WPI Inflation : वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने आज, 14 जनवरी 2025 को, दिसंबर महीने की थोक महंगाई दर (WPI) के आंकड़े जारी किए। दिसंबर में थोक महंगाई दर बढ़कर 2.37% हो गई, जो नवंबर में 1.89% और अक्टूबर में 2.36% थी। आलू, प्याज, अंडे, मांस-मछली, और फलों जैसी चीजों की कीमतों में वृद्धि थोक महंगाई बढ़ने का मुख्य कारण है।
India Wholesale Price : डेली यूज वाले सामान और खाने-पीने की चीजों की कीमतों में बदलाव
India Wholesale Price : दिसंबर में रोजमर्रा के उपयोग की चीजों की महंगाई दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। कुछ प्रमुख बदलाव इस प्रकार हैं:
- रोजमर्रा की जरूरत की चीजें: महंगाई दर 5.49% से बढ़कर 6.02% पर पहुंची।
- खाने-पीने की चीजें: इनमें हल्की गिरावट देखने को मिली। महंगाई दर 8.92% से घटकर 8.89% हो गई।
- फ्यूल और पावर: इनकी महंगाई दर में कमी आई और यह -5.83% से घटकर -3.79% पर पहुंच गई।
- मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स: महंगाई दर 2.00% से बढ़कर 2.14% हो गई।
- आलू: महंगाई दर 82.79% से बढ़कर 93.20% हो गई।
- अंडे, मांस और मछली: इनकी कीमतों में भी उछाल आया और महंगाई दर 3.16% से बढ़कर 5.43% हो गई।
- सब्जियां: सब्जियों की महंगाई दर मामूली रूप से बढ़कर 28.57% से 28.65% पर पहुंच गई।
WPI inflation rise in December : महंगाई के कारण आम आदमी पर असर
WPI inflation rise in December : थोक महंगाई का प्रभाव लंबे समय तक बने रहने पर इसका सीधा असर उत्पादक क्षेत्रों और आम उपभोक्ताओं पर पड़ता है। अगर थोक कीमतें लंबे समय तक ऊंचाई पर बनी रहती हैं, तो उत्पादक इसका बोझ अंततः ग्राहकों पर डालने लगते हैं। इसका मतलब है कि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।
सरकार थोक महंगाई को नियंत्रित करने के लिए टैक्स में कटौती जैसे उपाय कर सकती है। उदाहरण के लिए, जब कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई थी, तब सरकार ने फ्यूल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती की थी। हालांकि, टैक्स कटौती की भी एक सीमा होती है।
Wpi inflation india today : थोक महंगाई की संरचना
भारत में थोक महंगाई को तीन हिस्सों में बांटा गया है:
- प्राइमरी आर्टिकल्स (22.62% वेटेज):
- इसमें अनाज, गेहूं, सब्जियां, और ऑइल सीड्स जैसे खाद्य और गैर-खाद्य उत्पाद शामिल हैं।
- फ्यूल एंड पावर (13.15% वेटेज):
- इसमें पेट्रोलियम, कोयला और बिजली शामिल हैं।
- मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स (64.23% वेटेज):
- इसमें मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, और रबर जैसे फैक्ट्री उत्पाद शामिल हैं।
WPI data Today : महंगाई मापने की प्रक्रिया
WPI data Today : भारत में महंगाई दर को मापने के लिए दो अलग-अलग इंडेक्स का उपयोग किया जाता है:
1. रिटेल महंगाई (CPI):
- यह ग्राहकों द्वारा दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है।
- इसमें फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07%, और फ्यूल तथा अन्य आइटम्स की हिस्सेदारी होती है।
2. थोक महंगाई (WPI):
- यह थोक बाजार में कारोबारी स्तर पर कीमतों को मापती है।
- इसमें मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की 64.23%, प्राइमरी आर्टिकल्स की 22.62%, और फ्यूल एंड पावर की 13.15% हिस्सेदारी होती है।
Wholesale Price Index India 2024 : 2024-25 में अब तक थोक महंगाई का हाल
महीना | थोक महंगाई |
अप्रैल | 1.25% |
मई | 2.61% |
जून | 3.36% |
जुलाई | 2.04% |
अगस्त | 1.31% |
सितंबर | 1.84% |
अक्टूबर | 2.36% |
नवंबर | 1.89% |
दिसबंर | 2.37% |
सरकार और नीतिगत उपाय
थोक महंगाई में वृद्धि के समय सरकार कुछ विशेष कदम उठाती है। इनमें से मुख्य हैं:
- कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होने पर फ्यूल पर टैक्स में कटौती करना।
- सब्सिडी देकर खाद्य पदार्थों की कीमतों को नियंत्रित करना।
- थोक बाजार में वस्तुओं की सप्लाई बढ़ाने के लिए नीतिगत बदलाव करना।
आम उपभोक्ताओं के लिए क्या मायने रखती है थोक महंगाई?
थोक महंगाई का सीधा असर आम उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ता, लेकिन यह एक संकेत है कि बाजार में कीमतें किस दिशा में बढ़ रही हैं। अगर थोक महंगाई लंबे समय तक बढ़ती रहती है, तो यह उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का कारण बनती है। इससे:
- रोजमर्रा की चीजों की कीमतें बढ़ सकती हैं।
- ईंधन और बिजली के दाम में इजाफा हो सकता है।
- मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से जुड़े उत्पाद महंगे हो सकते हैं।
थोक महंगाई और रिटेल महंगाई का संबंध
रिटेल और थोक महंगाई के बीच सीधा संबंध नहीं है, लेकिन दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। थोक महंगाई की दर बढ़ने पर इसका असर धीरे-धीरे रिटेल बाजार में देखने को मिलता है।
उदाहरण के लिए, अगर थोक बाजार में सब्जियों और फलों की कीमतें बढ़ती हैं, तो कुछ समय बाद इसका असर खुदरा बाजार में भी दिखने लगता है।
दिसंबर में थोक महंगाई दर का 2.37% पर पहुंचना अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। रोजमर्रा की चीजों की बढ़ती कीमतें और आलू, प्याज, अंडे जैसे आवश्यक उत्पादों की महंगाई बढ़ने से आम जनता पर असर पड़ सकता है। सरकार के लिए जरूरी है कि वह नीतिगत कदम उठाकर महंगाई को नियंत्रित करे और सुनिश्चित करे कि इसका बोझ आम जनता पर न पड़े। आने वाले महीनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार महंगाई को काबू में रखने के लिए क्या कदम उठाती है और थोक महंगाई का प्रभाव खुदरा बाजार पर कैसे पड़ता है।