
Leopard Cought : राजसमंद जिले के बिनोल नाका क्षेत्र में रविवार की तड़के सुबह एक अप्रत्याशित घटना ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी। सुबह करीब 3 बजे एक तेंदुआ आबादी वाले क्षेत्र में घुस आया, जिससे ग्रामीणों में दहशत का माहौल बन गया। इस नर तेंदुए ने पहले एक बकरी का शिकार किया और फिर पास के एक मकान में जा घुसा। इस घटना ने स्थानीय लोगों को सकते में डाल दिया, लेकिन मकान मालिक की साहसिक कार्रवाई और वन विभाग की त्वरित प्रतिक्रिया ने स्थिति को नियंत्रित कर लिया।
मकान मालिक जोहर सिंह राजपूत ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए तेंदुए को एक कमरे में बंद कर दिया। उन्होंने तुरंत स्थानीय पुलिस और वन विभाग को सूचित किया, जिसके बाद रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ। वन विभाग की एक विशेषज्ञ टीम ने करीब चार घंटे की कठिन मेहनत के बाद तेंदुए को ट्रैंकुलाइज कर सुरक्षित रूप से पकड़ लिया। इस तेंदुए, जो लगभग पांच वर्ष का नर था, को बाद में राजसमंद की पीपरड़ा नर्सरी ले जाया गया, जहां उसका स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। स्वास्थ्य जांच में सामान्य स्थिति पाए जाने के बाद इसे टाड़गढ़ वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ दिया गया। इस सफल रेस्क्यू के बाद क्षेत्र के लोग राहत की सांस ले सके।
रात के सन्नाटे में तेंदुए की दहाड़
Panther trapped in room : जोहर सिंह ने बताया कि रात के समय अचानक घर में असामान्य आवाजें सुनाई दीं। शुरुआत में उन्हें लगा कि शायद कोई चोर घुस आया है। लेकिन जब उन्होंने खिड़की से एक विशालकाय तेंदुए को छलांग लगाकर कमरे में प्रवेश करते देखा, तो उनके होश उड़ गए। बिना समय गंवाए उन्होंने साहस दिखाया और दरवाजे को बाहर से बंद कर तेंदुए को कमरे में ही सीमित कर दिया। इसके बाद उन्होंने तुरंत सरदारगढ़ पुलिस चौकी को सूचना दी।
पुलिस की ओर से आमेट नाके के प्रभारी उगम चंद बैरवा और बिनोल नाका प्रभारी अशोक वैष्णव तुरंत मौके पर पहुंचे। उन्होंने स्थिति का जायजा लिया और वन विभाग को तत्काल सूचित किया। इस दौरान तेंदुआ कमरे के अंदर गुर्राता रहा, जिससे आसपास के लोगों में भय का माहौल बना रहा।
वन विभाग का साहसिक रेस्क्यू ऑपरेशन
Leopard attack on goat : सुबह के पहले प्रहर में वन विभाग की टीम, क्षेत्रीय वन अधिकारी लादूलाल शर्मा के मार्गदर्शन में, रेंजर सत्यानंद गरासिया के नेतृत्व में घटनास्थल पर पहुंची। इस ट्रैंकुलाइज टीम में सुरेंद्र सिंह, पन्नालाल कुमावत, घनश्याम पुरबिया, तेजपाल और महेंद्र सिंह जैसे अनुभवी सदस्य शामिल थे। तेंदुए को नियंत्रित करना आसान नहीं था, क्योंकि वह कमरे में लगातार गुर्रा रहा था और किसी भी तरह की हलचल पर आक्रामक हो सकता था।
टीम ने सावधानीपूर्वक रणनीति बनाई और सुबह 7:30 बजे तक, लगभग चार घंटे की अथक मेहनत के बाद, तेंदुए को ट्रैंकुलाइज करने में सफलता हासिल की। इसके बाद उसे विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए पिंजरे में सुरक्षित स्थानांतरित किया गया। इस ऑपरेशन के दौरान स्थानीय ग्रामीणों ने भी वन विभाग का पूरा सहयोग किया, जिससे रेस्क्यू कार्य में आसानी हुई।
ग्रामीणों का सहयोग और तेंदुए की स्थिति
Rajsamand leopard incident रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान सैकड़ों ग्रामीण मौके पर जमा हो गए थे। कुछ लोग उत्सुकता से घटना को देख रहे थे, तो कुछ ने वन विभाग की मदद की। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि तेंदुआ पूरी तरह स्वस्थ है और उसमें किसी प्रकार की गंभीर चोट या बीमारी के लक्षण नहीं पाए गए। प्राथमिक उपचार और स्वास्थ्य जांच के बाद उसे पीपरड़ा नर्सरी में ले जाया गया। वहां वन्यजीव विशेषज्ञों ने उसका विस्तृत परीक्षण किया, जिसके बाद उसे टाड़गढ़ अभयारण्य में प्राकृतिक आवास में छोड़ने का निर्णय लिया गया।

क्षेत्र में राहत, लेकिन सतर्कता बरकरार
Wild animal rescue India : इस घटना ने बिनोल नाका और आसपास के क्षेत्रों में कुछ समय के लिए तनाव का माहौल पैदा कर दिया था। तेंदुए के आबादी क्षेत्र में घुसने की खबर ने लोगों को चिंतित कर दिया, क्योंकि यह पहली बार नहीं है जब इस क्षेत्र में वन्यजीवों का प्रवेश हुआ हो। हालांकि, वन विभाग के त्वरित और प्रभावी रेस्क्यू ऑपरेशन ने स्थिति को नियंत्रित कर लिया। ग्रामीणों ने वन विभाग और जोहर सिंह की तारीफ की, जिनके साहस और सूझबूझ ने एक बड़े हादसे को टाल दिया।
वन विभाग ने ग्रामीणों से अपील की है कि वे जंगली जानवरों के प्रति सतर्क रहें और किसी भी असामान्य गतिविधि की सूचना तुरंत अधिकारियों को दें। साथ ही, रात के समय घरों के दरवाजे और खिड़कियां सुरक्षित रखने की सलाह दी गई है। इस घटना ने एक बार फिर मानव-वन्यजीव संघर्ष की चुनौतियों को उजागर किया है, जिसके समाधान के लिए सामुदायिक सहयोग और जागरूकता जरूरी है।
लेपर्ड के आबादी में आने के कारण
Rajsamand News today : विशेषज्ञों के अनुसार, जंगली जानवरों का आबादी वाले क्षेत्रों में प्रवेश करने के कई कारण हो सकते हैं:
- जंगल का सिकुड़ना: वनों की कटाई और मानव अतिक्रमण के कारण लेपर्ड जैसे जानवरों का प्राकृतिक आवास कम हो रहा है।
- भोजन की कमी: जंगलों में शिकार की कमी होने पर लेपर्ड आबादी वाले क्षेत्रों में भोजन की तलाश में आते हैं।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष: बढ़ती मानव आबादी और वन्यजीवों के आवास में टकराव इस तरह की घटनाओं को बढ़ा रहा है।
- प्राकृतिक आपदा: बारिश या अन्य प्राकृतिक कारणों से भी जंगली जानवर अपने क्षेत्र से भटक सकते हैं।
