Makar sankranti हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में विविध रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार प्रकृति, कृषि, आध्यात्मिकता और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। मकर संक्रांति सूर्य देवता को समर्पित त्योहार है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। इस लेख में, हम मकर संक्रांति के ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
Why celebrate Makar Sankranti : मकर संक्रांति का अर्थ और परिभाषा
Why celebrate Makar Sankranti : “मकर” का अर्थ है मकर राशि (मकर का अर्थ है मगरमच्छ, जो राशि चक्र का दसवां चिन्ह है) और “संक्रांति” का मतलब है संक्रमण या बदलाव। मकर संक्रांति वह खगोलीय घटना है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। यह घटना हर वर्ष 14 या 15 जनवरी को होती है और यह उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है। उत्तरायण वह अवधि है जब सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ता है, जिससे दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं।
Makar sankranti history : मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्त्व
Makar sankranti history : मकर संक्रांति की जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं। यह त्योहार ऋग्वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों में उल्लिखित सूर्य उपासना से जुड़ा हुआ है। इस दिन को कृषि और मौसम परिवर्तन के साथ जोड़ा जाता है। मकर संक्रांति को भारत के प्राचीन कृषक समाज में नई फसल के आगमन के रूप में भी देखा जाता था। इस दिन किसान अपनी फसल को भगवान को अर्पित कर आभार व्यक्त करते हैं।
Makar Sankranti in Hindi : धार्मिक और पौराणिक संदर्भ
Makar Sankranti in Hindi : मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएं निम्नलिखित हैं:
- भगवान विष्णु और असुरों की कथा: मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर उनके सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में देखा जाता है।
- भीष्म पितामह और उत्तरायण: महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु का चयन मकर संक्रांति के दिन किया था क्योंकि इस दिन मरने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है।
- भगवान सूर्य और संतान शनि: सूर्यदेव और उनके पुत्र शनिदेव के बीच संबंध मकर संक्रांति के दिन से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर गए थे, जिससे उनके बीच संबंध मधुर हुए।
Makar Sankranti Saintific Effects : वैज्ञानिक और खगोलीय पहलू
Makar Sankranti Saintific Effects : मकर संक्रांति का खगोलीय महत्त्व इसे अन्य त्योहारों से अलग बनाता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में दिन बड़े होने लगते हैं। यह खगोलीय घटना कृषि कार्यों के लिए अनुकूल समय की शुरुआत को दर्शाती है। उत्तरायण को जीवनदायिनी ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है और इसे शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त समय माना जाता है।
Makar Sankranti 2025 : भारत में मकर संक्रांति का क्षेत्रीय स्वरूप
Makar Sankranti 2025 : भारत के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
- उत्तर भारत:
- पंजाब: पंजाब में इसे “लोहड़ी” के रूप में एक दिन पहले मनाया जाता है। यह नई फसल के स्वागत का पर्व है, जिसमें आग जलाकर उसके चारों ओर नाच-गाना किया जाता है।
- हरियाणा और उत्तर प्रदेश: यहां इसे “खिचड़ी” के नाम से जाना जाता है। लोग इस दिन दान-पुण्य करते हैं और तिल-गुड़ से बनी मिठाइयां बांटते हैं।
- पश्चिम भारत:
- गुजरात: गुजरात में इसे “उत्तरायण” कहते हैं। इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है।
- महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में लोग एक-दूसरे को तिल और गुड़ देकर कहते हैं, “तिल गुड़ घ्या, गोड़ गोड़ बोला” (तिल-गुड़ खाओ और मीठा बोलो)।
- दक्षिण भारत:
- तमिलनाडु: तमिलनाडु में इसे “पोंगल” कहा जाता है, जो चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। यह त्योहार फसल कटाई के अवसर पर मनाया जाता है।
- आंध्र प्रदेश और कर्नाटक: यहां इसे “संक्रांति” कहते हैं। लोग भव्य पूजा करते हैं और नृत्य एवं गायन के माध्यम से उत्सव मनाते हैं।
- पूर्वोत्तर भारत:
- असम: असम में इसे “माघ बिहु” के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग भोगाली बिहु का आनंद लेते हैं और पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं।
- पूर्वी भारत:
- बिहार और झारखंड: इसे “खिचड़ी” पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोग स्नान कर भगवान सूर्य की पूजा करते हैं और खिचड़ी खाते हैं।
- ओडिशा और पश्चिम बंगाल: यहां इसे “पौष संक्रांति” कहा जाता है और इस दिन तिल-गुड़ और चिउड़ा का सेवन किया जाता है।
मकर संक्रांति का आध्यात्मिक महत्त्व
मकर संक्रांति को आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य, और सूर्य उपासना का विशेष महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कर्म कई गुना फल देता है। गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है। इस दिन प्रयागराज में माघ मेला का आयोजन होता है, जहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
मकर संक्रांति और पर्यावरण
मकर संक्रांति न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार हमें प्रकृति और पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने की शिक्षा देता है। कृषि आधारित समाज में इस दिन का विशेष महत्त्व है, क्योंकि यह नई फसल के आगमन का प्रतीक है।
मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का महत्त्व
मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का सेवन और दान अत्यंत शुभ माना जाता है। तिल और गुड़ न केवल पोषण से भरपूर होते हैं, बल्कि ये सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक हैं। ठंड के मौसम में तिल और गुड़ शरीर को गर्म रखने में मदद करते हैं।
मकर संक्रांति से जुड़े उत्सव और परंपराएं
- पतंगबाजी: मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाना एक लोकप्रिय परंपरा है। इसे खासतौर पर गुजरात और राजस्थान में धूमधाम से मनाया जाता है। आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है।
- गंगा स्नान और दान: इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्त्व है। लोग गरीबों और जरूरतमंदों को तिल, गुड़, कपड़े, और अनाज का दान करते हैं।
- संगीत और नृत्य: विभिन्न क्षेत्रों में पारंपरिक संगीत और नृत्य का आयोजन होता है। तमिलनाडु में पोंगल के दौरान कोलाट्टम और कर्नाटक में लोक नृत्य बेहद प्रचलित हैं।
मकर संक्रांति केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, अध्यात्म, और सामुदायिक समरसता का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे हम प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। इस दिन का खगोलीय, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व हमें अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़े रखता है।
मकर संक्रांति का संदेश है कि हमें जीवन में सकारात्मकता, आशा और समृद्धि को अपनाना चाहिए। तिल और गुड़ की मिठास की तरह हमें अपने रिश्तों में मिठास घोलने और समाज में समरसता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
डिस्क्लेमर: मकर संक्रांति पर आधारित लेख केवल पाठकों की जानकारी के लिए हैं। Jaivardhan News इन तथ्यों की पुष्टि नहीं करता है।