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प्रतीकात्मक तस्वीर

मोटापा दुनियाभर के लिए ऐसी महामारी में तब्दील होता जा रहा है, जिसकी रोकथाम के लिए उपाय तो आसान हैं, किसी वैक्सीन की भी जरूरत नहीं, लेकिन इसपर नियंत्रण फिर भी कठिन है। खाने-पीने का कल्चर अब ग्लोबल हो चुका है। साथ ही ज्यादातर देशों में प्रतिव्यक्ति आय भी तेजी से बढ़ी है। हालांकि भारत में मोटापे की खास वजह खान-पान की बजाय बदली जीवनशैली अधिक है। हम पहले से कहीं ज्यादा मशीनों के अधीन हुए हैं, हमारे खाने-पीने के समय और तरीकों में बदलाव आया है और सबसे खास बात, हमारी फिजिकल एक्टिविटी बहुत कम हो गई है। इन तमाम कारणों ने मोटापे को भारतीयों के लिए भी बड़ी समस्या बना दिया है। मुश्किल यह है कि मोटापा कभी अकेला नहीं आता। इसके साथ हाई बीपी, डायबिटीज, हार्मोन्स में असंतुलन, ह्रदय रोग आदि भी आते हैं। इतना ही नहीं, बढ़ा हुआ वजन आपके दिमाग पर भी बहुत बुरा असर डालता है। आखिर तो शरीर और दिमाग एक-दूसरे से कनेक्टेड हैं ही। इसलिए दिमाग पर भी छा जाता है मोटापा।

वैसे मोटापा पूरे शरीर के लिए नुकसानदायक है। अनियंत्रित मोटापा हड्डियों से लेकर किडनी, लिवर, हृदय सहित हर अंग के लिए गंभीर खतरा बन सकता है और दिमाग को ये तकलीफ में डाल सकता है। जानिए कैसे मोटापा दिमाग पर डालता है बुरा असर और कैसे किया जा सकता है इसको नियंत्रित?

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मोटापे को लेकर कारण केवल जीवनशैली संबंधित ही हो, यह जरूरी नहीं। कई बार स्ट्रेस, तनाव, डिप्रेशन जैसी स्थितियां भी वजन बढ़ने की वजह बन जाती हैं। वहीं हार्मोन्स के असंतुलन जैसे थायरॉइड, पीसीओडी आदि के कारण भी तेजी से वजन बढ़ सकता है। ये वे स्थितियां हैं, जहां वजन बढ़ने पर आपको पर्याप्त चिकित्सकीय मदद भी चाहिए होती है। बाकी मामलों में सिर्फ जीवनशैली, एक्सरसाइज और खान-पान में परिवर्तन से भी वजन नियंत्रित किया जा सकता है।

ऐसे होता है दिमाग पर असर

पिछले कुछ सालों में इस बात को लेकर कई शोध हुए हैं। ये शोध स्पष्ट करते हैं कि अगर आप सेंट्रल ओबेसिटी यानी पेट पर मोटापे के शिकार हैं तो इससे आपके दिमाग के आकार पर भी बुरा असर हो सकता है। पेट पर चढ़ी चर्बी की अतिरिक्त परत को आप इस तरह भी समझ सकते हैं। जैसे अगर आपका (किसी पुरुष का) कद 5 फीट 10 इंच या इससे ज्यादा है और आपकी कमर का नाप 36 इंच से ज्यादा है तो यह खतरे की ओर इशारा हो सकता है। सही मायने में आपकी कमर की साइज आपके कद के आधे से भी कम होना चाहिए। सीधी सी बात है कि जितना पेट पर चर्बी का बोझ बढ़ेगा उतना ही बीमारियों का खतरा भी बढ़ेगा।  

शोध बताते हैं कि इसका असर आपके ब्रेन के साइज पर भी पड़ता है। असल मे दिमाग का आकार दिमाग की फिटनेस और फंक्शन्स को निर्धारित करता है। मतलब सामान्य आकार का अर्थ है दिमाग का सही तरीके से काम करना। जब शरीर पर चर्बी की परतें बढ़ती हैं तो दिमाग के ग्रे मैटर में कमी आ सकती है और दिमाग सिकुड़ भी सकता है। इससे याददाश्त पर बुरा असर पड़ सकता है और डिमेंशिया जैसी स्थितियां भी बन सकती हैं।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, जिन मरीजों में अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर यानी एडीएचडी की हिस्ट्री होती है, उनमें मोटा होने की आशंका बढ़ सकती है। ठीक ऐसा ही डिप्रेशन और तनाव या एंग्जायटी के लिए भी कहा जाता है। मतलब मोटापा दिमाग पर बुरा असर करता है और दिमाग की उलझन से भी मोटापा बढ़ता है।

तो क्या करें?
सबसे पहले अपने वजन बढ़ने का कारण समझें। यदि ये कोई चिकित्सकीय कारण है तो उसका पूरा इलाज लें और डॉक्टर की सलाह पर चलें। इसमें समय लग सकता है, इसलिए बीच में इलाज न छोड़ें। वरना फिर एबीसीडी से शुरू करना होगा।
अपने वजन को 2 किलो, फिर 5 किलो, फिर 8 किलो, ऐसे कम करने के लिए एक पूरी योजना बनाएं और उसपर कड़ाई से अमल करें।
हेल्दी भोजन, एक्सराइज और पर्याप्त आराम का कॉम्बिनेशन बनाएं। वजन घटाना एक दिन की प्रक्रियानहीं है। इसमें समय लगेगा और आपको अपने बनाए रूटीन का पालन लगातार करना पड़ेगा।

खुद को निरंतर मोटिवेट करते रहें। वैसे तो शुरुआती वजन घटने के साथ ही दिमाग मे खुशी का हार्मोन पैदा होने लगता है। खासकर एक्सरसाइज के कारण यह हार्मोन पैदा होता है। इससे आपको आगे भी खुद को स्वस्थ और ऊर्जावान बने रहने में मदद मिलती है।
किसी अच्छे काउंसलर से मदद जरूर लें। सामाजिक स्तर पर गतिविधियों में धीरे धीरे भाग लें। किसी भी चीज से खुद को दूर न करें।
खुद को निरंचर किसी काम में व्यस्त रखें। इससे आपको उन चीजों से दूर रहने में मदद मिलेगी, जो नकारात्मक भावना पैदा करती हैं।
योग, मेडिटेशन, अच्छा संगीत, नृत्य, थियेटर जैसी किसी गतिविधि से जुड़िये। यदि आप इनमे रुचि नही रखते तो अपनी रुचि के किसी काम में व्यस्त रहिए।