
Rajsamand Foundation Day : राजस्थान का नाम सुनते ही रेगिस्तान, शौर्य और समृद्ध संस्कृति की छवि मन में उभरती है। इस मरुधरा में मेवाड़ का एक खास स्थान है, और मेवाड़ के गहनों में से एक है राजसमंद। आज, 10 अप्रैल 2025 को राजसमंद स्थापना दिवस के मौके पर इस जिले की धार्मिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक विरासतें राजस्थान के गौरव को और बढ़ाती हैं। श्रीनाथजी, द्वारिकाधीश, चारभुजानाथ मंदिर, कुंभलगढ़ का दुर्ग और हल्दीघाटी जैसे स्थल राजसमंद को पर्यटन का एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं। इस जिले के कण-कण में वीरता की गाथाएं बसी हैं, तो दूसरी ओर धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरें भी इसे अनूठा बनाती हैं। राजसमंद का संगमरमर तो विश्व भर में अपनी पहचान रखता है। राजस्थान के 76 साल पूरे होने और राजसमंद जिले के 34 साल के सफर में यह क्षेत्र अपनी विरासतों के दम पर फल-फूल रहा है।
Rajsamand History : राजस्थान के 76 साल और राजसमंद जिले के 34 साल के सफर में इस क्षेत्र ने अपनी धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों के दम पर एक खास पहचान बनाई है। यहां के मंदिरों में आस्था, कुंभलगढ़ और हल्दीघाटी में शौर्य, और झील व संगमरमर में सौंदर्य और समृद्धि झलकती है। हर साल लाखों पर्यटक और श्रद्धालु यहां खिंचे चले आते हैं। राजस्थान दिवस के इस मौके पर राजसमंद के बिना इस राज्य के गौरव की कल्पना अधूरी है।
धार्मिक आस्था का केंद्र : श्रीनाथजी, द्वारिकाधीश और चारभुजानाथ मंदिर
shrinathji temple : राजसमंद की पहचान इसके ऐतिहासिक मंदिरों से भी है, जो देश-विदेश से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। यह वैष्णव संप्रदाय और पुष्टिमार्ग के अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। मंदिर में श्रीनाथजी की सेवा दिन में आठ बार की जाती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मंदिर की भव्यता और आध्यात्मिक शांति हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है।
वहीं, राजसमंद शहर में द्वारिकाधीश मंदिर एक और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसका निर्माण मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने 1676 में करवाया था। यह मंदिर राजसमंद झील के किनारे स्थित है और वैष्णव संप्रदाय के भक्तों के लिए विशेष स्थान रखता है। प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर का शांत वातावरण और झील के साथ इसकी नजदीकी इसे और भी आकर्षक बनाती है।
तीसरा प्रमुख तीर्थ स्थल है चारभुजानाथ मंदिर, जो मेवाड़ का एक प्राचीन और चमत्कारिक धार्मिक केंद्र है। इस मंदिर की स्थापना राजपूत शासक गंगदेव ने की थी। किंवदंती है कि चारभुजानाथ ने गंगदेव को स्वप्न में दर्शन देकर पानी से मूर्ति निकालकर मंदिर में स्थापित करने का आदेश दिया था। बाद में मेवाड़ के महाराजा ने इसे व्यवस्थित करवाया। चार भुजाओं वाली इस मूर्ति की भव्यता और चमत्कार की कहानियां आज भी लोगों को यहां खींच लाती हैं।
कुंभलगढ़: दुर्ग और प्रकृति का अनूठा संगम
Kumbhalgarh Fort : कुंभलगढ़ राजसमंद का एक ऐसा रत्न है, जो इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत मिश्रण है। इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने 1443 से 1458 के बीच करवाया था। 36 किलोमीटर लंबी और 15 फीट चौड़ी दीवार के साथ यह दुर्ग विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार के रूप में प्रसिद्ध है। पहाड़ियों के बीच बसा यह किला न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि अपनी रमणीयता के कारण पर्यटकों का पसंदीदा स्थल भी बन गया है। हर साल हजारों देसी और विदेशी सैलानी यहां आते हैं। इसके आसपास का क्षेत्र वन्यजीव अभयारण्य के रूप में भी जाना जाता है, जो इसे और खास बनाता है।
हल्दीघाटी: शौर्य की अमर गाथा
हल्दीघाटी का नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। खमनोर और बलीचा गांव के बीच अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित यह दर्रा 1576 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुए युद्ध का साक्षी है। इसकी पीली मिट्टी के कारण इसे हल्दीघाटी कहा जाता है। आज यह स्थल न केवल इतिहास प्रेमियों, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यह एकलिंगजी से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और मेवाड़ के शौर्य का प्रतीक है।

राजसमंद झील: कृत्रिम सौंदर्य का प्रतीक
Rajsamand Lake history : राजसमंद झील इस जिले का एक और आकर्षण है, जिसका निर्माण महाराणा राजसिंह ने 1660 के दशक में करवाया था। यह मीठे पानी की कृत्रिम झील 18 फीट गहरी और 6.4 किलोमीटर लंबी है। झील के किनारे नौचौकी और द्वारिकाधीश मंदिर इसे और सुंदर बनाते हैं। वर्तमान में यह झील शहरी क्षेत्र की पेयजल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। पर्यटकों के लिए भी यह एक शांत और मनोरम स्थल है।
मार्बल और खनन: आर्थिक समृद्धि का आधार
राजसमंद का संगमरमर विश्व प्रसिद्ध है। जिले में 1932 खनन लीज पर मार्बल, ग्रेनाइट और फेल्सपार जैसी खदानें संचालित होती हैं। यहां से निकलने वाला मार्बल और ग्रेनाइट देश-विदेश में मांग में रहता है। इसकी प्रोसेसिंग मुख्य रूप से किशनगढ़ में होती है। इसके अलावा दरीबा में हिंदुस्तान जिंक की खदानें भी जिले की आर्थिक समृद्धि में योगदान देती हैं। यह खनन उद्योग स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का बड़ा स्रोत है।
अफसोस… राजसमंद में कुछ कमियां भी है
राजसमंद जिला अपनी धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके बावजूद यहां कुछ कमियां भी हैं, जो इसके विकास और लोगों के जीवन स्तर को प्रभावित करती हैं। सबसे बड़ी कमी है आधुनिक बुनियादी ढांचे और औद्योगिक विकास की कमी। हालांकि जिले में मार्बल और ग्रेनाइट खदानें हैं, लेकिन इनका अधिकांश प्रसंस्करण किशनगढ़ जैसे अन्य क्षेत्रों में होता है। यदि राजसमंद में ही बड़े पैमाने पर प्रोसेसिंग इकाइयां स्थापित हों, तो स्थानीय रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
दूसरी कमी है शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में अपर्याप्त सुविधाएं। ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे स्कूलों और कॉलेजों की कमी है, जिसके कारण युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए अन्य शहरों का रुख करना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें, तो बड़े अस्पताल और विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के चलते गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को उदयपुर या जयपुर जाना पड़ता है।
तीसरी कमी पर्यटन प्रबंधन और प्रचार की है। कुंभलगढ़, हल्दीघाटी और श्रीनाथजी जैसे आकर्षण होने के बावजूद, इन स्थलों का रखरखाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार पर्याप्त नहीं है। बेहतर सड़क संपर्क, होटल और गाइड सुविधाओं की कमी के कारण पर्यटकों को असुविधा होती है।

अंत में, पानी की समस्या भी गंभीर है। राजसमंद झील होने के बावजूद, कई ग्रामीण इलाकों में पेयजल की नियमित आपूर्ति नहीं हो पाती, खासकर गर्मियों में। इन कमियों को दूर करने के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि राजसमंद अपनी पूरी क्षमता के साथ चमक सके।
इतिहास, संस्कृति और शिल्प का अनूठा संगम
राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में बसा राजसमंद जिला अपनी धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। इस जिले का हृदय कहलाने वाली राजसमंद झील और इसके किनारे स्थित नौचौकी पाल न केवल एक कृत्रिम जलाशय और वास्तुशिल्प का नमूना हैं, बल्कि मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास की कहानी भी बयां करते हैं। आज, 10 अप्रैल 2025 को राजसमंद स्थापना दिवस के मौके पर इस झील और इसके आसपास की विरासत को जानना और भी प्रासंगिक हो जाता है।
राजसमंद झील और नौचौकी पाल मेवाड़ के इतिहास, शिल्प और संस्कृति का जीवंत प्रतीक हैं। यह स्थल न केवल पर्यटकों के लिए एक आकर्षण है, बल्कि इतिहासकारों और कला प्रेमियों के लिए भी एक खजाना है। राजप्रशस्ति महाकाव्य और संगमरमर की नक्काशी यहां की शिल्पकला को विश्व पटल पर ले जाती है। राजसमंद का यह रत्न हमें उस गौरवशाली अतीत से जोड़ता है, जब शासकों ने जल संरक्षण, कला और धर्म को एक साथ संजोया था। इसे सहेजना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि यह धरोहर भविष्य में भी अपनी कहानी कह सके।
राजसमंद झील का निर्माण और महत्व
राजसमंद झील का निर्माण मेवाड़ के शासक महाराणा राजसिंह ने 1660 के दशक में करवाया था। यह कृत्रिम मीठे पानी की झील गोमती नदी को दो पहाड़ों के बीच बांधकर बनाई गई थी। लगभग 6.4 किलोमीटर लंबी और 18 फीट गहरी यह झील उस समय जल संरक्षण और जनकल्याण का एक बड़ा उदाहरण थी। आज यह राजसमंद शहर की पेयजल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। झील के किनारे बने द्वारिकाधीश मंदिर और नौचौकी इसे धार्मिक और पर्यटन के लिहाज से और आकर्षक बनाते हैं।
नौचौकी पाल: शिल्प और इतिहास का खजाना
झील के किनारे बनी नौचौकी पाल एक ऐतिहासिक संरचना है, जो अपने नाम के अनुरूप नौ सीढ़ियों और चौकियों से सजी है। इसकी हर सीढ़ी 9 इंच ऊंची, 9 इंच चौड़ी और 9 इंच लंबी है, जिसके कारण इसे “नौचौकी” नाम मिला। इस संरचना पर की गई बारीक नक्काशी और वास्तुशिल्प राजस्थान के संगमरमर शिल्प की उत्कृष्टता को दर्शाता है। नौचौकी पर बनी छतरियां और उनकी सीढ़ियां उस दौर की स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण हैं। यह स्थल न केवल सौंदर्य प्रदान करता है, बल्कि अध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है।
नौचौकी की सबसे खास विशेषता है राजप्रशस्ति महाकाव्य, जो 25 शिलाओं पर खुदा हुआ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा शिलालेख है। इस महाकाव्य में महाराणा राजसिंह के राजतिलक और उनके शासनकाल की उपलब्धियों का वर्णन है। यह शिलालेख मेवाड़ के सिसोदिया वंश की शक्ति, वैभव और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। इसकी नक्काशी में देवी-देवता, नर, पशु-पक्षी और प्रकृति के चित्रण के साथ-साथ उस समय के जनजीवन को भी दर्शाया गया है। यह शिलालेख संगमरमर पर उकेरी गई कला का ऐसा नमूना है, जो ताजमहल की शिल्पकला को टक्कर देता है।
संगमरमर का अद्भुत शिल्प
राजसमंद का संगमरमर विश्व भर में अपनी गुणवत्ता और सुंदरता के लिए मशहूर है। नौचौकी और झील के आसपास की संरचनाओं में इसी स्थानीय संगमरमर का उपयोग हुआ है। उस दौर में जब ताजमहल के निर्माण की चर्चा विश्व में थी, मेवाड़ के शासकों ने नौचौकी और राजप्रशस्ति जैसे स्मारकों के जरिए अपनी शिल्पकला का लोहा मनवाया। यह संगमरमर न केवल मजबूत है, बल्कि इसकी चमक और बारीक नक्काशी इसे बेजोड़ बनाती है। आज भी राजसमंद की मार्बल खदानें देश-विदेश में मांग का केंद्र हैं।

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
नौचौकी और राजसमंद झील का क्षेत्र वैष्णव और जैन परंपराओं का संगम रहा है। यहां की मूर्तियों और शिलालेखों में सनातन धर्म की संस्कृति के साथ-साथ अध्यात्मिकता झलकती है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित प्रतिष्ठा महोत्सव में स्वर्णदान, अन्नदान और तुलादान जैसी परंपराएं इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं। पास में स्थित द्वारिकाधीश मंदिर, जो 1676 में महाराणा राजसिंह द्वारा बनवाया गया, भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है।
संरक्षण की चुनौती
हालांकि यह स्थल अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके संरक्षण में कमी देखी जाती है। समय के साथ मूर्तियों और शिलालेखों पर क्षरण का असर दिख रहा है। पुरातत्व विभाग और स्थानीय प्रशासन को इसे संरक्षित करने के लिए और प्रयास करने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस विरासत का आनंद ले सकें।
Laxman Singh Rathor को पत्रकारिता के क्षेत्र में दो दशक का लंबा अनुभव है। 2005 में Dainik Bhakar से कॅरियर की शुरुआत कर बतौर Sub Editor कार्य किया। वर्ष 2012 से 2019 तक Rajasthan Patrika में Sub Editor, Crime Reporter और Patrika TV में Reporter के रूप में कार्य किया। डिजिटल मीडिया www.patrika.com पर भी 2 वर्ष कार्य किया। वर्ष 2020 से 2 वर्ष Zee News में राजसमंद जिला संवाददाता रहा। आज ETV Bharat और Jaivardhan News वेब पोर्टल में अपने अनुभव और ज्ञान से आमजन के दिल में बसे हैं। लक्ष्मण सिंह राठौड़ सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि खबरों की दुनिया में एक ब्रांड हैं। उनकी गहरी समझ, तथ्यात्मक रिपोर्टिंग, पाठक व दर्शकों से जुड़ने की क्षमता ने उन्हें पत्रकारिता का चमकदार सितारा बना दिया है।
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