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Kedarnath Yatra. यमनोत्री व गंगोत्री के बाद केदारनाथ के दर्शन कर लौटते वक्त चट्टान तले दबकर जहां राजसमंद के मार्बल व्यापारी की मौत हो गई, उस केदारनाथ क्षेत्र में प्रलय के 9 बड़े कारण है। इसी जगह बादल फटने की वजह सारे मकान ध्वस्त हो गए और सडक़ें टूट गई, मगर केवल केदारनाथ का मंदिर सही सलामत रहा। इस तरह केदारनाथ के पहाड़ों में प्रलय के कारण भी हैरान करने वाले हैं, जिन्हें जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। इसी वर्ष की बात की जाए, तो अब तक 90 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वहां के क्षेत्रीय लोग धार्मिक मान्यता के अनुसार भी प्रलय के कई कारण बताते हैं। वर्ष 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में जहां अतिवृष्टि से तबाही मची थी, जिसमें कई लोगों की जान चली गई तो वहां की ज्यादातर इमारतें भी जमींदोज हो गई। शिव के इस पावन धाम में आए जल प्रलय ने सबको हिलाकर रख दिया था। वैज्ञानिक जहां इसकी वजह ग्लेशियर का पिघलना बता रहे थे। वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसके कई कारण बताए गए। वर्ष 2013 के बाद लगातार हादसे हो रहे हैं और प्रतिवर्ष कई लोगों की जान जा रही है। दर्शन के लिए जाने वाले तीर्थयात्रियों की मौत को लेकर कई सवाल खड़े होने लगे हैं।

देखिए Video… केदारनाथ में पत्नी- बच्चों के सामने चट्टान तले दबा व्यवसायी, पत्नी की चीख से कांप उठे यात्री

राजसमंद का व्यापारी चट्टान तले दबा

केलवा निवासी लवेश उर्फ लेहरीलाल (40) पुत्र नारायणलाल तेली उसकी 38 वर्षीय पत्नी पुष्पादेवी, 12 वर्षीय पुत्र प्रिंस, 17 वर्षीय बेटी अमिषा व 14 वर्षीय बेटी सुमन 15 जून को केदारनाथ दर्शन के लिए घर से निकले। लवेश उर्फ लेहरीलाल तेली के साथ केलवा गांव से ही 3 मित्रों के परिवार भी साथ थे, जिसमें जनकपुरी, केलवा निवासी रतनलाल पडियार पुत्र नारायण पडियार, कैलाशनगर, केलवा निवासी नारायणलाल तेली पुत्र लच्छु तेली और कैलाशनगर, केलवा निवासी जगदीश पुत्र भैरूलाल तेली के परिजन साथ में थे। चारों परिवारों के सदस्य 15 जून को केलवा से यात्रा पर निकले थे। 21 जून सुबह केदारनाथ के दर्शन किए, जहां से पैदल वापस लौट रहे थे, तभी रास्ते में पहाड़ी से चट्टान गिर गई। हादसे में उसकी पत्नी पुष्पादेवी के भी पैर फैक्चर हो गया, जबकि हाथ व सिर में भी चोट आई है।

देखिए, लोगों ने ये बताए 9 मुख्य कारण

(1) केदारनाथ को शिव के चार धामों में से प्रमुख माना जाता है। मान्यता है कि यहां शिव के दर्शन मात्र से भक्त के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। मगर भोलेनाथ की इस नगरी में आए जल सैलाब को लेकर कई धार्मिक ग्रंथों में अलग- अलग तर्क दिए गए हैं। उनके मुताबिक इस प्रलय की वजह काली मां का रौद्र रूप रहा है।

(2) केदारनाथ मंदिर के अशुभ मुहूर्त में कपाट खोलने को भी 2013 में प्रलय का कारण माना गया था। कहते हैं कि चार धाम की यात्रा की शुरूआत अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलने से होती है। मगर साल 2013 में कपाट शुभ मुहूर्त बीत जाने के बाद खोले गए।

(3) धारी देवी के इस विकराल स्वरूप की हकीकत को कई दिग्गजों ने भी माना है। भाजपा वरिष्ठ नेता उमा भरती ने भी एक सम्मेलन में यह बात बोली थी कि अगर धारी माता का मंदिर विस्थापित नहीं किया जाता तो केदारनाथ में प्रलय नहीं आती।

(4) लोगों के अनुसार 12 मई साल 2013 को दोपहर बाद अक्षय तृतीया शुरू हो चुकी थी। जो कि 13 तारीख को 12 बजकर 24 मिनट तक ही थी। इस बीच गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट नहीं खोले गए। जबकि इसके खोलने के समय पितृपक्ष काल चल रहा था। इस बीच कोई भी शुभ काम नहीं किए जाते हैं। मगर उस वक्त कपाट के खोलने का विपरीत असर केदारनाथ में देखने को मिला।

(5) केदारनाथ में आई तबाही का कारण मां गंगा का रौद्र रूप भी रहा है। माना जाता है कि धरती के कल्याण के लिए भागीरथ गंगा को लेकर आए थे। उन्हें शिव जी ने धारण किया था। इसलिए उन्होंने देवी गंगा के स्वरूप को बरकरार रखने का वचन दिया था। मगर लगातार गंगा में बढ़ते प्रदूषण ने गंगा के धैर्य का बाण तोड़ दिया। नतीजतन केदारनाथ में भयंकर जल प्रलय आई।

(6) एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार मंदाकिनी और अलकनंदा से मिलकर गंगा बनी है। वो धरती पर नहीं आना चाहती थीं। मगर भगवान शिव के आग्रह पर उन्हें धरती पर उतरना पड़ा था। चूंकि भगवान शिव उनकी मर्यादा की रक्षा नहीं कर पाएं। इसलिए मां गंगा नाराज हो गई। जिसके चलते गंगा ने अपनी सीमा तोड़ दी। इससे पहले वर्ष 2010 में भी गंगा अपना रौद्र रूप दिखा चुकी थीं। उस वक्त ऋषिकेश में आई बाण के चलते परमार्थ आश्रम में लगी शिव की विशाल मूर्ति तब बह गई थी।

(7) बताते हैं कि केदारनाथ में अचानक बाढ़ का कारण धारी माता का विस्थापन रहा है। दरअसल उत्तराखंड से 15 किलोमीटर दूर कालियासुर नामक स्थान में धारी देवी का मंदिर है। मान्यता है कि उनकी वहां स्थापना उत्तराखंड की रक्षा के लिए हुआ है। मगर जून 2013 के दिन सरकारी काम के चलते मूर्ति को थोड़ी देर के लिए वहां से हटाया गया था। लोगों का मानना है कि मूर्ति के हटने के कुछ घंटों बाद ही केदारनाथ में भारी तबाही मची थी।

(8) लोग बताते हैं कि केदारनाथ में तबाही की वजह धार्मिक मान्यता का कम होना है। ज्यादातर लोग केदारनाथ में भक्ति भावना की जगह घूमने के मकसद से आते हैं। कई लोग वहां अनैतिक कार्य भी करते हैं। इससे आहत होकर शिव जी ने विकराल स्वरूप धारण किया था। इसी की वजह से वहां तबाही आई थी।

(9) केदारनाथ में आए बाण को लेकर वैज्ञानिकों ने जानकारी दी थी कि इसकी वजह ग्लेशियर के एक बड़े टुकड़े का पिघलना है। जिसके चलते जल आवेग बढ़ा था।