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Maha Kumbh Mela Earnings :महाकुंभ का आयोजन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज महाकुंभ के समापन के दूसरे दिन (27 फरवरी) को यह बयान दिया कि महाकुंभ ने आस्था और अर्थव्यवस्था का ऐसा समन्वय किया है, जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता। उन्होंने कहा, “ऐसा कहीं नहीं होता कि किसी शहर के विकास पर 7,500 करोड़ रुपये खर्च किए जाएं और उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था में 3.30 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हो जाए। महाकुंभ ने यह कर दिखाया है।”
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, महाकुंभ में देश-विदेश से आए करीब 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने औसतन 5,000 रुपये खर्च किए। इस प्रकार कुल खर्च का अनुमान लगभग 3.30 लाख करोड़ रुपये लगाया गया है। इस दौरान श्रद्धालुओं ने परिवहन पर लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपये खर्च किए, वहीं खानपान पर 33,000 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हुआ।
Mahakumbh Economy : महाकुंभ केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी एक बहुत बड़ी घटना बन चुका है। इससे न केवल उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला, बल्कि लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार और व्यापार का अवसर प्राप्त हुआ। होटल व्यवसाय, परिवहन, खानपान, खुदरा व्यापार और छोटे व्यवसायों ने इस मेले से जबरदस्त लाभ कमाया। यह महाकुंभ दुनिया के सामने आस्था और आर्थिकी का एक अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
होटल इंडस्ट्री का जबरदस्त मुनाफा
Kumbh Mela economic impact : महाकुंभ से होटल इंडस्ट्री को सबसे अधिक आर्थिक लाभ हुआ। प्रयागराज में 200 से अधिक होटल, 204 गेस्ट हाउस और 90 से अधिक धर्मशालाएं उपलब्ध थीं। इसके अलावा, 50,000 से अधिक लोगों ने अपने घरों को होम-स्टे में परिवर्तित कर दिया था। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र गोयल के अनुसार, प्रारंभिक अनुमान था कि होटल इंडस्ट्री का कारोबार 2,500 से 3,000 करोड़ रुपये तक होगा, लेकिन मेले के समापन तक यह आंकड़ा 40,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
इस बार महाकुंभ में होटल के कमरों की कीमतें कई गुना बढ़ गईं। सामान्य दिनों में जो कमरे 3,000 रुपये में उपलब्ध थे, वे 15,000 रुपये तक में बुक हुए। स्टेशन के पास जो कमरे 500-700 रुपये में मिलते थे, वे इस बार 4,000-5,000 रुपये तक में उपलब्ध रहे। वहीं, डोम सिटी में ठहरने की व्यवस्था की गई, जहां प्रति कमरे का किराया 1 लाख रुपये से अधिक था और यह पूरी तरह बुक रही।
टोल प्लाजा से हुआ 300 करोड़ रुपये का राजस्व
Kumbh Mela revenue : प्रयागराज आने के कुल 7 मार्ग हैं और प्रत्येक मार्ग पर टोल प्लाजा स्थित हैं। श्रद्धालु निजी वाहनों से महाकुंभ में पहुंचे, जिससे टोल प्लाजा को जबरदस्त मुनाफा हुआ। प्रयागराज-मिर्जापुर मार्ग पर विंध्याचल टोल प्लाजा से करीब 70 लाख गाड़ियां गुजरीं, जिससे 50 करोड़ रुपये का राजस्व मिला। इसी प्रकार प्रयागराज-रीवा, प्रयागराज-चित्रकूट, प्रयागराज-कानपुर, प्रयागराज-लखनऊ मार्गों पर भी टोल प्लाजा से अच्छी खासी आय हुई। लखनऊ-प्रयागराज मार्ग पर तीन टोल प्लाजा स्थित हैं, जहां से एक कार चालक को करीब 350 रुपये टोल देना पड़ा। कुल मिलाकर सभी टोल प्लाजा ने लगभग 300 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया।
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3 लाख लोगों को मिला प्रत्यक्ष लाभ
महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से हुई थी, लेकिन श्रद्धालुओं की भीड़ इससे पहले ही प्रयागराज पहुंचने लगी थी। पहले सप्ताह में अपेक्षित संख्या में श्रद्धालु आए, लेकिन 21 जनवरी से श्रद्धालुओं की संख्या में जबरदस्त उछाल देखा गया। 21 से 29 जनवरी के बीच प्रशासन को भीड़ को नियंत्रित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। चारों ओर श्रद्धालु ही श्रद्धालु दिखाई दे रहे थे।
इस दौरान खाने-पीने की दुकानों, ट्रैवल्स, नाव संचालन, होटल और गेस्ट हाउस इंडस्ट्री को भारी लाभ हुआ। इन व्यवसायों से जुड़े लगभग 3 लाख लोगों को सीधा फायदा हुआ। 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन भारी भीड़ के कारण भगदड़ की स्थिति बनी, जिससे श्रद्धालुओं की संख्या में अचानक कमी आई। हालांकि, 5 फरवरी के बाद भीड़ ने फिर से सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
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दुकानदार और छोटे व्यवसायियों की आय
महाकुंभ के सेक्टर-2 में स्थित “महाराजा कचौड़ी एंड प्रसाद भोग” नामक आउटलेट का टेंडर 92 लाख रुपये में हुआ था। मेले के दौरान प्रतिदिन 8,000 से 9,000 प्लेट कचौड़ी बिकीं, जिनकी कीमत प्रति प्लेट 50 रुपये थी। इसके अलावा, लड्डू, चाय और पानी की बोतलें भी खूब बिकीं। इस दुकान की प्रतिदिन की अनुमानित बिक्री 5 लाख रुपये से अधिक थी। हालांकि, दुकानदार सार्वजनिक रूप से अपनी आय का खुलासा करने से बचते हैं।
महाकुंभ की प्रमुख लोकेशन, लेटे हुए हनुमान मंदिर के पास स्थित “बजरंग भोग” नामक लड्डू की दुकान के संचालकों ने बताया कि प्रतिदिन 2 से 3 टन लड्डू बिके। इससे रोजाना करीब 3 लाख रुपये की बिक्री हुई। इस दुकान पर कुल 48 लोग कार्यरत थे। मेले के दौरान लड्डू की कीमत 160 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 280 रुपये प्रति किलो हो गई थी, जिससे 50% का लाभ हुआ।
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श्रमिक वर्ग को भी मिला लाभ
संगम से लगभग 500 मीटर पहले स्थित संगम थाना के पास बलिया के सुशील गुप्ता ने पकौड़े-समोसे और कचौड़ी की दुकान लगाई थी। यह दुकान एक ठेले पर स्थित थी। सुशील बताते हैं कि उन्हें थाना प्रशासन के माध्यम से यह स्थान मिला। 6 दिसंबर से दुकान लगाई गई थी। मेले के दौरान प्रतिदिन 400-500 प्लेट कचौड़ी बिकीं, जबकि समोसे, पकौड़े और चाय की भी अच्छी बिक्री हुई। प्रतिदिन 30,000-35,000 रुपये की बिक्री हुई, जिसमें 60% लागत के बाद अच्छा लाभ हुआ।
इसी तरह, एक ठेला खींचने वाले निमित कुमार बिंद ने बताया कि उनके ठेले की पहले कोई विशेष पहचान नहीं थी, लेकिन महाकुंभ के दौरान बड़े-बड़े लोग भी उनके ठेले पर बैठते थे। प्रतिदिन 2,000-3,000 रुपये की कमाई हो जाती थी। ऐसे ही लगभग 500 ठेले वालों के लिए महाकुंभ एक सुनहरा अवसर बनकर आया, जिससे उन्होंने पांच साल की आमदनी सिर्फ कुछ ही महीनों में अर्जित कर ली। सिविल लाइंस की तरफ से मेले में प्रवेश करने वाले मार्ग पर कई ठेले नजर आते थे। वहां मिले पिंटू ने बताया कि उन्होंने पहले इसी ठेले के जरिए कबाड़ का काम किया था, लेकिन महाकुंभ के दौरान प्रतिदिन 3,000 रुपये तक की कमाई हो रही थी।
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मेला प्राधिकरण की 8 हजार से ज्यादा दुकाने
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Kumbh Mela business opportunities : महाकुंभ में कॉमर्शियल दुकानों के लिए जगह को लेकर शुरुआत से ही मारामारी रही। इस कारण जमीनों के दाम भी अधिक रहे। मेला प्राधिकरण ने इस बार लगभग 8 हजार दुकानों का अलॉटमेंट किया, जिनकी कीमत 10 हजार रुपए से लेकर 50 लाख रुपए तक रही।
महाकुंभ का एक बड़ा हिस्सा कैंटोनमेंट क्षेत्र में आता है। यहां से भी दुकानों का अलॉटमेंट हुआ, जहां कई दुकानों की सालाना कीमत 10 लाख रुपए से 1 करोड़ रुपए तक थी। इसके अलावा, शहर में दुकानों के लिए जगह का आवंटन नगर निगम द्वारा किया गया।
महाकुंभ न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, बल्कि यह आर्थिक रूप से भी अत्यंत प्रभावशाली साबित हुआ। भारी भीड़, उच्च व्यापारिक गतिविधियां, परिवहन सेवाओं में वृद्धि और वस्तुओं की बढ़ती मांग ने इसे एक बड़े आर्थिक अवसर में बदल दिया। सरकार और व्यापारियों ने इससे भारी मुनाफा कमाया, जिससे यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अभूतपूर्व बन गया।
2019 और 2013 में हुआ दुकानों का अलॉटमेंट
2019 में मेला प्राधिकरण ने 5,721 दुकानों के लिए जगह बेची थी, लेकिन उस समय इससे हुई आय का कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया गया था। 2013 के महाकुंभ में ऑफलाइन प्रक्रिया के माध्यम से दुकानों का अलॉटमेंट हुआ था, जिसमें 2 हजार से अधिक दुकानों को आवंटित किया गया था। इस साल दुकानों के रेट पिछले कुंभ के मुकाबले 4-5 गुना अधिक रहे। हालांकि, कमाई के मामले में भी दुकानदारों को पहले से अधिक लाभ हुआ।
डिमांड बढ़ी, लोगों को मिली मुंहमांगी कीमत
महाकुंभ में अत्यधिक भीड़ उमड़ने के कारण वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुई। खाने-पीने के सामान की जितनी मांग थी, उस अनुपात में आपूर्ति नहीं हो सकी। इसके कारण मेले के अंदर और आसपास वस्तुओं के दाम दोगुने हो गए। उदाहरण के लिए:
- 1 लीटर की पानी की बोतल, जो सामान्यत: 20 रुपए में मिलती थी, 30 रुपए में बिकी।
- शिकंजी, कुल्फी, चने जैसी खाद्य वस्तुओं के दाम दोगुने हो गए।
- 8 और 9 फरवरी को महाकुंभ में जबरदस्त भीड़ उमड़ी, जिससे शहर को जोड़ने वाले सभी 7 रास्तों पर लंबा जाम लग गया। उस दिन:
- हाईवे पर स्थित ढाबों में चाय की कीमत 50 रुपए तक पहुंच गई।
- खाने की एक प्लेट की कीमत 300 रुपए तक हो गई।
- बाकी दिनों में भी बाजार दरें पहले से अधिक बनी रहीं।
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यातायात सेवाओं में भी उछाल
रिक्शा चालकों ने भी इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया।
- 1-2 किलोमीटर की दूरी के लिए 200-300 रुपए तक वसूले गए।
- बाइक टैक्सी वालों ने प्रति सवारी 1000 रुपए तक चार्ज किया।
- पुलिस ने ओवरचार्जिंग करने वाले 100 से अधिक बाइक सीज की।
- संगम में नाव के जरिए स्नान करने की मांग इतनी अधिक हो गई कि जहां सामान्य दिनों में 50 रुपए किराया था, वहां महाकुंभ के दौरान 5,000 रुपए तक लिए गए।
- कई लोगों ने अधिक किराया वसूले जाने की शिकायत दर्ज करवाई, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
- दिल्ली, पटना, जयपुर जाने वाली प्राइवेट बसों का किराया भी दोगुना हो गया।
- सामान्य दिनों में दिल्ली तक बस का किराया 1,000-1,200 रुपए था, जो महाकुंभ के दौरान 2,000 रुपए से अधिक हो गया।
7,500 करोड़ रुपए खर्च कर 4 लाख करोड़ की कमाई
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. प्रशांत घोष के अनुसार, इतनी लंबी अवधि का कोई भी सांस्कृतिक, राजनीतिक या अन्य प्रकार का आयोजन विश्व में कहीं नहीं होता।
- 45 दिनों तक चले इस महाकुंभ का क्षेत्रफल 4,000 हेक्टेयर में फैला रहा।
- 66 करोड़ लोग इसमें शामिल हुए, जो अमेरिका, रूस और इंग्लैंड की कुल आबादी से भी अधिक है।
- अर्थशास्त्र के अनुसार, इस आयोजन से 3 लाख करोड़ का राजस्व प्राप्त होने की संभावना थी।
- अगर 66 करोड़ लोगों का औसत खर्च 5,000 रुपए प्रति व्यक्ति माना जाए, तो यह आंकड़ा 3 लाख करोड़ को पार कर जाएगा।
- स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को इससे जबरदस्त फायदा हुआ।
महाकुंभ का आर्थिक प्रभाव
- 7,500 करोड़ रुपए के निवेश से 3 लाख करोड़ रुपए की कमाई हुई, जो एक बड़ी उपलब्धि है।
- उत्तर प्रदेश की कुल GDP 25 लाख करोड़ रुपए है, जिसमें महाकुंभ का योगदान 12% तक हो सकता है।
- भारत की कुल GDP 295 लाख करोड़ रुपए है, जिसमें महाकुंभ का प्रभाव लगभग 1% होगा।
- हालांकि, इस संबंध में आधिकारिक आंकड़े आने में कुछ समय लगेगा।