पर्यटन देश व राज्यों के विकास सूचकांक की दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण प्रकल्प है। वैश्विक महामारी कोरोना की प्रथम व दूसरी घातक लहर के कहर ने पर्यटन उद्योग को भारी आघात पहुंचाया है । बावजूद इसके पर्यटन आज हर पर्यटक को सुकून व आनंद का आभास कराने वाला बहुउद्देशीय प्रकल्प है । आज पर्यटन दिवस आयोजित करने का उद्देश्य भी यही है कि देश प्रदेश के विभिन्न ऐतिहासिक महत्व के स्थानों एवं धरोहरो की जानकारी जन.जन तक पहुंचे जिसके लिए देश व प्रदेश के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय द्वारा विभिन्न प्रकार के नवाचार जैसे वन्यजीव अभयारण्य रेंज कुंभलगढ़ में टाइगर प्रोजेक्ट के लिए प्रयास करना विभिन्न जल क्रीडा जैसे बोटिंग ग्रामीण टूरिज्म एडवेंचर जंगल एवं विलेज सफारी आदि विकसित किए जा रहे हैं ।
विश्व विरासत ऐतिहासिक दुर्ग कुंभलगढ़ तक पहुंचने के लिए कुल 9 प्रवेश द्वार है, जिनमें आरेट पोल, हल्ला पोल, हनुमान पोल, राम पोल,भैरव पोल, पागड़ा पोल, चौगान पोल, विजय पोल आदि प्रमुख हैं । लेकिन कुंभलगढ़ दुर्ग के प्रथम भव्य व ऐतिहासिक महत्व का प्रथम प्रवेश द्वार आरेट पोल बेहद ही उपेक्षा का शिकार है । जबकि यह पोल दुर्ग का सबसे बड़ा व सुरक्षात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रथम द्वार है । जहां से ना केवल दुर्ग व दीवार स्पष्ट दिखाई देते हैं, बल्कि खारी नदी का उद्गम स्थल लाखेला तालाब केलवाड़ा तथा मारवाड़ क्षेत्र पर भी आसानी से नजर रखी जा सकती है । लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कुंभलगढ़ दुर्ग उदयपुर कार्यालय प्रभारियों की अनदेखी के चलते यह द्वार उपेक्षित व आम पर्यटको के लिए अंजाना व अपरिचित है । कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा इस धरोहर को नुकसान भी पहुंचाया गया है, इस महत्वपूर्ण धरोहर के संरक्षण में कोताही बरतने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ संज्ञान लेने की महती जरूरत है ।
मेवाड़ अंचल की संस्कृति व प्रकृति पर्यटन विकास के लिए वरदान
प्रकृति एवं प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए संघर्षरत पर्यावरणविद शिक्षक कैलाश सामोता रानीपुरा कुंभलगढ़ राजसमंद के अनुसार मेवाड़ अंचल जहां विश्व की सबसे पुरातन अरावली पर्वत श्रृंखला के फैलाव क्षेत्र में आज भी जैव विविधताए प्रकृति एवं संस्कृति संरक्षित व सजीव अवस्था में है । मेवाड़ अंचल के राजसमंद , उदयपुर , चित्तौड़गढ़ , भीलवाड़ा , प्रतापगढ़ , डूंगरपुर व सिरोही क्षेत्र में विभिन्न ऐतिहासिक महत्व के स्थल जैसे विषम परिस्थितियों में मेवाड़ शासकों की शरणस्थली रही कुंभलगढ़ दुर्ग महाबलीदानी मां पन्नाधाय द्वारा अपने पुत्ररत्न चंदन की बलिदान शक्ति, भक्ति, शौर्य एवं बलिदान की भूमि चित्तौड़गढ़ महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित किए गए ऐतिहासिक महत्व के महलों से जुड़े इतिहास विश्व प्रसिद्ध कुंभलगढ़ दुर्ग की विशाल प्राचीर वीर पत्ता की कर्मस्थली आमेट महाराणा प्रताप की युद्ध नीति निर्माण एवं राज तिलक स्थली मायरा की गुफाएं, गोगुंदा, हल्दीघाटी महाराणा राजसिंह द्वारा निर्मित राजसमंद की जीवन रेखा कहलाने वाली ऐतिहासिक राजसमंद झील, महाराणा कुंभा की जन्मस्थली मदारिया मालावास, देवगढ़ मैराथन ऑफ मेवाड़ दिवेर सहित मेवाड़ की अमरनाथ के रूप में प्रसिद्ध आराध्य देव श्रीपरशुराम महादेव फूटा देवल, मेवाड़ के आराध्य एकलिंग महादेव मंदिर कैलाशपुरी देलवाड़ा, श्रीनाथ मंदिर नाथद्वारा, चारभुजा नाथ मंदिर गढ़बोर, द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली सहित प्राकृतिक जल स्रोत नक्की झील माउंट आबू ,जयसमंद झील, पिछोला झील, फतहसागर, नंदसमंद, बाघेरी का नाका के साथ.साथ संपूर्ण मेवाड़ अंचल सहित प्रदेश के विभिन्न हिस्सों को सतत रूप से कृषि जल एवं पेयजल आपूर्ति कर रही नदियां बनास, गोमती, खारी, कोठारी, चंद्रभागा नदियों के उद्गमस्थल मेवाड़ अंचल में देश.विदेश के पर्यटकों को सहज ही अपनी और आकर्षित करती है । मेवाड़ की धरा सांस्कृतिक धरोहर की धनी धरा रही है जिसमें प्रसिद्ध जलझूलनी एकादशी मेला गढ़बोर प्रकृति की रक्षार्थ रक्षाबंधन उत्सव पिपलांत्री , बेणेश्वर धाम मेला हरियाली अमावस्या के मेले आदि प्रमुख हैं जिससे ना केवल पर्यटन होटल व्यवसाय एवं अन्य रोजगार के अवसर तैयार हो रहे हैं बल्कि राजस्थान की संस्कृति कि वैश्विक स्तर पर पहचान बनी है !
ग्रामीण पर्यटन विकास के पर्याप्त महत्वपूर्ण स्थल व अवसर
पुरातन अरावली पर्वत श्रंखला के प्रसार क्षेत्र वाले मेवाड़ अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों में, ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बेहद ही अनुकूल स्थल व अवसर उपलब्ध है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि वहां के स्थानीय निकाय एवं शासन- प्रशासन की संवेदनशीलता से इन क्षेत्रों को विकसित किया जाए तथा यहां की प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षण प्रदान करते हुए, विकास योजना बनाई जाए । प्रदेश की प्रथम निर्मल ग्राम पंचायत- पिपलांत्री, तासोल तथा नवसृजित ग्राम पंचायत- कानादेव का गुडा़, राजसमंद के तर्ज पर गोचर एवं प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग कर ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
कैलाश सामोता “रानीपुरा”
पर्यावरणविद, शिक्षक, कुंभलगढ़ दुर्ग, राजसमंद