Royal Family Tradition : मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के मुखिया एवं महाराणा महेंद्रसिंह मेवाड़ का निधन होने के बाद अब विश्वराजसिंह मेवाड़ अब महाराणा की गादी पर बिराजेंगे। 493 वर्ष बाद दोबारा मेवाड़ महाराणा का राजतिलक उदयपुर की बजाय फिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित फतह प्रकाश पैलेस में होगा। यह रस्म 25 नवंबर सुबह 10 बजे निभाई जाएगी। इसके लिए पूर्व राजपरिवार की ओर से आवश्यक तैयारियां लगभग पूर्ण कर ली गई है। मेवाड़ महाराणा को गादी पर बिराजने की रस्म में चित्तौड़ के साथ समूचे मेवाड़ से राव, उमराव, ठिकानेदार, जागीदार व आमजन शामिल होंगे। चित्तौड़ में गादी पर बिठाने की रस्म कके बाद उदयपुर के कैलाशपुरी स्थित एकलिंगनाथ मंदिर में रंग दस्तूर की परम्परा का निर्वहन किया जाएगा। यह सारी परम्पराएं पूर्ण शाही अंदाज में निभाई जाएगी।
Udaipur Royal Family : भींडर पूर्व राजपरिवार के मुखिया रणधीरसिंह ने बताया कि विश्वराजसिंह मेवाड़ के राजतिलक की रस्म इस बार संपूर्ण मेवाड़वासियों की भावना को देखते हुए चित्तौड़गढ़ में रखना तय हुआ है। इसके तहत 25 नवंबर सुबह 10 बजे से यह कार्यक्रम होगा। इसके तहत सर्वप्रथम सलूम्बर रावत देवव्रत सिंह द्वारा विश्वराजसिंंह मेवाड़ को गादी पर बिठाएंगे। फिर वे अपने रक्त से तिलक करेंगे। गादी पर बिठाने के बाद श्रीनाथजी, द्वारकाधीश जी, चारभुजाजी व एकलिंगजी से जो आशिकाएं आती है, वे उन्हें दिलाई जाएगी। उसके बाद अन्य उमराव नजराना करते हैं, फिर बत्तीसा नजराना करते हैं, फिर छोटे बतीसा और बाकी जागीरदार एक एक कर नजराना करते हैं। नजराने की रस्म के बाद विश्वराजसिंह मेवाड़ चित्तौड़गढ़ में ही स्थित धुणी पर दर्शन करने जाएंगे और फिर कैलाशपुरी पहुंचकर एकलिंगजी के दर्शन करेंगे, जहां पर पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ शोक भंग करवाकर रंग बदला जाएगा। इसके साथ ही महाराणा गमी के दिनों की सफेद रंग की पाग को उतारकर रंग वाली पाग पहन सकेंगे। उसके बाद वे अपने पैलेस समोर बाग पहुंचेंगे, जहां पर भी रंग दस्तूर का कार्यक्रम होगा, जिसमें महाराणा अपने सभी परिजनों, सभी उमराव, बत्तीसा को रंग सौंपेंगे, ताकि सभी रंग वाली मेवाड़ी पाग पहन सकें। इस तरह मेवाड़ पूर्व राजघराने का शोक खत्म हो जाएगा।
Vishvaraj Singh Mewar : विश्वराजसिंह का परिचय
Vishvaraj Singh Mewar : विश्वराजसिंह अब मेवाड़ राजवंश के 77वें उत्तराधिकारी के रूप में महाराणा पदवी पर बिराजित होंगे। इनका जन्म 18 मई 1969 को हुआ। तिथि के आधार पर देखा जाए, तो महाराणा प्रताप की जन्म जयंती के दिन ही विश्वराजसिंह मेवाड़ का जन्म हुआ, जो भी अजब संयोग है। इन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज मुंबई से अर्थशास्त्र में स्नातक की। वे अभी नाथद्वारा के विधायक है, जबिक उनकी पत्नी महिमा कुमारी राजसमंद की सांसद है। वे अक्सर मेवाड़ी में ही बातें करते हैं और संबोधन भी अक्सर मेवाड़ी भाषा में ही रहता है। साथ ही अक्सर मेवाड़ी पगड़ी, राजशाही पोशाक, हाथ में तलवार थामे दिखते हैं।
Mahendra Singh Mewar : महेंद्रसिंह के पास 40 साल महाराणा की पदवी
Mahendra Singh Mewar : विश्वराजसिंह मेवाड़ के पिता महेंद्रसिंह मेवाड़ के राजतिलक व महाराणा की पदवी पर 19 नवंबर 1984 को बिराजित हुए थे। उससे पहले महाराणा भगवतसिंह मेवाड़ थे, जिनका निधन होने के बाद ज्येष्ठ पुत्र महेंद्रसिंह होने से उन्हें महाराणा की पदवी पर बिराजित किया गया। इस तरह करीब 40 साल तक वे महाराणा की पदवी पर रहे। इस दौरान महेंद्रसिंह मेवाड़ चित्तौड़गढ़ से एक बार सांसद भी रह चुके हैं।
Royal Family Udaipur : बहादुरी के इनाम का पद है राव, उमराव
Royal Family Udaipur : भींडर पूर्व राजपरिवार के सदस्य रणधीरसिंह भींडर ने कहा कि पहले मेवाड़ राजपरिवार के वक्त महाराणा के साथ युद्ध में बेहतर कौशल देखाने वाले, युद्ध जिताने या शहीद होने पर उनको राव, उमराव का पद दिया जाता था। इस तरह मेवाड़ में महाराणा अमरसिंह के वक्त 16 उमराव घोषित किए थे। बाद में अलग अलग महाराणा द्वारा कुछ और उमराव बनाए, जिससे अब करीब 23 उमराव है। वे उमराव अपने अपने क्षेत्र में सर्व जाति समाज को एक साथ लेकर चलते हैं और उनकी समस्याओं का निस्तारण करने के लिए अग्रणी भूमिका निभाते थे। महाराणा प्रताप जी ने तो यही सिखाया कि सब समाज को साथ लेकर चलो। तभी तो उस वक्त हकीम खां सूर भी थे, तो भामाशाह, राजपूत व आदिवासी भील तक साथ रहकर लड़ृे थे।
क्या है नजराना पेश की परम्परा
पूर्व राजपरिवार सदस्य रणधीरसिंह भींडर बोले कि मेवाड़ में महाराणा की पदवी जिसके पास है, वह हमारे ट्रेडिशनल हेड हैं। उनमें हमारी आस्था है, वो पाग (साफा) जो है, उसमें हमारा विश्वास है, हमारे पूर्वजों ने जो कुछ बलिदान दिए, जो लड़ाइयां लड़ी, उसका प्रतीक वह पाग है और उस प्रतीक पर हम विश्वास करते हैं। एक तरह से सभी राव, उमराव मिलकर हेड को बनाते हैं। हम उन्हें बधाई के साथ शुभकामनाएं पेश करते हैं, यही नजराना की रस्म है। ताकि वे भविष्य में ऐसे निर्णय लें, जो मेवाड़ के लिए अच्छे हो, जनहित के हो।
मेवाड़ में हर समाज कर रहा तैयारियां
बड़ी सादड़ी पूर्व राजपरिवार के सदस्य प्रतापसिंह झाला “तलावदा” ने बताया कि चित्तौड़ में विश्वराजसिंह मेवाड़ के राजतिलक की रस्म को लेकर समूचे मेवाड़ के लोग उत्साहित है। इसके तहत क्षत्रिय राजपूत समाज के अलावा ब्राह्मण समाज, भील समाज तो क्या गाडोलिया समाज के प्रतिनिधियों के भी फोन आ रहे हैं कि वे भी राजतिलक की रस्म में शामिल होकर समाज की तरफ से कुछ भेंट करना चाहते हैं। मेवाड़ के महाराणा पदवी की रस्म में हमेशा सर्वसमाज साथ रहा है। मेवाड़ राजपरिवार का इतिहास और यह परम्पराएं पिछले 1400 साल से निभाई जा रही है, जिसमें सर्वसमाज शामिल रहता है।
Randhir Singh Bhindar बोले- जनसेवा से नहीं हो सकते रिटायर्ड
Randhir Singh Bhindar : पूर्व राजपरिवार के सदस्य रणधीरसिंह बोले कि पूर्व राजपरिवार व मेवाड़ की परम्परा को लेकर समूचे मेवाड़ के लोगों की पूर्व राजपरिवारों के प्रति गहरा विश्वास है। इसी वजह से लोगों को जुड़ाव भी है। जब महाराणा महेंद्रसिंंह का निधन हुआ तो 11 नवंबर को उदयपुर में असंख्य लोग उमड़े। क्या उन लोगों को लाने के लिए कोई बसें थोड़े ही लगाई गई थी। सभी लोग अपनी श्रद्धा व विश्वास से ही तो आए थे। समोर बाग से महासतिया तक कई किलोमीटर तक पैदल भी चलें। इसलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था व राजनीति अलग चीज है और पूर्व राजपरिवार के प्रति लोगों का रिश्ता, विश्वास अलग है। भींडर बोले कि क्या मैं चुनाव हार गया, तो जनता के बीच नहीं जाऊंगा, लोगों की बात नहीं सुनेंगे। मैं इस जिम्मेदारी से कभी रिटायर्ड नहीं हो सकता हूं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में चाहे मैं चुनाव जीत जाऊं या नहीं। लोग मुझे पर विश्वास करते हैं और इसीलिए किसी कार्य से मेरे पास आते हैं, मैं उनका कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।
समय के बड़े पाबंद थे महेंद्रसिंंह मेवाड़
पूर्व राजपरिवार सदस्य रणधीरसिंह भींडर कहते हैं कि दिवंगत महेंद्रसिंह मेवाड़ समय के बड़े पाबंद थे। तय समय से अगर पांच मिनट भी देरी हो जाए, तो वे हर किसी को मुंह पर टोक देते थे। साथ ही उनका आमजन के प्रति जो व्यवहार था, वह एक जैसा चाहे। सभी धर्म, जाति, समुदाय के लोगों से एक जैसा व्यवहार देखा गया। भींडर बोले कि मैं तो यह कहूंगा कि मेवाड़ ने एक अच्छे व्यक्तित्व को खो दिया।
प्रतापसिंंह झाला बोले- महाराणा पूर्व नहीं, राजपरिवार पूर्व है
मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य रावत प्रतापसिंंह झाला “तलावदा” ने कहा कि मेवाड़ के राजा तो एकलिंग नाथ है। मेवाड़ सिसोदिया कुल के मुखिया महाराणा महेंद्रसिंह मेवाड़ थे। अब महाराणा की पदवी विश्वराजसिंह मेवाड़ के नाम के आगे लगेगी। महाराणा तो पदवी है। इसलिए पूर्व राजपरिवार कह सकते हैं, मगर महाराणा तो एक पदवी है, जो आज भी है। साथ ही मेवाड़ के राजा तो सृष्टि के रचियता यानि एकलिंगनाथ है, जो हमेशा मेवाड़ के राजा रहेंगे। इसलिए तो मेवाड़ के महाराणा को एकलिंग का दीवान कहा जाता है।
Mewar History : चित्तौड़ में राजतिलक का यह है पुराना इतिहास
Mewar History : 16वीं सदी में करीब 493 साल पहले महाराणा विक्रमादित्य का राजतिलक चित्तौड़गढ़ में हुआ था, जो राणा सांगा के पुत्र थे। एक षड़यंत्र के तहत विक्रमादित्य की हत्या हो गई थी। तब अराजक स्थिति में बनवीर ने विक्रमादित्य के छोटे भाई उदयसिंह की हत्या की साजिश रची। इसके तहत बनवीर उसे मारने के लिए कक्ष में पहुंचे, जहां पन्नाधाय ने बनवीर के षड़यंत्र को भांप लिया था। इस पर पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंंह की सेज में सुला दिया और उदयसिंह को चंदन के कपड़े पहना दिए। फिर बनवीर ने चंदन को ही उदयसिंह समझकर हत्या कर दी। फिर पन्नाधाय उदयसिंह को लेकर कुंभलगढ़ पहुंच गई, जहां भामाशाह उदयसिंह का पालन पोषण हुआ और कुंभलगढ़ में ही राजतिलक हुआ था। उसके बाद महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर बसाया। उसके बाद महाराणा प्रताप का राजतिलक उदयपुर में ही हुआ और कई वर्षा से उदयपुर मेवाड़ राजपरिवार के राजतिलक की रस्म उदयपुर में निभती रही है, लेकिन इस बार उसी मेवाड़ पूर्व राजवंश के मुखिया विश्वराजसिंह मेवाड़ के राजतिलक की रस्म वापस चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित फतहप्रकाश पैलेस में होगी।