चों का सामुदायिक जीवन बिखर गया है जिससे उनके भावनात्मक विकास पर भी असर पड़ा है। स्कूल बंद होने से बच्चों का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक विकास अवरुद्ध हो गया है जिसका असर भविष्य में परिलक्षित होगा।

कोरोना महामारी के कारण हमारे देश में लगभग 15 लाख से ज्यादा स्कूल बंद है और देश के 32 करोड़ 7 लाख से ज्यादा बच्चे तालाबंदी की वजह से पढ़ाई से दूर हो गये है। राज्य सरकारें दूरस्थ शिक्षा, ऑनलाईन शिक्षा और दूरदर्शन शिक्षा प्रकल्पों के माध्यम से शिक्षा देने के जो आँकड़े प्रस्तुत कर रही है वास्तविकता उससे कोसों दूर है। निजी एवं राजकीय शिक्षण संस्थानों में दी जा रही शिक्षा के अंतर से भी समाज और अभिभावक परिचित है। लेकिन लोभ के कारण अनभिज्ञ हो गये है। एशियन डवलपमेंट बैंक का मानना है कि- ”कोविड के कारण शिक्षा क्षेत्र पर दीर्घकालीन विपरीत असर पड़ेगा। वैश्विक महामारी के गत दो वर्षों के दौरान शिक्षा में पड़ा व्यवधान अपनी ऐसी गंभीर छाप छोड़ेगा कि जिस पर अगले एक दशक तक भी पार नहीं पायी जा सकेगी। इसका सबसे बुरा असर प्राथमिक शिक्षा पर पड़ेगा क्योंकि इससे अनगिनत बच्चे प्रभावित हुए है तथा उनकी सीखने की प्रक्रिया पूरी तरह बाधित हुई है। (राष्ट्रदूत दिल्ली ब्यूरो 19 मई 2021)

निजी शिक्षण संस्थानों के अस्तित्व को बचाने के क्रम में राज्य सरकार को सहृदयता से आगे आना चाहिये। राजस्थान सरकार शराब और पेट्रोल पदार्थों से एक दिन का जो टेक्स प्राप्त (लगभग 300 करोड़ है ) होता है उसे विशेष राहत पैकेज के रुप में निजी शिक्षण संस्थानों को आवंटित कर दे तथा शिक्षा के अधिकार के अन्तर्गत अध्ययनरत बच्चों की बकाया पुनर्भरण राशि बिना किसी पूर्वाग्रह के भुगतान कर दें तो समस्या का कुछ हद तक समाधान हो सकता है।

अब कोरोना महामारी की तीसरी लहर की आशंका है। इसका बच्चों पर सर्वाधिक असर होने की आशंका व्यक्त की गई है। हालांकि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि ऐसे कोई संकेत नहीं है कि तीसरी कोरोना लहर में बच्चे ज्यादा प्रभावित होंगे। फिलहाल ऐसे में शिक्षा-परीक्षा के लिए अनुकूल समय नहीं है। शिक्षा को कोरोना संक्रमण से बचाने के तरीके खोजने होंगे ताकि बच्चों की मुस्कान लौट सके। कोरोना महामारी ने अनुशासन, संयम का पाठ पढ़ाया है। वर्तमान की विपरित परिस्थितियों में बच्चों और देश को बचाने के लिये हमें स्वयं को संभालना होगा। शिक्षा जगत को सकारात्मकता के साथ आगे बढऩा होगा। सकारात्मक सोच ही शिक्षकों एवं निजी शिक्षण संस्थानों को स्वस्थ रखेगी। स्वस्थ रहेंगे तो फिर उठ खड़े होंगे।