सत्यनारायण सेन, गुरलां @ भीलवाड़ा
Badiya Mata Mandir : राजसमंद और भीलवाड़ा जिले की सरहद पर भीलवाड़ा जिले के अंतर्गत रायपुर उपखंड के बाड़िया गांव में बाड़िया माता का प्रसिद्ध मंदिर है। लोगों की मान्यता है कि यहां पर लकवा सरीखी कई गंभीर बीमारियों से भी आमजन को राहत मिलती है। इसके चलते यहां पर दूर दराज से सैकड़ों की तादाद में लोग यहां आते हैं और माता के दर्शन के साथ नियमित सेवा पूजा व आरती में शामिल होते हैं। फिर नियमित मंदिर की परिक्रमा लगाते हैं, जिससे कई असाध्य रोगों से राहत मिलने की मान्यता है।
famous temple in rajasthan : कोशीथल के रामनिवास सेन ने बताया कि रायपुर से 10 किमी, कोशिथल 7 किमी नान्दसा जागीर से 3 किमी दूर है। कोशिथल, रायपुर, बागोर से आने जाने का साधन उपलब्ध है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अलग अलग समाज द्वारा सराय का निर्माण करवा रखा है, जिसमें श्रद्धालु ठहर सकते हैं। साथ ही बीमार के साथ आने वाले परिजन चाहे तो मंदिर में भोजन बना सकते हैं, जिसके लिए अलग से कमरे की भी सुविधा है। मंदिर में ठहरने की सारी सुविधा निशुल्क हैं। शनिवार ,रविवार दोनों नवरात्र में भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्र में भक्त पैदल चल कर दर्शन करने आते हैं। कहते हैं कि पहले इस गांव का नाम कुम्हारों का वाडिया था। फिर देवी मां के चमत्कार के चलते इस गांव नाम अब बाडिया का माता जी के नाम से पुकारा जाने लगा। बाडिया माता मन्दिर के सामने ही सगस बावजी जी स्थान है, जहाँ पर मन्दिर बना हुआ है।
Temple History : मंदिर में नियमित परिक्रमा से मिलती है राहत
Temple History : रामनिवास सेन बताते हैं कि यदि किसी महिला, पुरुष को अगर लकवा जैसी बीमारी हो जाती है, तो ऐसे पीड़ित को भी मंदिर में माता के दर्शन करने व परिक्रमा लगाने से राहत मिलती है। कई पीड़ित यहां मंदिर में दस से तीस दिन तक रहते हैं और कई बीमार लोगों के ठीक होकर घर लौटने का भी दावा है।
Jaivardhan News : जोधा भोपाजी की मूर्ति भी स्थापित
Jaivardhan News : मन्दिर परिसर में ही जोधा भोपाजी की मूर्ति की स्थापना कर रखी है। बताते हैं कि माता ने इन्हें दिव्य अनुभूति (दर्शन) दिए थे। माता जी के मन्दिर से एक किमी दूर बाडिया श्याम का मन्दिर है, जो आस पास के क्षेत्र में लोकप्रिय स्थान है। यहां भी दर्शन लाभ के लिए लोग आतें है।
यह है बाड़िया माता जी मंदिर का इतिहास
विक्रम सम्वत्- 1985 का श्रावण भाद्रपद के महीने में सांयकाल के समय से ही जगदम्बा का प्रिय अस्त्र सुदर्शन चक्र का आना व सगसजी महाराज द्वारा भगवती को रोकना व मांस, मदिरा, बलि का भोग नही लेने का वचन सगसजी जी से माँ ने फिर अपने परम भक्त श्री किशना जी गुर्जर (खटाणा) की पुत्री जम्बू को लकवा बीमारी ठीक करने का चमत्कार बताया। गाँव वालो को भी लकवा बीमारी को मिटाने का चमत्कार दिखाने के बाद माँ ने इस निर्धन परिवार पर माँ भगवती ने कृपा कर बाई जम्मु देवी को आकाशवाणी द्वारा माता के चमत्कार पिता जी किशना जी को कहने लगी कि तुम मेरा वहां स्थान बनाना, जहाँ सुदर्शन चक्र आकर रूके। पुत्री को साथ ले गांव वालों को साक्षी में लेकर (वर्तमान में मन्दिर है वहा देवी की स्थापना हुई )विक्रम सम्बत् 1985 सुदी 13 के शुभ मुहूर्त में मैया जी के पांच नमुनो को स्थापित कर दिए। 15 वर्षो तक किशाना जी ने सेवा पूजा की व वि.सं 2001 स्वर्ग सिधारने के बाद उनके पुत्र जोधराज गुर्जर को मां ने दिव्य दर्शन देकर मन्दिर व मूर्ति जोधराज के अथक प्रयासो से व मैया के भक्तो द्वारा वि.सं. 2026 से 2028 (सन् 1969 से स्थापित करने के लिए कहा। 1971) तक मन्दिर व मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। तब से लेकर उनके वंशज माँ भगवती की पूजा अर्चना करते आ रहे है। वि.सं. 2063 के 12 रविवार (दिनांक 06-08-2006) को जोधराज जी के स्वर्ग सिधारने के बाद। उनके पुत्र भेरुलाल, मांगीलाल दीपकक, पारस,व सुरेश माँ भगवती की सेवा पूजा कर रहे हैं। भोपाजी भेरू लाल गुर्जर है।