Mawa sweets https://jaivardhannews.com/famous-mawa-or-amazing-sweets-in-india/

खेती के लिहाज से मेवाड़ के श्रीगंगानगर के रूप में विख्यात रेलमगरा क्षेत्र में बामनिया कला गांव मावे की मिठाई को लेकर काफी फेमस हो रहा है। यहां के मावे में गजब का स्वाद है, तभी तो रेलमगरा, राजसमंद, उदयपुर ही नहीं, बल्कि मेट्रो सिटी सुरत, मुंबई, इंदौर तक डिमांड है। कोई बड़ा कारखाना नहीं है, मगर मावे का स्वाद और गुणवत्ता के आगे बड़े बड़े मिष्ठान भंडार भी पीछे है। न सिर्फ शहरी आबोहवा से दूर देहाती गांव में बनता है, बल्कि शहर से महंगा भी है। इसके बावजूद शुद्धता, गुणवत्ता व लजीज स्वाद के चलते हर कोई मावे के लिए बामनिया कला गांव की तरफ दौड़ा चला आता है।

यह गांव राजस्थान के राजसमंद जिले में रेलमगरा क्षेत्र का एक ग्राम पंचायत मुख्यालय है। सरपंच किशन सालवी बताते है कि वे जब से जन्मे हैं, तब से यही ठेला देख रहे हैं, जहां पहले प्यारजी मावा बनाते थे और अब उनका पुत्र कारीगर है। अब उनके गांव व आस पास के क्षेत्र के लोगों को मावा खरीदना होता है, तो वे शहर नहीं जाते, बल्कि बामनिया कलां गांव का रूख करते हैं। यही स्थिति रेलमगरा व राजसमंद शहर तक के लोगों के हाल है। जिसने भी एक बार यहां का मावा चख खा लिया, फिर उसे कभी दूसरी जगह का मावा अच्छा लगता ही नहीं। यहां पर पिछले 40 साल से मावा बन रहा है, जो शहर के मुकाबले 10 से 20 रुपए तक महंगा भी है।

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मावे की क्या है खासियत

गाय व भैंस के मिक्स दूध से मावा तैयार किया जाता है, ताकि दानेदार मावा बन सकते। साथ ही शक्कर ज्यादा नहीं डालते, जिससे लजीज स्वाद रहे और खाने वाले व्यक्ति के लिए फायदेमंद रहे। कभी गुणवत्ता से समझौता नहीं करते, मगर खर्च बढ़ता है तो महंगा बेचते है। सरपंच किशन सालवी बोले- यहां के मावे में शुद्धता की गारंटी है।

इसलिए बाजार से महंगा है मावा

यह मावा गाय व भैंस दोनों के दूध से बनता है। इसमें 30 लीटर दूध भैस व 10 लीटर गाय के दूध को मिक्स किया जाता है। तभी दावेदार मावा बनता है। इस तरह 40 किलो दूध से 20 किलो मावा बनता है। पहले हाथ से बनाते थे, मगर अब मशीन ले आए, जिससे मावा बनाया जाता है। यह मावा 350 रुपए प्रति किलो की दर में बिकता है, जो शहरी बाजार के मुकाबले 10 से 20 रुपए तक महंगा है।

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मावा बनाने का यह है मुख्य तरीका

मावा के लिए भैंस का फुल क्रीम दूध सबसे बेस्ट रहता है। जितना मावा बनाना हो, उससे दोगुना दूध लेकर उसे उबालना पड़ता है। जब दूध उबलने लग जाए, तो आंच कम कर देनी चाहिए। फिर लगातार धीमी धीमी आंच पर उबलने देना है और बार बार हिलाते भी रहना है, ताकि कढ़ाई के नीचे दूध जले नहीं। फिर जैसे जैस उबलेगा, वैसे वैसे दूध गाढ़ा होता जाएगा और फिर जब दूध हलवे की तरह गाढ़ा हो जाए, तब भी उसे पकाते रहे और चम्मच या करछी से हिलाते रहे। फिर गाढ़ा हो जाए, तो उसे नीचे उतार कर स्वाद अनुरुप शक्कर डाल सकते हैं। साथ ही ड्राइफ्रूट व अन्य मसाले भी डाल सकते हैं।

मेवाड़ का श्रीगंगानगर कहे जाने वाले रेलमगरा क्षेत्र के रतालू की डिमांड मध्यप्रदेश और गुजरात तक है। एक ही गांव में 500 से 700 परिवार रतालू की खेती कर रहे हैं, जिनसे गुजरात, एमपी व उदयपुर की मंडियों के व्यापारी या दलाल सीधे संपर्क कर रतालू की गाडिय़ा भर ले जाते हैं। खास बात यह है कि रतालू के साथ बीच में खाली जगह पर किसान रिजके की फसल भी ले रहे हैं, जिससे किसानों को दोहरा मुनाफा हो रहा है। सर्वाधिक रतालू की खेती बामनिया कलां गांव में हो रही है, जहां पर 400 परिवार इसमें जुटे हुए हैं। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करिए…