
Shocking youth story : पढ़ने की उम्र में अभी किसी का सपना प्रशासनिक अधिकारी बनने का था, तो किसी युवा के जेहन में शिक्षक बनकर बच्चों का भविष्य संवारने का लक्ष्य जेहन में था। फिर अचानक एक युवक और 5 युवतियों ने ऐसा फैसला लिया, जिसे देख व सुनकर हर कोई चकित व हैरान रह गया। अचानक सांसारिक मोह माया से उनका मोहभंग हो गया और सांसारिक जीवन से सन्यास लेने का ठान लिया। हाल ही में जैन धर्म दीक्षा समारोह में पांच युवक-युवतियां जैन साधु और साध्वी बन गए। इन युवाओं की कहानियां, न सिर्फ चौंकाती है, बल्कि प्रेरणा भी देती है। Jain Sant
RAS बनना चाहती थीं भावना
Jain Dharm : राजस्थान की भावना संखलेचा का सपना था सिविल सर्विसेज में जाना। वे प्रशासनिक अधिकारी (RAS) बनना चाहती थीं। नागौर में जैन धर्म में एमए की पढ़ाई कर रही भावना का झुकाव संन्यास की ओर हुआ। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया कि वर्ष 2007 में जब वे एक जैन साधु से मिलने गईं, तो वहां का शांत माहौल उन्हें अत्यंत प्रभावित कर गया। घर-परिवार की भागदौड़ और आपसी मतभेदों को देखकर उन्होंने संन्यासी जीवन अपनाने का निर्णय लिया। वर्ष 2008 में वे जैन साध्वी विद्युत प्रभा के संपर्क में आईं और दीक्षा लेने का संकल्प किया। जब उन्होंने अपने परिवार को इस निर्णय के बारे में बताया, तो वे चौंक गए और अनुमति देने से इनकार कर दिया। लेकिन जब भावना ने कहा कि वे स्वयं दीक्षा का मुहूर्त निकलवा लेंगी, तो परिवार ने अंततः उनकी इच्छा को स्वीकार कर लिया।
टीचर बनना चाहती थीं आरती बोथरा
राजस्थान की आरती बोथरा का सपना था शिक्षक बनना, लेकिन संतों से मिलने के बाद उनका मन संन्यास की ओर अग्रसर हुआ। आरती ने वर्ष 2018 में ही संन्यास का निश्चय कर लिया था। इसके लिए उन्होंने दो वर्षों तक जैन साधुओं के साथ पैदल विहार किया। जब उन्होंने अपने परिवार से इस बारे में बात की, तो घर में विवाद उत्पन्न हो गया। परिवार के विरोध के चलते आरती ने उपवास शुरू कर दिया। आखिरकार, परिजन उनके दृढ़ संकल्प को देखते हुए सहमत हो गए। इस प्रकार, जो युवती कभी शिक्षक बनने का सपना देखती थी, उसने आध्यात्मिक जीवन को अपना लिया।
साक्षी की बीएससी के बाद छूट गई पढ़ाई
Jain Diksha : राजस्थान के बाड़मेर जिले के चौहटन की रहने वाली साक्षी सिंघवी अपने परिवार की इकलौती बेटी हैं। उनके दो बड़े भाई हैं और वे सबसे छोटी संतान हैं। साक्षी ने बीएससी तक की पढ़ाई की थी और उनके पिता चाहते थे कि वे आगे उच्च शिक्षा प्राप्त करें। लेकिन वर्ष 2015 में उनके पिता की हृदयगति रुकने से मृत्यु हो गई।
कोरोना महामारी के दौरान उनकी पढ़ाई छूट गई और वे बेंगलुरु चली गईं। वहीं, उन्होंने जैन साध्वी दीप्ति प्रभा के चातुर्मास में भाग लिया और दस दिन उनके साथ रहीं। इसी दौरान साक्षी ने संन्यास का निर्णय लिया। उन्होंने आठ महीने पहले ही अपने परिवार को इस बारे में बता दिया था। मां और भाई शुरुआत में सहमत नहीं थे, लेकिन बाद में उन्होंने साक्षी के निर्णय को स्वीकार कर लिया।
अक्षय ने बीकॉम के बाद लिया संन्यास
बाड़मेर जिले के बाछडाऊ गांव के अक्षय मालू ने मात्र 27 वर्ष की आयु में ऐसा निर्णय लिया, जिससे हर कोई अचंभित रह गया। अक्षय ने बीकॉम की पढ़ाई पूरी की थी, लेकिन सांसारिक जीवन को त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग अपनाने का निश्चय किया। उन्होंने जैन धर्म की राह पकड़ ली और सांसारिक मोह-माया से मुक्ति पा ली। कुशल वाटिका में आयोजित जैन दीक्षा कार्यक्रम में बाड़मेर की चारों बेटियों और अक्षय का धूमधाम के साथ दीक्षा कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसमें दीक्षा लेने वाले युवक और युवतियों को शादी समारोह के भांति तैयार करने के बाद सभी प्रकार की हल्दी रस्म आदि निभाई गई।
नवदीक्षित साधु-साध्वी ने पहली बार की गोचरी
सोमवार को बाड़मेर में नवदीक्षित यह पांचो साधु-साध्वी शहर में पहली बार गोचरी के लिए निकले। इस दौरान वह अपने – अपने घर पहुँचकर कर गोचरी ( भोजन ) ली। इससे पूर्व महिलाओं ने मंगल गीत गाकर नूतन जैन मुनि और साध्वियों का स्वागत किया। इस दौरान नूतन जैन मुनि और साध्वी के दर्शन के लिए जैन समाज के लोगों में जबरदस्त तरीके का उत्साह देखने को मिला। आपको बात दे कि जब कोई जैन साधु भोजन सामग्री इकट्ठा करने के लिए बाहर जाता है, तो इसे ‘गोचरी के लिए जाना’ कहते हैं। दरसअल रविवार का दिन जैन समाज के लिए विशेष रहा। यहां शहर के कुशल वाटिका में आचार्य जिन मणिप्रभ सागर व साध्वी विद्युतप्रभा सहित साध्वी कल्पलता, साध्वी श्रुतदर्शना, साध्वी मयूरप्रभा के सानिध्य में जैन समाज की चार बेटियों व एक बेटे ने सांसारिक जीवन का त्याग कर संयम मार्ग को अपनाते हुए हुए दीक्षा गृहण की। जिसके बाद सोमवार को नूतन जैन मुनि मेरूप्रभसागर, साध्वी ध्यानरूचिश्री, साध्वी अपूर्णरूचिश्री , साध्वी अनन्यरूचिश्री व साध्वी आप्तरूचिश्री ने संयम जीवन की यात्रा की प्रारम्भ करते हुए खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरीश्वर एवं साध्वी डॉ. विधुत्प्रभाश्री के सानिध्य में शहर में पहली बार गोचरी आहार ग्रहण करने के लिये निकले। इस दौरान उनके साथ जैन समाज के लोगो बड़ी संख्या में साथ साथ चलते नजर आए।
नवदीक्षित यह पांचो साधु-साध्वी अपने घर पहुँचे। यहां पर अपने सांसारिक परिवार से गोचरी (भोजन) ग्रहण की। इस दौरान सिर पर कलश धारण किए हुए जैन समाज की महिलाओं ने नूतन जैन मुनि और साध्वियों के स्वागत में मंगल गीत गए। गोचरी ग्रहण करने के बाद वे शहर के कल्याणपुर स्थित जैन मंदिर पहुंचकर दर्शन किए। आचार्य जिनमणिप्रभसूरीश्वर ने कहा कि गोचरी ग्रहण के बाद नव दीक्षित पैदल विहार आरम्भ करेंगे। साध्वी विद्युत्प्रभाश्री ने बताया कि बाड़मेर से विहार कर ये बाछड़ाऊ जाएंगे वहां मंदिर की प्रतिष्ठा में सानिध्य प्रदान करेंगे।