
Rana Sanga History : संसद में उत्तरप्रदेश के एसपी लोकसभा सांसद रामजीलाल ने बोलते हुए बाबर की बुराई का सवाल बोलते हुए मेवाड़ के शासक महाराणा संग्रामसिंह उर्फ राणा सांगा पर विवादित टिप्पणी कर दी। सांसद ने राणा सांगा को गद्दार तक कह दिया। इस पर मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य व नाथद्वारा विधायक विश्वराजसिंह मेवाड़, उनकी पत्नी व राजसमंद सांसद महिमा कुमारी मेवाड़, राजसमंद विधायक दीप्ति माहेश्वरी, श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना कार्यकारी अध्यक्ष शीला शेखावत सहित कई लोगों ने कड़ी आपत्ति जताते हुए ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग उठाई।
राणा सांगा के वंशज और उदयपुर पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वराजसिंह मेवाड़ की तीखी टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर आमजन भी उनके पोस्ट को पोस्ट करते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी। साथ ही संसद की गरिमा के विरुद्ध बोलना बताते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग उठाई है। देशभर में यह मांग उठी है कि सांसद रामजीलाल को सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए। बिना इतिहास पढ़े व देखे इस तरह की बयानबाजी कहां तक उचित है। संसद में जनता के मुद्दों की बात होनी चाहिए, मगर इस तरह की बयानबाजी को लेकर चौतरफा विरोध के स्वर मुखर हो गए हैं।
मातृभूमि के लिए मर मिटने की सीख देता राणा सांगा का जीवन
Maharana Sanga History : 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़ में जन्मे महाराणा सांगा, जिन्हें संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास में वीरता, साहस और बलिदान का प्रतीक माने जाते हैं। 30 जनवरी 1528 को उनकी मृत्यु हुई, लेकिन उनका शौर्य आज भी लोगों को प्रेरणा देता है। महाराणा सांगा, राणा रायमल के पुत्र और राणा कुम्भा के पोते थे। उनकी पत्नी का नाम रानी कर्णावती था और उनके चार पुत्र थे – रतन सिंह द्वितीय, उदय सिंह द्वितीय, भोजराज और विक्रमादित्य सिंह। ऐसा माना जाता है कि सांगा की कुल 22 पत्नियां थीं, हालांकि इस पर ऐतिहासिक पुष्टि नहीं है। 1509 में वे 27 वर्ष की आयु में मेवाड़ के शासक बने।
Rana Sanga Facts : महाराणा सांगा का जीवन संघर्ष, बलिदान और मातृभूमि की रक्षा के लिए समर्पण की मिसाल है। उनके द्वारा दिखाया गया साहस और नेतृत्व भारतीय इतिहास में सदैव याद किया जाएगा। उनकी वीरता की गाथाएं आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती हैं। महाराणा सांगा का जीवन त्याग, बलिदान और वीरता की मिसाल है। उन्होंने न केवल अपनी मातृभूमि की रक्षा की, बल्कि राजपूत एकता को भी बल प्रदान किया। उनका नाम भारतीय इतिहास में सदैव सम्मान के साथ लिया जाएगा।
राजपूत एकता के प्रतीक
Rajput Warrior King : महाराणा सांगा सिसोदिया वंश के प्रतापी शासक थे, जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ राजपूतों को एकजुट किया। उन्होंने गुजरात, मालवा और दिल्ली के सुल्तानों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और मातृभूमि की रक्षा के लिए संघर्षरत रहे।
रणभूमि में घायल योद्धा
अपने जीवनकाल में महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी, महमूद खिलजी और बाबर के खिलाफ वीरता से युद्ध लड़ा। उनके शरीर पर लगभग 80 घाव थे, एक हाथ और एक आंख युद्ध में गंवा दी थी। फिर भी उनका हौसला कभी नहीं डगमगाया।
गुजरात-मालवा के सुल्तान को हराया
गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को पराजित कर सांगा ने अपनी ताकत का लोहा मनवाया। 1516 में भामाशाह के सहयोग से उन्होंने इडर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद कई लड़ाइयों में विजय प्राप्त की और मेवाड़ की सीमाओं की रक्षा की।
इब्राहिम लोदी को पराजित किया
सांगा ने 1517 में इब्राहिम लोदी को बाड़ी नामक स्थान पर हराया और दिल्ली तक अपनी विजय पताका फहराई। इस जीत ने उनकी ख्याति को और भी बढ़ा दिया। इब्राहिम लोदी के पराजित होने के बाद, बाबर ने भारत पर आक्रमण किया और 1527 में खानवा की लड़ाई में महाराणा सांगा को पराजित कर दिया। इस युद्ध में मिली हार के बावजूद महाराणा सांगा का साहसिक इतिहास अमर हो गया।
इब्राहिम लोदी को हराया
महाराणा सांगा ने सिकंदर लोदी के शासनकाल के बाद दिल्ली पर अधिकार करने की योजना बनाई। 1517 में इब्राहिम लोदी के नेतृत्व में दिल्ली की सत्ता को चुनौती दी गई। कोटा नामक स्थान पर हुए युद्ध में सांगा ने लोदी को पराजित किया। यह जीत उनकी सामरिक कुशलता का प्रमाण थी।
मांडू के सुल्तान को हराया
महाराणा सांगा ने मांडू के सुल्तान मोहम्मद को युद्ध में हराकर उसे बंदी बना लिया। बाद में उदारता दिखाते हुए उन्होंने सुल्तान को रिहा कर दिया और शांति स्थापित की।
बाबर से असहमति और युद्ध की तैयारी
Babur vs Rana Sanga : बाबर के भारत आगमन के बाद, सांगा ने मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध एकजुटता दिखाने की कोशिश की। हालांकि बाबर ने संधि करने की बजाय युद्ध का मार्ग अपनाया। इस दौरान सांगा ने हसन खां मेवाती, महमूद खिलजी और अन्य राजपूतों को साथ लाकर एक विशाल सेना तैयार की।
खानवा का युद्ध
1527 में खानवा के मैदान में महाराणा सांगा और बाबर के बीच भीषण युद्ध हुआ। बाबर ने तोपों और घुड़सवारों का कुशल प्रयोग किया, जबकि सांगा ने अपनी राजपूत सेना के साथ वीरता दिखाई। हालांकि इस युद्ध में सांगा पराजित हुए, परंतु उनकी बहादुरी और नेतृत्व कौशल को इतिहास में अमर कर दिया।
समृद्ध प्रदेश मेवाड़
सांगा के शासनकाल में मेवाड़ एक समृद्ध प्रदेश बन गया था। उन्होंने कृषि, व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया। राजस्व में वृद्धि और जनकल्याण की योजनाओं के चलते मेवाड़ की जनता समृद्ध हुई।
महाराणा सांगा का निधन
Rana Sanga Life : खानवा की लड़ाई के बाद सांगा घायल अवस्था में बूंदी ले जाए गए। वहां उन्होंने पुनः संघर्ष की शपथ ली, लेकिन विषाक्त आहार दिए जाने के कारण 30 जनवरी 1528 को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार मंडलगढ़ (भीलवाड़ा) में किया गया, जहां आज भी उनकी स्मृति जीवित है।
राणा सांगा के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
क्रमांक | राणा सांगा |
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1 | महाराणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को चित्तौड़गढ़ में हुआ था। |
2 | वे राणा रायमल के पुत्र और राणा कुम्भा के पोते थे। |
3 | सांगा का वास्तविक नाम संग्राम सिंह था। |
4 | उन्होंने 1509 में मेवाड़ की गद्दी संभाली। |
5 | महाराणा सांगा ने 80 से अधिक युद्ध लड़े। |
6 | उन्होंने गुजरात, मालवा और दिल्ली के सुल्तानों को हराया। |
7 | उनके शरीर पर 80 घाव थे, जिनमें एक आंख और एक हाथ खो दिया था। |
8 | इब्राहिम लोदी के साथ कोटा के युद्ध में उन्होंने विजय प्राप्त की। |
9 | मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी को उन्होंने हराया। |
10 | वे राजपूत एकता के सबसे बड़े समर्थक थे। |
11 | उन्होंने बाबर के खिलाफ खानवा का युद्ध लड़ा। |
12 | बाबर की तोपखाने की रणनीति ने युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई। |
13 | महाराणा सांगा ने अपने सैनिकों के साथ मिलकर वीरता का प्रदर्शन किया। |
14 | उन्होंने हसन खां मेवाती और महमूद खिलजी को अपने साथ जोड़ा। |
15 | उनकी पत्नी का नाम रानी कर्णावती था। |
16 | उनके चार पुत्र थे – रतन सिंह द्वितीय, उदय सिंह द्वितीय, भोजराज और विक्रमादित्य सिंह। |
17 | बाबर ने अपनी आत्मकथा में सांगा की वीरता की प्रशंसा की। |
18 | सांगा ने सुल्तानों के आक्रमण को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। |
19 | वे सामरिक योजना बनाने में कुशल थे। |
20 | उन्होंने बाबर के आक्रमण के खिलाफ हिंदू-राजपूत गठबंधन बनाया। |
21 | उनकी हार के बावजूद, सांगा का नाम अमर हो गया। |
22 | कहा जाता है कि उन्हें जहर देकर मार दिया गया। |
23 | उनका अंतिम संस्कार मंडलगढ़ (भीलवाड़ा) में हुआ। |
24 | उनके पुत्र रतन सिंह द्वितीय ने गद्दी संभाली। |
25 | सांगा ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अद्वितीय बलिदान दिया। |
26 | राजपूत गौरव के प्रतीक के रूप में उनकी गाथाएं आज भी जीवित हैं। |
27 | वे जनता के बीच न्यायप्रिय शासक के रूप में प्रसिद्ध थे। |
28 | उनके शासनकाल में कला और संस्कृति को प्रोत्साहन मिला। |
29 | वे कृषि और जल प्रबंधन में भी दक्ष थे। |
30 | राजपूत साम्राज्य को विस्तार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। |
31 | उन्होंने युद्ध के मैदान में अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। |
32 | उनकी सेना में घुड़सवार और तलवारबाजों की संख्या अधिक थी। |
33 | वे हमेशा अपनी प्रजा की भलाई के लिए कार्य करते रहे। |
34 | उन्होंने महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए। |
35 | सांगा ने अपने राज्य में व्यापार और वाणिज्य को भी बढ़ावा दिया। |
36 | उन्होंने युद्ध के मैदान में अपने शौर्य से इतिहास रचा। |
37 | उनकी रणनीतियां आज भी युद्ध अध्ययन में उदाहरण मानी जाती हैं। |
38 | मेवाड़ की वीरता और गौरव में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। |
39 | उनका संघर्ष और बलिदान भारतीय इतिहास में सदा अमर रहेगा। |
40 | महाराणा सांगा को भारतीय संस्कृति में वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है। |