Ram mandir Ayodhya: अयोध्या में राम मंदिर बनने में बार बार आई बाधाए, 500 साल बाद साकार होते सपने की कहानी

ByParmeshwar Singh Chundawat

Jan 7, 2024 #ayodhya ram mandir, #ayodhya ram mandir construction, #ayodhya ram mandir history, #ayodhya ram mandir news, #history, #history of ram mandir, #history of ram mandir in ayodhya, #history of ram mandir in ayodhya in hindi, #indian history, #jaivardhan news, #jayavardhan news, #jayvardhan news, #live rajsamand, #mandir, #mewar news, #Rajasthan news, #rajasthan police, #rajsamand news, #ram mandir, #ram mandir ayodhya, #ram mandir construction, #ram mandir history, #ram mandir in ayodhya, #ram mandir judgement, #ram mandir news, #ram mandir nirman, #udaipur news, #अयोध्या का इतिहास, #अयोध्या का मंदिर, #अयोध्या के राम मंदिर का इतिहास, #अयोध्या राम मंदिर, #अयोध्या राम मंदिर कहां स्थित है, #इतिहास, #जानें अयोध्या के राम मंदिर का इतिहास, #बाबरी मस्जिद का इतिहास, #भव्य राम मंदिर, #राम जन्मभूमि का इतिहास, #राम जन्मभूमि मंदिर, #राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण, #राम मंदिर, #राम मंदिर का इतिहास, #राम मंदिर का भूमि पूजन, #राम मंदिर निर्माण, #राम मंदिर विवाद, #श्री राम जन्मभूमि का प्राचीन इतिहास
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कई सालों के संघर्ष के बाद आज फिर राम जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार है। राम मंदिर का प्राण- प्रतिष्ठा महोत्सव भी 22 जनवरी को है। भगवान श्री Ram को विष्णु का अवतार माना जाता है, श्रीराम को हिन्दुओं के द्वारा व्यापक रूप से पूजा जाता है। 5 अगस्त 2020 काे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भूमि पूजन किया उसके बाद मंदिर का निर्माण आरंभ हुआ था। बताया जाता है कि 15वीं शताब्दी में यहां मुसलमानों ने मस्जिद का निर्माण किया था। बताया जाता है कि मस्जिद निर्माण को लेकर हिन्दू आक्रोशित हो गए क्योकि उनका मानना था कि मस्जिद का निर्माण हिन्दू मंदिर को तोड़ कर किया गया है।

साधुओं ने मस्जिद को विध्वंस किया

साल 1934 में अयोध्या में एक ऐसी घटना जिसने हिन्दूओं को आक्राेश से भर दिया। बताया जाता है कि 1934 में साधुओं ने मस्जिद पर हमला बोल दिया और दीवारों और गुबंदों को क्षतिग्रस्त कर दिया, उसके बाद जब फैजाबाद के डिप्टी कमिश्नर मौके पर पहुंचे तब तक गुबंदो को तोड़ दिया था। पुलिस की कड़ी जोर आजमाइश की पर व हिन्दु साधुओं को वहां से बाहर नही निकाल पाई। उसके बाद सांप्रदायिक दंगों का दौर शुरू हो गया, Ram जन्मभूमि Ayodhya में खून- खराबा होने लगा।

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राम जन्मभूमि व मस्जिद निर्माण का विवाद प्रदेश के बड़े सदन विधान परिषद में पहुंच चुका था। अब फैसला अंग्रेजी हकूमत के हाथ था। उस समय जज चामियार ने सभी पक्षों की मौजूदगी में स्थलों का निरीक्षण किया और उसके बाद कहा कि मैंने सम्राट बाबर द्वारा जो मस्जिद का निर्माण किया गया है, वो Ayodhya में हिन्दूओं की पवित्र सरयू नदी के पास किया गया है, जहां पर आबादी ही नहीं है, इसलिए यह मस्जिद निर्माण दुर्भाग्यपूर्ण है। उसके बाद उन्होंने घटना को ज्यादा पुरानी बताते हुए कहा कि शिकायत को लेकर काफी विलम्ब हो चुका है। माना तो जा रहा था कि मस्जिद के निर्माण पर मंदिर है, लेकिन फैसला नहीं देना चाहते थे। उसके बाद गृह विभाग के सदस्य जगदीश प्रसाद ने मामला उठाया तो सबको लगा कि अब न्याय मिलने कि संभावना है। लेकिन फैसला हिन्दुओं के पक्ष कि बजाय विपक्ष में चला गया, तत्कालीन मुख्य सचिव एच. बोमफोर्ड ने मस्जिद में तोड़फोड़ करने पर साधुओं पर करीब 85 हजार रूपये का जुर्माना लगा दिया था। लेकिन साधुओं ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया।

अंग्रेजी हकूमत द्वारा जब हिन्दूओं के पक्ष में फैसला नहीं दिया तो, कई साधु उसी जगह पर जाकर बैठ गए। उसके बाद निर्णय लिया कि मुस्लिम समुदाय भी उस स्थान पर मस्जिद निर्माण नही करेंगें उसके बाद साधुओं ने उस स्थल को छोड़ दिया, लेकिन अंग्रेजी हकूमत ने छल कर मस्जिद की दीवारों व गुबंदो की मरम्मत शुरू करा दी। उसके बाद भी काफी आक्रोशित हुए लेकिन यह घटना आगे चलकर हिन्दुओं के हित में साबित हुई। मंदिर निर्माण के फैसले में सहायक बनी।

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सबसे पहले 1853 में दंगे हुए थे, बताया जाता है कि निर्मोही अखाड़े ने दावा किया कि जिस स्थान पर मस्जिद खड़ा हैं वहां पर पहले मंदिर था, उसके बाद कई सालों तक मुस्लिमों व हिन्दुओं में हिंसा भड़कती रही। बताया जाता है कि 2 साल तक हिन्दू व मुस्लिम दोनों एक ही जगह पूजा व इबादत करते रहे। कहा जाता है कि उसके बाद 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित स्थान को दोनों में बांट दिया और बीच में दीवार बना दी। उसके बाद भी मुस्लिम व हिन्दूओं में हिंसा इतनी बढ़ गई कि मामला 1885 में अदालत में जहां पहुंचा। जिसके बाद हिन्दू साधू महंत रघुबर दास ने मंदिर बनाने की मांग रखी लेकिन कोर्ट ने ठूकरा दी।1934 में साधुओं ने फिर मस्जिद काे तहस- नहस कर दिया। उसके बाद 1949 में मुस्लिम समुदाय ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद में हिन्दुओं ने श्री Ram की मूर्ति स्थापित कर दी। उसके बाद बताया जाता है कि फैजाबाद कोर्ट ने बाबरी मस्जिद को विवादित भूमि घोषित कर दिया और 1949 को मस्जिद के मुख्य द्वारा पर ताला लगा दिया । उसके बाद 1950 में वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी लगाई कि हिन्दुओं की श्रीराम को पूजा का अधिकार दिया जाए। 1959 में निर्मोही अखाड़े ने विवादित जगह को अपना बताया। उसके बाद फैजाबाद कोर्ट ने बाबरी मस्जिद से ताला खोल दिया। उसके बाद 1984 में विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में Shree ram जन्मभूमि मुक्ति संगठन बनाया गया जिससे उद्धेश्य राम जन्मभूमि को मुक्त कराना था। उसी समय में गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ धाम ने एक यज्ञ समिति बनाई और अपने शिष्यों को कहा कि वोट उसी को देना जो हिन्दुओं के पवित्र स्थानों को मुक्त कराए, बताया जाता है कि उसके बाद लालकृष्ण आडवाणी ने इस संगठन का नेतृत्व संभाला। उसके बाद 1986 में हिन्दूओं को पूजा करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट ने ताला खाेलने का आदेश दे दिया। मुसलमानों ने इसका विरोध किया। 1987 में फैजाबाद कोर्ट ने पूरा मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष पेश कर दिया। बताया जाता है कि 1989 में हिन्दूओं ने बाबरी मस्जिद से थोड़ी दूर राम मंदिर का शिलान्यास कर दिया।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के पास फैसला जाने के बाद बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले 30 नवंबर 1992 को लालकृष्ण आडवाणी ने Ayodhya जाने का एलान कर दिया। इसी बीच कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढ़हाने का प्लान बना दिया, कारसेवकों के इस प्लान की जानकारी केन्द्र व राज्य सरकार दोनों का था। इस समय कई इलाकों में कफ्र्यू लग गया। आडवाणी की रथ यात्रा को बिहार में ही रूकवाकर लालूयादव ने उन्हें गिरफ्तार करवा लिया। खुफिया एजेंसियों ने बता दिया था कि कार सेवक आक्रोशित है और कभी भी व मस्जिद पर हमला बोल सकते हैं। पीएम पीवी नरसिम्हा राव को भरोसा था कि UP के सीएम कल्याण से ने बाबरी मस्जिद की सुरक्षा को भरोसा दिया था। मगर 1990 में पहली बार कारसेवकों ने मस्जिद पर हमला बोल उसे ध्वस्त कर दिया व उस पर झंडा फहराया। कारसेवा में पुलिस की गोलीबारी में कई कारसेवकों की मौत हो गई। उसके बाद 1992 में हिन्दूओं ने अस्थाई मंदिर बना दिया जिसके बाद हिंसा काफी बढ़ गई , जिसमें करीब 2000 लोग मारे गए। 2001 में विश्व हिन्दू परिषद ने कहा कि 2002 में मंदिर का निर्माण कराएंगें। उसके बाद 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे पर मालिकाना हक की याचिकाओं को लेकर सुनवाई कि और 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा व श्री Ram के बीच तीनों में बांट दिया। उसके बाद इलाहाबाद के फैसले पर रोक लगाकर 2010 में मामला सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट में कई सालों तक सुनवाई के बाद 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित स्थल को राम जन्मभूमि माना और निर्मोही अखाड़ा व सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया।