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Unique tradition : भारत में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग परंपरा से धर्मो को मानते है। इन सभी के रीति-रिवाज भी एक दूसरे से अलग है। कुछ जगहों पर लोग ऐसी परंपराओं को आज भी मानते हैं जिन्हें देखने में अजीब सा लगता है. ये धार्मिक परंपराएं सैकड़ों सालों से वहां रहने वाले लोग मानते आ रहे हैं। आज हम भारत के एक हिस्से में निभाई जाने वाली एक परंपरा को बताने जा रहे हैं जिसे जानकर यकीनन आपको हैरानी होगी। ये परंपरा पुरुषों के साड़ी पहनने से जुड़ी है और साड़ी पहनकर वह भगवान की पूजा करते हैं।

Indian culture and tradition : पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के चंदन नगर में ये परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। इस परम्परा के अनुसार महिलाएं नहीं बल्कि पुरुष साड़ी पहनकर देवी मां की पूजा करते हैं। सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है कि ये परंपरा साल दो साल से नहीं बल्कि पिछले 229 साल से इस स्थान के लोगों द्वारा निभाई जा रही है। बता दें कि पश्चिम बंगाल के चंदन नगर में इस परंपरा के दौरान मां जगधात्री की पूजा की जाती है। इस दौरान घर की महिलाएं नहीं बल्कि पुरुष साड़ी पहनकर माता की पूजा करते हैं। हर साल की तरह इस बार भी चंदन नगर का नजारा काफी अद्भुत दिखाई दिया. इस बार भी पूजा के दौरान पुरुषों ने साड़ी पहनकर मां जगधात्री की सिंदूर और पान से आराधना की।

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Indian tradition : बता दें कि बांग्ला संस्कृति में सदियों से मां जगधात्री की पूजा के दौरान अलग तरह का नजारा देखने को मिलता है। इस दौरान पुरुष साड़ी पहनकर और सिर पर पल्लू डालकर मां जगधात्री की पूजा-अर्चना करते हैं। यही नहीं पूजा के दौरान मंडप परिसर के अंदर और बाहर सैकड़ों श्रद्धालु भी जमा होते हैं। यानी इस परंपरा के अंतर्गत पुरुष अकेले साड़ी पहनकर पूजा नहीं करते बल्कि उन्हें सभी के सामने मां की पूजा करनी होती है.

Tradition : कैसे शुरु हुई ये परंपरा

Kerala culture and tradition : पश्चिम बंगाल की संस्कृति में ये परंपरा अंग्रेजों के शासन के समय से चली आ रही है. इस अनोखी पूजा के बारे में कहा जाता है कि 229 साल पहले जब अंग्रेजों का शासन था, तब शाम ढलने के बाद अंग्रेजों के डर से महिलाएं घर से नहीं निकलती थीं. उस दौरान घर के पुरुषों ने साड़ी पहनकर मां जगधात्री की पूजा की थी. इसके बाद ये एक परंपरा बन गई जो आजतक चली आ रही है. इसलिए आज भी पुरुष हर साल एक खास मौके पर साड़ी पहनकर देवी मां की पूजा-अर्चना करने मंदिर पहुंचते हैं.