
Emotional Udaipur : 16 मार्च 2025 का यह दिन मेवाड़ के इतिहास में सिर्फ एक शोक का दिन नहीं था, बल्कि एक ऐसा पल भी था जब वर्षों से बिछड़े दो चचेरे भाई, मेवाड़ राज परिवार के वारिस, एक ही तस्वीर में कैद हुए। महाराणा अरविंद सिंह मेवाड़ (Arvind Singh Mewar) के अंतिम दर्शन के दौरान उदयपुर ने जहां एक ओर श्रद्धा और सम्मान के फूल अर्पित किए, वहीं दूसरी ओर एक ऐसा दृश्य उभरकर आया जिसने हर किसी को भावुक कर दिया।
महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद यह दूसरी बड़ी क्षति थी, जिसने पूरे मेवाड़ को शोक में डुबो दिया। लेकिन इस अंतिम यात्रा में जो दृश्य सबसे अधिक चर्चित रहा, वह था दो भाइयों का एक ही जगह मौजूद होना- विश्वराज सिंह मेवाड़ (vishvraj singh mewar) और लक्षराज सिंह मेवाड़ (lakshyaraj singh mewar)
भाइयों की वर्षों बाद एक झलक ने किया भावुक
City Palace Udaipur : अरविंद सिंह मेवाड़ की अंतिम यात्रा जब महासतियां पहुंची, तब हर किसी की निगाहें उस क्षण को तलाश रही थीं, जब विश्वराज सिंह मेवाड़ वहां पहुंचेंगे। पिछले साल 10 नवंबर 2024 को जब महेंद्र सिंह मेवाड़ का निधन हुआ था, तब लक्षराज सिंह वहां नहीं पहुंचे थे। इस बार जब अरविंद सिंह मेवाड़ पंचतत्व में विलीन हो रहे थे, तब सभी के मन में यह प्रश्न था कि क्या इस बार भी इतिहास खुद को दोहराएगा? लेकिन जब विश्वराज सिंह मेवाड़ वहां पहुंचे और अपने काका अरविंद सिंह मेवाड़ को नमन किया, तो पूरे प्रांगण में सन्नाटा छा गया। उनका वहां मौजूद होना ही नहीं, बल्कि पूरे समय खड़े रहना इस बात का संकेत था कि परिवार के अंदरूनी मतभेदों के बावजूद एकता के बंधन अब भी जिंदा हैं। जब मुखाग्नि दी गई, तब विश्वराज सिंह मेवाड़ अपने स्थान से खड़े हो गए और तब तक खड़े रहे, जब तक कि अंतिम संस्कार की विधि पूरी नहीं हो गई। यह एक ऐसा दृश्य था जिसने पूरे मेवाड़ को सुकून दिया।
क्या परिवार में एकता की नई शुरुआत है ?
दोनों भाइयों के बीच वर्षों से कानूनी विवाद चले आ रहे हैं। संपत्ति, उत्तराधिकार और पारिवारिक मतभेदों ने उन्हें अलग-अलग राहों पर धकेल दिया था। लेकिन आज, जब परिवार एक दुखद घड़ी में साथ खड़ा था, तो हर किसी के मन में एक ही सवाल था- क्या यह दरार अब पाटी जा सकती है?
भले ही दोनों भाइयों ने कोई औपचारिक वार्तालाप नहीं किया, लेकिन जब अंतिम विदाई के बाद उनकी नजरें मिलीं, तो वह क्षण कई सवाल छोड़ गया। शायद यह कोई बड़ी मुलाकात नहीं थी, लेकिन इस संक्षिप्त लम्हे ने यह संदेश जरूर दिया कि जब परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटता है, तब आपसी मतभेद छोटे हो जाते हैं।

उदयपुर की सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब
अरविंद सिंह मेवाड़ की अंतिम यात्रा जब समूह निवास से शुरू हुई, तब हजारों लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। गजराज आगे-आगे चल रहे थे, जैसे कि वह भी अपने स्वामी को अंतिम विदाई दे रहे हों। बैंड की धुन, पुष्प वर्षा, और “प्रभु एकलिंगनाथ की जय” के गगनभेदी जयकारे माहौल को और भी भावनात्मक बना रहे थे। सड़कों के दोनों ओर खड़े लोग नम आंखों से अपने प्रिय श्रीजी को अंतिम विदाई दे रहे थे।
अंतिम संस्कार स्थल पर मौजूद गणमान्य अतिथियों में पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया, कवि शैलेश लोढ़ा, क्रिकेटर अजय जडेजा, विधायक रविंद्र सिंह भाटी समेत कई अन्य प्रमुख हस्तियां शामिल थीं। लेकिन भीड़ की निगाहें सिर्फ तीन चेहरों पर थीं- अरविंद सिंह मेवाड़, विश्वराज सिंह मेवाड़ और लक्षराज सिंह मेवाड़।
भावना में डूबा मेवाड़, क्या बदलेंगे इतिहास के पन्ने
यह दिन सिर्फ एक अंत नहीं था, बल्कि एक नई शुरुआत की उम्मीद भी लेकर आया। क्या परिवार के दोनों ध्रुव एक-दूसरे के करीब आएंगे? क्या वर्षों पुराने विवाद समाप्त होंगे? यह सब भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन आज मेवाड़ ने वह दृश्य देखा, जिसकी कल्पना तक करना मुश्किल था। परिवार के दो वारिस, एक ही तस्वीर में, एक ही दुख में, एक ही भावना के साथ। उदयपुर की हवाओं में शोक था, लेकिन कहीं न कहीं एक सुकून भी था। यह सुकून इस बात का कि मेवाड़ की परंपरा में, जब दुख की घड़ी आती है, तो परिवार बिखरता नहीं, बल्कि एक साथ खड़ा होता है।

चार दशक पुराना है सम्पत्ति विवाद, दोनों भाई चले गए
मेवाड़ राजघराने की संपत्ति विवाद ने दशकों तक राजस्थान की राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बना रहा है। यह विवाद मुख्यतः महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनकी संपत्तियों के बंटवारे को लेकर उनके पुत्रों—महेंद्र सिंह मेवाड़ और अरविंद सिंह मेवाड़—के बीच उत्पन्न हुआ। यह विवाद न केवल कानूनी लड़ाईयों तक सीमित रहा, बल्कि परिवारिक संबंधों में भी तनाव का कारण बना।
महाराणा भगवत सिंह मेवाड़, जो मेवाड़ राजघराने के प्रमुख थे, का निधन 3 नवंबर 1984 को हुआ। उनके निधन के बाद, उनकी संपत्तियों के बंटवारे को लेकर उनके बड़े पुत्र महेंद्र सिंह मेवाड़ और छोटे पुत्र अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच मतभेद उत्पन्न हुए। महेंद्र सिंह का दावा था कि उनके पिता की संपत्तियां संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति हैं, जिन पर सभी सदस्यों का समान अधिकार है। दूसरी ओर, अरविंद सिंह इस संपत्ति पर अपने विशेष अधिकार का दावा करते थे, जो विवाद का मुख्य कारण बना। इस विवाद को सुलझाने के लिए 1983 में महेंद्र सिंह मेवाड़ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। यह मामला उदयपुर की अदालत में 37 वर्षों तक चला। अंततः, जून 2020 में, अदालत ने फैसला सुनाया कि महाराणा भगवत सिंह की संपत्तियां संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति हैं, और इसे चार बराबर हिस्सों में बांटा जाना चाहिए: महेंद्र सिंह मेवाड़, अरविंद सिंह मेवाड़, उनकी बहन योगेश्वरी देवी, और उनके पिता भगवत सिंह मेवाड़ के हिस्से में 25-25 प्रतिशत। हालांकि विपक्षी इस फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील कर दी। इस तरह विवाद अदालतों में विचाराधीन है।

इस संपत्ति विवाद ने परिवारिक संबंधों में भी खटास पैदा की। विवाद के चलते परिवार के सदस्य सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के विरोध में खड़े नजर आए। 10 नवंबर 2024 को महेंद्र सिंह मेवाड़ का निधन हुआ तो विश्वराजसिंह मेवाड़ ने पिता को मुखाग्नि दी, मगर काका अरविंद सिंह मेवाड़ बीमार थे, मगर चचेरा भाई लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ भी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए। फिर धूणी दर्शन को लेकर विवाद उपजा और सिटी पैलेस तीन दिन तक बंद रहा। पर्यटक परेशान हुए। आखिर में राजस्थान सरकार की दखल के बाद सहमति बनी और विश्वराज सिंह मेवाड़ ने धूणी दर्शन किए, मगर अंदरखाने तनाव फिर भी बरकरार रहा।
मेवाड़ राजघराने की संपत्ति विवाद ने दशकों तक कानूनी और परिवारिक संघर्ष को जन्म दिया। अदालती वाद, फैसलों और अपीलों ने परिवारिक संबंधों में आई दरार को पूरी तरह से भरना अभी भी एक चुनौती बना हुआ है। आशा है कि भविष्य में परिवार के सदस्य आपसी समझ और सहयोग से इस विवाद को पूरी तरह सुलझा पाएंगे, जिससे मेवाड़ की समृद्ध विरासत को संरक्षित रखा जा सके।
